आओ उसकी गर्जना में
हो उठें तूफ़ान हम
मौन टूटे - आग उगले
कड़क कड़क कर बरस पड़ें
आसमान के साथ साथ
खुद को भी शीतल करें
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आओ, एक बार आसमान से बातें करके देखें
सदियों से चुपचाप देखता आया है हमें
ये कुछ बोलता क्यों नहीं?
क्या क्या नहीं देखा है इसने
हमारी बचकानी हरकतें हमारी नादानियाँ
हज़ारों सालों में लिखी गयी ढेरों कहानियाँ
कितने खून ख़राबे कितने शोर शराबे
हमेशा से ही कुचले गये बेगुनाह प्यादे
धर्म के नाम पर बेवजह लड़ते-भिड़ते कटते-काटते लोग
जानवरों को बुरा कहने वाले जानवरों से बदतर ये लोग
वक़्त की उंगलियों पर नाचती हुई कठ-पुतलियाँ
और कठ-पुतलियों की आँखों से आज़ाद होती ख्वाब-तितलियाँ
अपने अपने खुदा से सौदेबाज़ी मिन्नतों की
ज़िंदगी नरक सी लेकिन उम्मीदें जन्नतों की
ग़लतफहमियों के दलदल में फंसे रिश्ते
और रिश्तों की दलदल में फंसे समाजी किस्से
दम घोंटता धुंआ कारखानों का, चौंधियाती रौशनी शहरों की
पेड़ों की साड़ी सहेजती सहमी धरा द्रौपदी सी
क्या क्या नहीं देखा है इसने
एक बार तो आसमान से बातें करके देखें
पूछें इससे कि क्या सोचता है?
क्या है इसके दिल में
न जाने कितने तूफान भरे बैठा है अपने अंदर
तन्हाई में रोकर बरसता तो है अक्सर
कभी कभी गुस्से में झल्लाकर गरजता भी है
मगर बोलता नहीं कुछ, बात नहीं करता
जवाब नहीं देता, सवाल नहीं करता
कहीं हमारी तरह ये भी डरता तो नहीं?
कि अगर फट पड़ा तो तूफान आ जाएगा..
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteतन्हाई में रोकर बरसता तो है अक्सर
ReplyDeleteकभी कभी गुस्से में झल्लाकर गरजता भी है
मगर बोलता नहीं कुछ, बात नहीं करता
जवाब नहीं देता, सवाल नहीं करता
कहीं हमारी तरह ये भी डरता तो नहीं?
कि अगर फट पड़ा तो तूफान आ जाएगा..
सच में !
सार्थक रचना !!
आओ उसकी गर्जना में
ReplyDeleteहो उठें तूफ़ान हम
... बेहद सशक्त भाव रचना के
आभार प्रस्तुति के लिए
क्या क्या नहीं देखा है इसने
ReplyDeleteहमारी बचकानी हरकतें हमारी नादानियाँ
हज़ारों सालों में लिखी गयी ढेरों कहानियाँ
कितने खून ख़राबे कितने शोर शराबे
सचमुच मानव का इतिहास क्या इतना दर्दनाक है...
आपकी इस पोस्ट की चर्चा 17-01-2013 के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करवाएं
सुन्दर मनभावन कविता ....... अविरल प्रवाहमयी .....
ReplyDeleteसार्थक और सटीक!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!