मुहब्बत ..... कहाँ मिलते हैं शब्द 
जो बता सकूँ 
कि बता सकूँ 
घड़ी की टिक टिक चलती सुई 
पूरी की पूरी मुहब्बत हो जाती है ........

                        रश्मि प्रभा 



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यदि मेरे तुम्हारे जीवन मे होना भर काफ़ी नही तो तुम्हारा प्रेम
व्यर्थ है
यदि मैं ना हूँ और तुम फिर भी प्रसन्न हो तो तुम्हारा प्रेम व्यर्थ है
मेरे बिना यदि तुम जी सकती हो तो प्रेम कहाँ
मेरे बिना तुम मुस्कुरा सकती हो तो फिर प्रेम कहाँ

दीवानगी किसे कहते हैं पूछो हमसे
पागलपन ना हो मोहोब्बत मे तो वो मोहोब्बत बेकार है
ना दीवानगी बिना प्यार हम करते हैं ना हमे ऐसा तथाकथित प्रेम स्वीकार है

प्रेम होता है बादल और सूखी धरती के बीच
बादल बरसने का वादा करता है और धारा इंतेज़ार करती है
बादल बरसता है धरती की खातिर
और धरती उस पानी से ही बस आबाद होती है

प्रेम होता है अंधेरे और उजाले के बीच
रात की बर्फ़ीली ठंडक को सूरज अपनी गर्मी से तृप्त करता है
रात अपनी ठंडक से सूरज का पसीना पोंछती है
ना रात के बिना उजाला उजाला होता है, ना उजाले के बिना रात रात होती है

प्रेम हो ऐसा कि महबूब बिना हर महल खंडहर लगे
क़ि महबूब संग एक बूँद भी सागर लगे
वो हो तो हर फूल महके
ना हो तो दुनिया कारागार लगे

तो ए मोहोब्बत करने वालों
तब तक प्रेम ना मानो जब तक महबूब   
का जीवन तुम्हारे बिना अधूरा
और उसके बिना तुम्हारी ज़िंदगी खाली लगे

यदि तुम उसके बिना जी सकते हो
तुम मोहोब्बत नही कर सकते

लोग कहते रहे कि प्रेम की भाषायें भिन्न होती हैं
हर किसी के जताने का तरीका अलग मगर
मोहोब्बत आज भी मोहोब्बत है
मोहोब्बत आज भी मोहोब्बत है
यह ना बदली है, ना बदलेगी
अंधेरे का ख़ालीपन केवल उजाला मिटाएगा
धरती की प्यास , केवल बादल से ही बुझेगी

अनुपम ध्यानी 
http://journying.blogspot.in/

16 comments:

  1. यह ना बदली है, ना बदलेगी
    अंधेरे का ख़ालीपन केवल उजाला मिटाएगा
    धरती की प्यास , केवल बादल से ही बुझेगी
    बहुत खूब !!
    अनुपम प्रस्‍तुति

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  2. प्रेम हो ऐसा कि महबूब बिना हर महल खंडहर लगे
    क़ि महबूब संग एक बूँद भी सागर लगे
    वो हो तो हर फूल महके
    ना हो तो दुनिया कारागार लगे

    बिल्कुल सच...
    बहुत सुंदर...

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  3. सही व्याख्या की है आपने प्रेम की...

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  4. प्रेम को बखूबी परिभाषित किया है वाह अति सुन्दर रचना हार्दिक बधाई.
    प्रेम सा आसन न कोई
    प्रेम सा बंधन न कोई
    प्रेम मन को भा गया तो
    प्रेम सा है धन न कोई।।।।।।।।

    सादर
    अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति
    साभार

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    दो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  7. तो ए मोहोब्बत करने वालों
    तब तक प्रेम ना मानो जब तक महबूब
    का जीवन तुम्हारे बिना अधूरा
    और उसके बिना तुम्हारी ज़िंदगी खाली लगे


    सच प्रेम को परिभाषित कर दिया।

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  8. मुहब्बत की परिभाषा तो उसके करने वाले अधिक अच्छी तरह से दूसरा वर्णित नहीं कर सकता है। सब की नजर में मुहब्बत अपनी निजी अनुभूति है।
    --

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  9. ऊपर रेखा आंटी की टिपण्णी से सहमत हूँ .. 'मेरे बिना यदि तुम जी सकती हो तो प्रेम कहाँ' - किन्ही को तो ऐसी मोहब्बत भी होती है कि ताउम्र उसकी बगैर जी लेते हैं, और खुश भी रहते हैं उसके बिना ... भला जब रूह से रूह मिल जाए ... तो भौतिक अलगावा होना और न होना क्या!

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  10. वाह|||
    अद्दभुत वर्णन...
    बहुत ही सुन्दर रचना....
    :-)

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  11. सरस्वतीचंद्र का एक गीत याद आ गया:-

    प्यार सब कुछ नहीं ज़िंदगी के लिये

    सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकार करें

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  12. यदि प्रेम की यह प्यास ढंग से समझ पाते और व्यक्त कर पाते हम मानव तो सब रसरंगमय हो जाता।

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  13. सुन्दर बात

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  14. यदि तुम उसके बिना जी सकते हो
    तुम मोहोब्बत नही कर सकते bahut khub

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