इस रचना को मैंने कबाड़खाना से उठाया - जो 2008 को लिखी गई
पढ़ते हुए दिल बोलता रहा
यह 2013 है - पर स्थिति वही है ...............
मैं हूं सदी 21 का गुजरता हुआ आठवां बरस
मैं गवाह हूं हिंदोस्तां की किस्मत का
रंग गिरगिट का दिखाती हुई सियासत का
उजले परदों के तले स्याह सब इरादों का
मैंने देखा है दहशत का खौफनाक मंजर
पानी की तरह बहता खून सड़कों पर
जिस्म को चिथड़ा बनाते, बारूदी दिमाग
दिल को चीरती चीखें और भड़कती आग
और जो जान दे बचा गए कई जानें
उनकी जांबाजी और हौसले के अफसाने
मैंने देखा है हिमालय को जार-जार रोते
उसके आंसू से लबालब हुईं नदियों का कहर
और शमशान में बदली हुई गौतम की जमीं
जश्न दिल्ली में मना देख के पटना की गमी
पी गए सब,उठी इमदाद की फिर जो भी लहर
लाल बत्ती में नजर आए सब घड़ियाल, मगर
मैंने देखे हैं पसीने में तर ब तर बच्चे
गमे रोजी पे न्योछावर जवानी की कसक
तेज रफ्तारी का दम निकालती हुई मंदी
सांय-सांय करती,लेबर चौराहे की सड़क
और देखा कामयाबी का नई राहें
चांद सीने से लगाने को मचलती बाहें
और वो सूरज भी देखा, जो उगा खेल के मैदानों से
एक मेडल ने कैसे अरब चेहरों को लौटा दी चमक
दांव कुश्ती का और मुक्के का हुनर ऐसा खिला
हर तरफ फैल गई गांव की मिट्टी की महक
और मंडी में सजे देव गेंद-बल्ले के
खेल के हुस्न पे भारी पड़ी सिक्कों की खनक
तमाम किस्सों को सीने में दबाए जाता हूं
गया वक्त हूं तो फिर से कहां आऊंगा,
अलविदा कहता हूं पर भूल नहीं पाऊंगा
अरे, उठो..ये उदासी कैसी
नजूमी देखो फिर बिल से निकल आए हैं
बमों पे बैठे हैं, मुस्तकबिल हरा बताए हैं
कोई टी.वी. पे,कोई छा गया अखबारों में
चमक चोले में,और हीरा जड़े हारों में
बहलाने वाले वही किस्से फिर दोहराए हैं
हंसो-हंसो कि लतीफा बड़ा सुनाए हैं
फिर वही नाजिर हैं,वही मंजर फिर
सुने मैंने भी थे, जब आया था, उठाए सिर
पर ऐसा भी क्या कि जश्न की बात न हो
जर्द पन्नों में गुलाबों से मुलाकात न हो
माना हर तरफ पसरा है ये अंधेरा घना
पर हमेशा के लिए कौन इस दुनिया में बना
जो भी आया है जहां में, वो जाएगा जरूर
तख्त ओ ताज गए,ये भी खतम होगा हुजूर
इसलिए उठो, सुनो दस्तक, खोलो किवाड़
दरीचों से फूट रहा है नई किरणों का जाल
इसे बचाओ बुरी नजरों से, लालच से, बेइमानी से
नया साल बचे,सब झूठ की कहानी से
इसका स्वागत करो... स्वागत करो...स्वागत करो...
पंकज श्रीवास्तव
sach,halat nhi badale...
ReplyDeleteवक्त कब जल्दी करवट बदलता है।
ReplyDeleteरंग गिरगिट का दिखाती हुई सियासत का
ReplyDeleteउजले परदों के तले स्याह सब इरादों का
इतिहास का अर्थ तो एक युग बदलना कहते हैं , इसे पूर्वाभास कह लें ...... !!
शुभकामनायें !!
waqt ka kya kahna......
ReplyDeleteहर आगे उठने वाला क़दम यही कहते हुए आगे बढ़ता है.....! काश! आगे कुछ खूबसूरत रौशनी के साए हों....
ReplyDelete~सादर !!!
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
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लोहड़ी, मकर संक्रान्ति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
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