व्यवस्थित सोच
सुनामियों के दौर दिखाती है
सर से गुजर जाये जब पानी
तो फिक्र को लम्बी सांस ले
फूंक देना ही वाजिब है ....
कितना अजीब है !
मिलना निमन्त्रण
भूतपूर्व पत्नी की
शादी पर !!
जैसे कि
याद दिला दिया उसने
कैसे कैसे स्वप्न थे मेरे !
कि पत्नी भी बन पाये प्रेमिका
पर छोड़ो यार !
कहाँ की लजाती मुस्कान और
शौख अदाये!
नहीं बन पाई थी वह
रूक्मणी से राधा !
देना पड़ा था तलाक
क्योंकि मैं उसे
कैसे संभालता
जब वह छटपटा रही थी
बीमारी से
देख कर दिमाग धुँआता था कुहरे में
कि किसी गाय की रंभाहट लगता था
उसका चिल्ल्लाना !
उलझने क्या सुलझती
जब कोई एहसास नहीं हुआ
कि हो पाये सुलह हम दोनो में
पर खबरदार ! जो मुझे मक्कार, धूर्त समझा तो
पत्नी बीमार थी तो क्या
मैं उसका साथ देता !
हाँ , उस पर किये अहसानों के बदले
मैंने अपने पास रख ली है
हमारे शिशु की मासुम हँसी
चहकना, क्रन्दन और गुंजन
किस्मत से ले लिया मैंने
प्रतिशोध ऐसा
कि उसे माँ से मिलने नहीं दिया
वह तो केवल
अपनी ऊँगलियां
समय की रेती पर ।
हथकड़ी बन गये थे
हमारी शादी के बन्धन
क्योंकि वह परले दर्जे की
स्वार्थी है
यह निमन्त्रण
कोई मुझे जलाने की तरकीब नहीं
उसकी चालाकी है
कि इस बहाने
हमारे… पर अब सिर्फ़ मेरे शिशु को
साथ लाऊँगा
और वह देख लेगी उसे
जी भर कर अपनी आँखों से
लगा पायेगी कलेजे से
पकड़ा दिया है मुझे यह
निमन्त्रण !
ओह , ऐसा भी होता है ?
ReplyDeleteअजब दास्ताँ पढी है आज तो
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन !!
ReplyDeleteuff....kaisa dard...
ReplyDeleteचलिए आपने ऐसा कुछ लिखने की हिम्मत तो की
ReplyDeleteऔर भी कमाल है कि किसी ने आपको झूठा नहीं कहा,
चौंके ज़रूर,
मगर पीठ सहला कर बख़्श दिया ।
शायद आपकी उम्र उनसे लिहाज़ करवा गयी....
सच्चाई से लिखी हुई रचना , अब पता नहीं ये सत्य है कि कल्पना की उड़ान |
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद मित्रों! अपनी धूर्तता को अनदेखा करके इंसान
ReplyDeleteकैसे कैसे दोषारोपण करता है !
उत्कृष्ट लेखन ...
ReplyDeleteनहीं बन पाई थी वह
ReplyDeleteरूक्मणी से राधा !
..क्या यही उसका दोष था?