तुम्हारा आना
मैं भूल गई
मेरे अन्दर समंदर अपना स्वाद लिए बैठा था
अब तो जो है, तुम्हारी मिठास है ...


रश्मि प्रभा



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मेरे हिस्से की मिठास

मेरे मन के समंदर में
ढेर सारा नमक था
बिलकुल खारा
स्वादहीन
उन नोनचट दिनों में
हलक सूख जाता थी
मरुस्थली समय
जिद्द किये बैठा था
नन्हें शिशु सी मचलती थी प्यास
मोथे की जड़ की तरह
दुःख दुबका रहता था भीतर
उन्ही खारे दिनों में
समंदर की सतह पर
मेरे हिस्से की मिठास लिए
छप-छप करते तुम्हारे पांव
चले आये सहसा
और नसों में घुल गया चन्द्रमा .
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''लिख सकूँ तो - प्यार लिखना चाहती हूँ ठीक आदमजात - सी बेखौफ दिखना चाहती हूँ"
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16 comments:

  1. तुम्हारा आना
    मैं भूल गई
    मेरे अन्दर समंदर अपना स्वाद लिए बैठा था
    अब तो जो है, तुम्हारी मिठास है ...

    वाह ...बहुत खूब कहा है ...भावमय करती अभिव्‍यक्ति ।

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  2. बहुत ही सुन्दर भाव इस रचना के ... अच्छी प्रस्तुति

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  3. सुन्दर भावयुक्त अभिव्यक्ति!! विशिष्ठ प्रस्तुति

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  4. बहुत भावमयी प्रस्तुति।

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  5. मेरे हिस्से की मिठास लिए
    छप-छप करते तुम्हारे पांव
    चले आये सहसा
    और नसों में घुल गया चन्द्रमा kitna sunder likhtin hain aap......

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  6. नसों में घुल गया चन्द्रमा ----अति भाव पूर्ण अभिव्यक्ति | नई -नई उपमाओं से भरा कविता का कलेवर |बधाई !
    सुधा भार्गव

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  7. बेहतरीन रचना

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  8. सच में ये नन्हे कदम भीतर का हर खारापन मिटा देते हैं!
    बहुत मीठी- सी कविता!

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  9. बहतरीन भावनात्मक रचना....जीवन का खरा पन मिटाने के लिए इन नन्हे कदमों की आहट ही काफी होती है....

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  10. भावमयी अभिवयक्ति....

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  11. सुशीला जी की कविता बहुत अच्छी लगी !

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  12. सच में ये नन्हे कदम भीतर का हर खारापन मिटा देते हैं!
    बहुत मीठी- सी कविता!

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  13. वाह!
    अगर मैं कु्छ कह पाऊँ तो इतना कि:-

    "अश्क से गर कोई बना पाता नमक,
    ज़िन्दगी खुशहाल सबकी हो गई होती!"

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  14. उन्ही खारे दिनों में
    समंदर की सतह पर
    मेरे हिस्से की मिठास लिए
    छप-छप करते तुम्हारे पांव
    चले आये सहसा
    और नसों में घुल गया चन्द्रमा .
    बहुत सुन्दर स्वागत

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