मुहब्बत ..... कहाँ मिलते हैं शब्द
जो बता सकूँ
कि बता सकूँ
घड़ी की टिक टिक चलती सुई
पूरी की पूरी मुहब्बत हो जाती है ........
==========================================================
यदि मेरे तुम्हारे जीवन मे होना भर काफ़ी नही तो तुम्हारा प्रेम
व्यर्थ है
यदि मैं ना हूँ और तुम फिर भी प्रसन्न हो तो तुम्हारा प्रेम व्यर्थ है
मेरे बिना तुम मुस्कुरा सकती हो तो फिर प्रेम कहाँ
दीवानगी किसे कहते हैं पूछो हमसे
पागलपन ना हो मोहोब्बत मे तो वो मोहोब्बत बेकार है
ना दीवानगी बिना प्यार हम करते हैं ना हमे ऐसा तथाकथित प्रेम स्वीकार है
प्रेम होता है बादल और सूखी धरती के बीच
बादल बरसने का वादा करता है और धारा इंतेज़ार करती है
बादल बरसता है धरती की खातिर
और धरती उस पानी से ही बस आबाद होती है
प्रेम होता है अंधेरे और उजाले के बीच
रात की बर्फ़ीली ठंडक को सूरज अपनी गर्मी से तृप्त करता है
रात अपनी ठंडक से सूरज का पसीना पोंछती है
ना रात के बिना उजाला उजाला होता है, ना उजाले के बिना रात रात होती है
प्रेम हो ऐसा कि महबूब बिना हर महल खंडहर लगे
क़ि महबूब संग एक बूँद भी सागर लगे
वो हो तो हर फूल महके
ना हो तो दुनिया कारागार लगे
तो ए मोहोब्बत करने वालों
तब तक प्रेम ना मानो जब तक महबूब
का जीवन तुम्हारे बिना अधूरा
और उसके बिना तुम्हारी ज़िंदगी खाली लगे
यदि तुम उसके बिना जी सकते हो
तुम मोहोब्बत नही कर सकते
लोग कहते रहे कि प्रेम की भाषायें भिन्न होती हैं
हर किसी के जताने का तरीका अलग मगर
मोहोब्बत आज भी मोहोब्बत है
मोहोब्बत आज भी मोहोब्बत है
यह ना बदली है, ना बदलेगी
अंधेरे का ख़ालीपन केवल उजाला मिटाएगा
धरती की प्यास , केवल बादल से ही बुझेगी
अनुपम ध्यानी
http://journying.blogspot.in/
यह ना बदली है, ना बदलेगी
ReplyDeleteअंधेरे का ख़ालीपन केवल उजाला मिटाएगा
धरती की प्यास , केवल बादल से ही बुझेगी
बहुत खूब !!
अनुपम प्रस्तुति
प्रेम हो ऐसा कि महबूब बिना हर महल खंडहर लगे
ReplyDeleteक़ि महबूब संग एक बूँद भी सागर लगे
वो हो तो हर फूल महके
ना हो तो दुनिया कारागार लगे
बिल्कुल सच...
बहुत सुंदर...
सही व्याख्या की है आपने प्रेम की...
ReplyDeleteप्रेम को बखूबी परिभाषित किया है वाह अति सुन्दर रचना हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteप्रेम सा आसन न कोई
प्रेम सा बंधन न कोई
प्रेम मन को भा गया तो
प्रेम सा है धन न कोई।।।।।।।।
सादर
अरुन शर्मा
www.arunsblog.in
अच्छी कविता |
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसाभार
तो ए मोहोब्बत करने वालों
ReplyDeleteतब तक प्रेम ना मानो जब तक महबूब
का जीवन तुम्हारे बिना अधूरा
और उसके बिना तुम्हारी ज़िंदगी खाली लगे
सच प्रेम को परिभाषित कर दिया।
adbhut vyakhya hai
ReplyDeleteमुहब्बत की परिभाषा तो उसके करने वाले अधिक अच्छी तरह से दूसरा वर्णित नहीं कर सकता है। सब की नजर में मुहब्बत अपनी निजी अनुभूति है।
ReplyDelete--
ऊपर रेखा आंटी की टिपण्णी से सहमत हूँ .. 'मेरे बिना यदि तुम जी सकती हो तो प्रेम कहाँ' - किन्ही को तो ऐसी मोहब्बत भी होती है कि ताउम्र उसकी बगैर जी लेते हैं, और खुश भी रहते हैं उसके बिना ... भला जब रूह से रूह मिल जाए ... तो भौतिक अलगावा होना और न होना क्या!
ReplyDeleteवाह|||
ReplyDeleteअद्दभुत वर्णन...
बहुत ही सुन्दर रचना....
:-)
सरस्वतीचंद्र का एक गीत याद आ गया:-
ReplyDeleteप्यार सब कुछ नहीं ज़िंदगी के लिये
सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकार करें
यदि प्रेम की यह प्यास ढंग से समझ पाते और व्यक्त कर पाते हम मानव तो सब रसरंगमय हो जाता।
ReplyDeleteसुन्दर बात
ReplyDeleteयदि तुम उसके बिना जी सकते हो
ReplyDeleteतुम मोहोब्बत नही कर सकते bahut khub