वह सबकुछ है 
पर कुछ भी नहीं है 

 रश्मि प्रभा 
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-    वह सृष्टि है ...सृष्टि को रचती है। वह सुन्दर है ...सुन्दरता की जननी है। वह सुख है ...सुख प्रदान करती है। वह श्रेष्ठ है ...श्रेष्ठता का कारण बनती है। वह शक्ति है ...शक्ति प्रदान करती है। वह समाधान है ...युद्ध में दुर्गा बनकर देवताओं की विजय का कारण बनती है।

-    देवता उसकी वन्दना करते हैं और मिथ्याभिमानी मनुष्य उसका अपमान।   

-    वह हाड़ा है जो युद्ध क्षेत्र में जा रहे अपने पति को अपना शीश काटकर विदा करती है जिससे पुरुष पूर्णमनोयोग से अपने कर्तव्य के साथ न्याय कर सके और अपने देश की सीमाओं की रक्षा कर सके।

-    वह पन्ना है जो राजकुमार के प्राणों के लिये अपने पुत्र की बलि देती है; तथापि लोगों ने कहा कि वह तो दुर्गुणों की भण्डार है।

-    एक पग उसके बिना आगे बढ़ाया नहीं जा सकता तथापि लोगों ने उसकी उपेक्षा की। वह हर पल नाना रूपों में सुख की वर्षा करती है; तथापि लोग उसके सुख को छीनते रहे। वह सदा जीवन देती रही; तथापि लोगों ने उसके जीवन को छीनने का प्रयास नहीं छोड़ा।

-    बिना पाथेय वह चल रही है, लम्बी यात्रा से क्लांत हो चुकी है, कुछ क्षण को रुकती है फिर चल पड़ती है, उसे औरों के लिये पाथेय जो तैयार करना है।  

-    वह क्रम है ...विराम से संघर्ष करती है और नाना बाधाओं के पश्चात् भी निरंतरता को बनाये रखती है। वह परम्परा है जो दूसरों के लिये उदाहरण बनती है। वह नीर भरी दुःख की बदली है। वह आँचल में दूध और आँखों में पानी लिये सदा प्रस्तुत होती रही है। किंतु जिसके लिये प्रस्तुत होती रही है उस पुरुष की भूमिका क्या है? ...कितनी है? क्या मात्र एक खलनायक की?

-    यह त्रासदी जो स्थायी भाव से स्त्री के साथ संलग्न कर दी गयी है क्या उसकी नियति बन चुकी है?

-    विश्लेषण करते हैं तो जो सत्य उभर कर प्रकट होता है उसकी कुरूपता भयभीत करती है। पुरुष अपनी तथाकथित बुद्धिमत्ता के परिधान में स्वयं को आवेष्टित कर कुतर्क प्रस्तुत करने पर उतारू हो गया है। उसने अपने कुतर्कों को भी तर्क के परिधान से आवेष्टित कर दिया है। उसके कुतर्कों का मायाजाल पुरुष को निर्दोष सिद्ध करने का एक दुष्टतापूर्ण किंतु असफल प्रयास है।

-    इस मायाजाल को तोड़ना होगा। इन कुतर्कयुक्त तर्कों के छल को अनावृत करना होगा। ...कौन करेगा यह सब?

-    स्त्री स्वयं करेगी यह सब ... पुरुष के दिये व्रणों के रोपण के लिये अपनी औषधि स्वयं तैयार करनी होगी उसे। सदा से यही तो करती आयी है ...आगे भी करेगी।

-    अपना सर्वस्व देकर भी सृष्टि की परम्परा को बनाये रखने वाली नारी अपनी रक्षा में समर्थ है।

-    वह जीत सकती है ...यदि उसके साथ छद्म युद्ध न किया जाय। वह जीत सकती है यदि पुरुष अपनी कायरता को छिपाने दलबद्ध हो अकेली स्त्री पर आक्रमण न करने का साहस कर सके।

-    अकेली स्त्री पर एकांत में छिपकर कायरों की तरह आक्रमण करने वाले पुरुष, निर्लज्जता की सारी सीमाओं को छिन्न-भिन्न कर मिथ्या शौर्य के लिये अपना वक्ष प्रदर्शित करने वाले पुरुष, स्त्री के उदर में नौ माह तक निरंतर उसके रक्त से पोषण पाकर कृतघ्न हुये पुरुष और जन्म के पश्चात् भी स्त्री के शरीर पर पराश्रयी हो पोषण पाने एवं पंख निकलते ही उसके शरीर को नोचने वाले निर्लज्ज कापुरुष परिवार की सत्ता का अपहरण किये बैठे हैं।

-    इस सत्ता को अनधिकृत लोगों के हाथों से मुक्त करना होगा।

-    स्त्री को, सृष्टि में उसकी त्यागमयी भूमिका के अनुरूप सम्मानजनक अधिकार देना ही होगा, अन्यथा सृष्टि को समाप्त होने से कोई रोक नहीं सकेगा।

-    किंतु यह अधिकार देगा कौन उसे? आततायी किसे, कब और क्या प्रदान करते हैं?

-    स्त्री को स्वयं आगे बढ़कर अपना अधिकार लेना होगा। और अधिकार लेने के लिये उसे एक स्वर से ...एकमत से ....समग्र शक्ति से संघर्ष के लिये रणक्षेत्र में उतरना होगा।

-    नित्य वन्दनीया नारी! प्रणम्य नारी! सृष्टि की कारणभूत नारी! देवता आपके साथ हैं, बस एक बार एक स्वर से उठकर खड़े भर होने की आवश्यकता है। मानव समाज को मातृसत्तात्मक बनना ही होगा।  
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आस्था का वास्ता 

ये कैसे भक्त हैं
ये कैसी आस्था है?
जिसका
सिर्फ़ गन्दगी से वास्ता है।
तन से निकालते हैं
नदी के पानी में फेकते हैं
मन से निकालते हैं
स्त्री की देह में फेकते हैं।
दोनो के हिस्से मे आती है
वासना ही वासना
प्रताड़ना ही प्रताड़ना।
नदी
मर रही है
और स्त्री
मर-मर के जी रही है।

 कौशलेन्द्र मिश्रा 

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर रश्मिजी ....स्त्री होनेपर गर्व महसूस कर रही हूँ ...और अपनी शक्ति को नए सिरे से पहचान रही हूँ.......आभार

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  2. स्त्री को स्वयं आगे बढ़कर अपना अधिकार लेना होगा। और अधिकार लेने के लिये उसे एक स्वर से ...एकमत से ....समग्र शक्ति से संघर्ष के लिये रणक्षेत्र में उतरना होगा।

    बहुत सार्थक पोस्ट..स्त्री को अपनी शक्ति पहचाननी होगी..

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  3. प्रेरणा दायक विचार,और आंदोलित करते हुए सोचने को मजबूर करते हुए भी. स्त्री की शक्ति, संवेदनशीलता ,और कर्त्तव्यपरायणता को पहचानने की जरूरत है , उसका सम्मान करने की जरूरत है.

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  4. बहुत सार्थक और दृढ़ प्रस्तुति ...

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  5. स्त्री के बगैर ये दुनिया कुछ नहीं सब उसके सामने तुच्छ है,लेकिन फिर भी हमेशा पुरूषों के पैरों तले मसली जाती है, अगर स्त्री अपने अन्दर की शक्ति को पहचान ले तो वो हर जगह से सुरक्षित है। आपने हिुत अच्छा लिखा... आभार

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  6. सबको अपना भान पूर्ण हो,
    हर जन का सम्मान पूर्ण हो।

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