भीड़ में खुद की तलाश
कभी पूरी नहीं होती
भीड़ तो बस भीड़ है
जब भी कोई ख्याल उभरता है
भीड़ में गुम हो जाता है
रश्मि प्रभा
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इसी भीड़ में...
थोड़ी उंचाई पर जब,खड़ा होता हूँ मैं.
दिखती हैं मुझे, रेंगती सी भीड़.
जानवरों की नहीं,
तथाकथित मानवों की.
वह भीड़ जिसकी अपनी कोई मंजिल नहीं.
न ही कोई दिशा.
एक दूसरे से टकराती ज़िन्दगी
एक दूसरे से आगे निकलने की होड़.
मानव से ही संघर्ष करता मानव.
सोचता हूँ कभी,
क्या यही नियति हैं?
जन्म और मृत्यु के बीच सिर्फ संघर्ष ?
एक होड़, अपनों से, अपनों के बीच?
भीड़ कई प्रश्न छोड़ जाती हैं मुझ पर,
परन्तु उत्तर नहीं बताती.
मेरी सरल आत्मा उत्तर मांगती है ,
भीड़ कहती हैं उत्तर शब्दों में निहित नहीं है
आओ, और शामिल हो जाओ मुझ में तुम भी.
बनो मेरा हिस्सा और गुजरो प्रसव पीड़ा से.
क्योकि हर भीड़ में कुछ बुद्ध उत्तर पा जाते हैं.
फिर वे भीड़ से अलग हो जाते हैं.
जैसे कीचड़ में खिल जाये कोई कमल...
तुम्हे भी यही करना होंगा.
हाँ, मैं भी हूँ अब शामिल इसमें
अनिच्छा से ही सही, लेकिन संघर्ष करता हुआ अपनों से.
जीता जा रहा हूँ मैं निरंतर,
नदी के बहाव में तिनके की तरह.
कि कभी तो मिलेगा उत्तर
और जान पाउँगा, आखिर कौन हूँ मैं.
लेकिन तब तक मुझे भी इसी भीड़ में जीना है
हाँ, इसी भीड़ में........................... ..
राहुल पालीवाल
एक दूसरे से टकराती ज़िन्दगी
ReplyDeleteएक दूसरे से आगे निकलने की होड़.
मानव से ही संघर्ष करता मानव.
सोचता हूँ कभी,
क्या यही नियति हैं?....wahhh !
वक़्त मीले तो यहाँ पर भी आये
" व्यंग - पप्पू से पंगा ( विडियो के साथ ) "
http://eksacchai.blogspot.com/2011/08/blog-post_20.html
इस पोस्ट का विडियो अवस्य देखे
priya rahul jee aapki is sundar abhivayakti se pripoorn kavita ke liye,badhai
ReplyDeleteखुद को पाने के अभियान मे ही सब जुटे हैं आपने उसका बहुत सुन्दर चित्रण किया है राहुल जी………लगे रहिये मंज़िल एक दिन जरूर मिलेगी।
ReplyDeleteबनो मेरा हिस्सा और गुजरो प्रसव पीड़ा से.
ReplyDeleteक्योकि हर भीड़ में कुछ बुद्ध उत्तर पा जाते हैं....
राहुल जी इस सार्थक विश्लेषणात्मक रचना के लिए सादर बधाई... सादर आभार वटवृक्ष...
"हाँ, मैं भी हूँ अब शामिल इसमें
ReplyDeleteअनिच्छा से ही सही, लेकिन संघर्ष करता हुआ अपनों से.
जीता जा रहा हूँ मैं निरंतर,
नदी के बहाव में तिनके की तरह."
सही कहा.. हम भी इस भीड़ का हिस्सा ही तो हैं |
बहुत ही सार्थक रचना | बहुत अच्छा चित्रण राहुल जी |
मेरे भी ब्लॉग में पधारे, आपका स्वागत है |
मेरी कविता
बहुत ही सार्थक अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबनो मेरा हिस्सा और गुजरो प्रसव पीड़ा से.
ReplyDeleteक्योकि हर भीड़ में कुछ बुद्ध उत्तर पा जाते हैं...
राहुल जी का बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति..
khudh ko talashti ye jindgi....
ReplyDeleteभीड़ में भी कुछ सार्थकता तलाश लेने की कोशिश बुद्ध बना देती है ...
ReplyDeleteसुन्दर भाव !
So nice of you, रश्मि दी. इतने गुनीजनो के बीच मुझे भी स्थान दिया. बहुत खुश हूँ और आपके स्नेह के लिए मेरे शब्द कमतर हैं.
ReplyDeleteऔर उस पर इतने सारे प्यारे साथियों की शुभ-मंगल वर्षा! आह्लादित!
सबके प्रोत्साहन के लिए सादर - प्यार.
@SACCHAI ji, @अशोक जी, @वंदना जी, @ हबीब साहब, @साहनी जी, @सुषमा जी, @कनेरी जी, @सागर भाई, @वाणी जी.
सभी के ब्लॉग से कुछ न कुछ सिखने को, और आप लोगो से मिलना होगा. जरूर पढूंगा. इतने सारे व्यक्तित्व मुझे समृद्ध ही करेंगे.
एक अच्छी सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteगहन चिंतन किया है आपने.
आभार.
रश्मि जी मेरे ब्लॉग को न भूलिएगा,प्लीज.
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी...
ReplyDeleteफिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी...
bahut khoob....
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