आयी है रंगो की बहार
गोरी होली खेलन चली
ललिता भी खेले विशाखा भी खेले
संग में खेले नंदलाल...
गोरी होली खेलन चली ।
लाल गुलाल वे मल मल लगावें
होवत होवें लाल लाल...
गोरी होली खेलन चली
रूठी राधिका को श्याम मनावें
प्रेम में हुए हैं निहाल...
गोरी होली खेलन चली
सब रंगों में प्रेम रंग सांचा
लागत जियरा मारै उछाल...
गोरी होली खेलन चली
होली खेलत वे ऐसे मगन भयीं
मनुंआ में रहा न मलाल...
गोरी होली खेलन
तन भी भीग गयो मन भी भीग गयो
भीगा है सोलह शृंगार...
गोरी होली खेलन चली
झ्सको सतावें उसको मनावें
कान्हा की देखो यह चाल...
गोरी होली खेलन चली
कैसे बताऊँ मैं कैसे छुपाऊँ
रंगों ने किया है जो हाल...
गोरी होली खेलन चली
आओ मिल के प्रेम बरसायें
अम्बर तक उड़े गुलाल...
गोरी होली खेलन चली ।
जन्म : 01 जुलाई 1953/ स्थान: ग्राम पाटनपुर, जिला हमीरपुर, उत्तर प्रदेश, भारत कुछ प्रमुख कृतियाँ दे दो आकाश काव्य संग्रह, (2005)
मगन रोय होरी की बेरा
ReplyDeleteतन भी भीग गयो मन भी भीग गयो
ReplyDeleteभीगा है सोलह शृंगार...
गोरी होली खेलन चली...waah...
बहुत उम्दा सराहनीय अभिव्यक्ति,,
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाए,,,
Recent post : होली में.
जितनी मासूम औऱ साफ कविता है काश वैसी ही होली फिर से देखन को मिल जाए।
ReplyDeleteखुबसूरत होली को समर्पित रचना...शुभ होलिकोत्सव आपको...सपरिवार...
ReplyDeleteआओ मिल के प्रेम बरसायें
ReplyDeleteअम्बर तक उड़े गुलाल...
गोरी होली खेलन चली ।
होली पर अप्रतिम प्रस्तुति. बधाई रमा जी.