शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009
ग़ज़ल
http://ismatzaidi.blogspot.in/2009_10_09_archive.html
टीवी पर दिखाई गई बाढ़ की तस्वीरों ने लिखवाई ये ग़ज़ल
अब के कुछ ऐसे यहाँ टूट के बरसा पानी
ले गया साथ में बस्ती भी ये बहता पानी
मेरी आंखों के हर इक ख्वाब ने दम तोड़ दिया
उन की ताबीर को दो लम्हा न ठहरा पानी
चंद बूँदें भी नहीं प्यास बुझाने के लिए
यूँ तो ताहद्दे नज़र सिर्फ़ है बहता पानी
अब जमीं है न ये बिस्तर है कहाँ पर बैठें
हम दरख्तों पे हैं और पैरों को छूता पानी
हर जगह तैरती बचपन की मेरी यादें हैं
मेरा संदूक बहा ले गया बढ़ता पानी
आज सैलाब बहा ले गया जाने क्या क्या
सारी uम्मीद खत्म करके ही उतरा पानी
जब ये उतरा है तो बीमारियाँ फैलाएगा
अब तलक सुनते थे है जान बचाता पानी
जब ये एहसास हुआ ज़ख्म लगा दिल पे शिफा
अब लहू हो गया सस्ता प है महंगा पानी
बेह्तरीन अभिव्यक्ति शुभकामनायें.
ReplyDeleteहर जगह तैरती बचपन की मेरी यादें हैं
ReplyDeleteमेरा संदूक बहा ले गया बढ़ता पानी
चयन एवं प्रस्तुति लाजवाब ...
आभार
बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि ,मदन मोहन जी और सदा जी
ReplyDeleteआप सब की हौसला अफ़्ज़ाई मेरे लिये बहुमूल्य धरोहर है
कभी पानी जीवन है कभी त्रासदी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल...बाढ़ का सम्पूर्ण दृश्य दिखाती हुई..
ReplyDeleteजब ये एहसास हुआ ज़ख्म लगा दिल पे शिफा
ReplyDeleteअब लहू हो गया सस्ता प है महंगा पानी.
दिलको छू लेती है यह गज़ल. नमन इस लेखन को.
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteहर जगह तैरती बचपन की मेरी यादें हैं
ReplyDeleteमेरा संदूक बहा ले गया बढ़ता पानी
आज सैलाब बहा ले गया जाने क्या क्या
सारी uम्मीद खत्म करके ही उतरा पानी
जब ये उतरा है तो बीमारियाँ फैलाएगा
अब तलक सुनते थे है जान बचाता पानी
इतने पर भी तो जीना ही है आगे तक
तब तो फिर अपना जीवन ही बनेगा पानी
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
बाढ़ की बड़ी जीवंत तस्वीर खींच दी है आपने अपनी गज़ल में ! मेरी मुबारकबाद क़ुबूल करें !
ReplyDeleteरश्मि और आप सभी दोस्तों का बहुत बहुत शुक्रिया अपनी दुआओं का साया इसी तरह बनाए रखियेगा
ReplyDeleteacchi rachna ,badhaai aapko
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