यह अँधेरा अँधेरा नहीं 
सूरज उसके पीछे से झांकता है हर दिन 
दौडाता है किरणों के रथ 
सोने से पूर्व दे जाता है पद चिन्ह 
और यह सन्देश - 
कि सूरज तुम्हारे भीतर है 
भय के अन्धकार पर विजय पाओ 
फिर मंजिल सामने खडी मिलेगी



रश्मि प्रभा 
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सूरज की किरणें
देती सतत संदेश,
तम का आवरण
हटा कर प्रकाशित
करो निज के अंतस को !

वायु का प्रवाह
जैसे देता जीवन को
नव संचेतना ,
भर दो जग में
अप्रतिम संचार !!

नदी की धारा
सिखाती हमें ,
निरंतर गति ही
है जीवन का मूल
और प्रगति का मन्त्र !!

चाँद की शीतलता
भरती हृदय में  भाव ,
बनो तुम विनम्र
कितने ही मिलें तीक्ष्ण
और कठोर क्षण !!

डिगे न कभी तुम्हारा
धैर्य और टूटे न
हिम्मत की डोर ,
सहन शक्ति का संदेश
देता यह धरती का धैर्य !!

जब सभी शक्तियाँ
और करने की क्षमता,
है तुम्हारे पास,
तो चल पड़ो अपनी
मंजिल की ओर!
है जो आतुर फैलाये
बाहें तुम्हारे स्वागत के लिए !

6 comments:

  1. डिगे न कभी तुम्हारा
    धैर्य और टूटे न
    हिम्मत की डोर ,
    सहन शक्ति का संदेश
    देता यह धरती का धैर्य !!
    वाह ... बेहतरीन
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    आभार सहित

    सादर

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  2. जब सभी शक्तियाँ
    और करने की क्षमता,
    है तुम्हारे पास,
    तो चल पड़ो अपनी
    मंजिल की ओर!
    है जो आतुर फैलाये
    बाहें तुम्हारे स्वागत के लिए !
    हिम्मत बढ़ा गई ये पंक्तियाँ :))
    शुभकामनायें !!

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  3. सुन्दर लेखनी !!!

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  4. bhut khoob....sabhi ne bhut acha likha bt muje Mukesh K Sinha ji ki kavita sabse achi lagi coz unhone bhut saralta se bachpan ka sajeev chitran kiya ....hum sab kabhi na kabhi bachpan mein yeh sab karte ..:)

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  5. वाह ! सभी एक से बढ़ कर एक उत्कृष्ट रचनाएं ! आभार इन्हें हम तक पहुँचाने के लिए !

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  6. हिम्मत न हारना और धैर्य , मंजिल पाने के लिए दो सबसे जरूरी तत्व , सुन्दर रचना |

    सादर

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