श्रीमदभगवदगीता को भाव पद्यानुवाद का रूप देकर श्री कैलाश शर्मा ने पाठकों को श्री कृष्ण को समझने का एक सुगम माध्यम दिया है . गीता सांसारिक समुद्र का मंथन तत्व है,जिसने पा लिया,वह मुक्त हुआ - नहीं तो ज्ञानेन्द्रियाँ शून्य में स्व को तलाशती हैं ! सत्य शून्य है,जो कई भावतत्वों से भरा है ......... उन्हीं तत्वों का अमोघ अस्त्र है 'गीता' .
पुस्तक को देखना,पन्ने पलटना और मान लेना कि हमने वह जान लिया जो कृष्ण ने कहा ..... अधजल गागर सी स्थिति है जो आधे में छलकना शुरू करती है . ऐसे में तत्व भी निस्सारता में परिणित हो जाता है . उन तत्वों के भावों को सरलता से शब्दों में उतारने का एक अनुपम प्रयास है कैलाश शर्मा का .
उनके शब्दों से जाना कि गीता के ज्ञान को रोचक तथा बोधगम्य भाषा में आम लोगों तक पहुंचाने की उनकी इच्छा वर्षों से प्रबल थी, पर गीता ज्ञान शिव धनुष की तरह है - जिसे विनम्रता से ही ग्रहण कर सकते हैं .............. तो उसी विनम्र प्रयास का एक रूप है - श्रीमदभगवदगीता का भाव पद्यानुवाद
भाव अनुवाद से पूर्व ईश्वर के सन्देश को सरल,सुगम बनाने के लिए जो वंदना कैलाश शर्मा ने की है,वह उनके व्यक्तित्व को रेखांकित करता है . अर्चना के शब्द - धुप,दीप,नैवेद्य की तरह प्रभु से शक्ति मांगते हैं -
'है बहुत कमज़ोर यह पतवार मेरी
शक्ति देना, प्रभु मुझे तुम शक्ति देना'
इस वंदना के माध्यम से रचनाकार ने स्पष्ट किया है कि हम प्रयास कर सकते हैं - पर अभिमान से नहीं - बल्कि याचक के रूप में .
18 अध्यायों के भावों में सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलु नज़र आते हैं ..... पढ़ते समय सारे दृश्य चलायमान हो जाते हैं .
गहन मंथन के उपरान्त कैलाश शर्मा ने हमारे साथ गीता के भावों को साझा किया है - कृष्ण के वचन,उसके भावों को सहज बनाने की कोशिश हमारे लिए एक उपहार है ..... इसकी समीक्षा भला क्या होगी - जितने भाव हैं,वे गंगा जल के समान हैं और इससे अधिक क्या कहना . कहना होगा तो भाव अनुवादक के शब्द दोहराउंगी -
ज्ञान का सागर गहन गंभीर है
पार करना कठिन,क्षुद्र नौका के सहारे
आयेंगे अज्ञान के तूफ़ान गहरे
रास्ते बन जाएँ लहरें,प्रेम के तेरे सहारे ........
पुस्तक पर अपने विचार रखने के लिए बहुत बहुत आभार....
ReplyDeleteहर अध्याय को पढ़ रहा हूँ, पुस्तक संग्रहणीय है..
ReplyDeletesundar sarthak prayas..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (26-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
सुंदर रचना |
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रयास sir
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