दुनिया से असुरों का विनाश तुम्हारा,हमारा कर्तव्य है . विभीषण को 'घर का भेदी' कहकर हमसब लांछित करते रहे हैं .... पर कभी सोचा कि विभीषण न होता तो रावण का अंत नहीं होता ! तुमने,हमने विभीषण की इतनी आलोचना की कि एक एक सर करके पुनः दशानन जिंदा हो गया - हर शहर,हर गाँव,हर रास्ते पर . निंदक,कुछ भी कहनेवाला धोबी के वेश में जब सतयुग में मौजूद था तो कलयुग की बात ही क्या है . इसलिए महत्वपूर्ण इसे बनाना,मानना छोड़ दो - अपने दिल दिमागी जज़्बे पर गौर करो ..... किस कौन की प्रत्याशा में कब तक पेट भरोगे ? एक बार आस पास नज़र घुमाओ - दामिनी, जस्सिका,रीता,सुजाता कईयों के शून्य चेहरे दिखेंगे - क़ानूनी न्याय से पहले अपने स्नेहिल स्पर्श का न्याय तो दो ........... उन गलीच मूर्खों को तमाचा लगाओ,जो कहते हैं -
इज्ज़त चली गई ...
पिछले कुकर्मों की सजा मिली लड़की को
और जाये पिक्चर देखने ...
अरे इज्ज़त गयी उस वंश की - जिनके इतने गए गुजरे बेटे थे
कुकर्म करनेवालों के लिए जुबान नहीं खुलती
लड़की की साँसों का हिसाब उसकी माँ ..... सिर्फ माँ करेगी
गुलमर्ग लहुलुहान हो जाता है तो लोग अपनी छुट्टियां वहां मनाने नहीं जाते पर अपने घर में फूल लगाना बंद नहीं कर देते न ! फूल लगते हैं,सींचते हैं - आंधी तूफ़ान से उसे बचाते हैं .......................... तात्पर्य यह कि एक फूल तो बचाओ एक एक करके . डरो मत .... रक्तबीज कितने भी हों,तुम रक्तदंतिका बनो - अपने स्व का आह्वान करो, ईश्वर उस स्व में सारी शक्ति प्रतिष्ठित करेंगे . दामिनी तुम्हारी शारीरिक तकलीफ को राहत मिले - पर मन से अपने स्व पर गर्व करना,क्योंकि तुम मासूम हो - दरिंदा नहीं .
आह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
दामिनी - हम सब तुम्हारे सिरहाने दुआओं के संग खड़े हैं , तुम रोना मत - बिलकुल नहीं .
कानून भले ना संहार करे,खेल जाये घृणित राजनीति - पर हर 'माँ' का आशीष तुम्हारे साथ है . और सही अर्थ में जो हैं पिता,भाई - वे भी तुम्हारे साथ हैं ............
विचारों की मशाल लिए तुम्हारे अपने,शुभचिंतक खड़े हैं तुम्हारे साथ -
मेरी गजल की कुछ पंक्तियाँ है और यही सत्य भी है, कि-
जज़्बात पर हावी यकीनन धाक हो गयी है
दिल्ली की सल्तनत बड़ी नापाक हो गयी है ।
नुमाइंदे आवाम के बसते हैं जिस शहर में-
इज्जत-हिफाजत उस शहर की खाक हो गयी है ।
सरकार कहती है अमन है चैन है चारो तरफ-
फिर दामिनी की आबरू क्यों चाक हो गयी है ?
मत करो अब न्याय की उम्मीद उस सरकार से-
जिसकी आग ही इंसानियत की राख़ हो गयी है ।
सोचो, जरा सोचो कि कैसे तख्त पलटा जाएगा-
जिस तख्त से जख्मी हमारी नाक हो गयी है ?
दिल्ली की पाशविक घटना से हम स्तब्ध भी हैं , और दुखी भी | क्रोध भी आ रहा है और घृणा भी हो रही है।
ऐसी घटनाओं की बार-बार पुनरावृति होने की दो वजहें है,एक तो पितृसत्ता के इस समाज ने तमाम तरीको से स्त्री-पुरुष विभाजन को गहरा और असंतुलित कर रखा है , जिसमें पुरुष होने मात्र से आपको बहुत कुछ प्राप्त हो जाता है , और महिला होने मात्र से आप एक संकुचित दायरे में सिमट कर रह जाते है | साथ ही राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नेतृत्व की अक्षमता/उदासीनता ने ऐसी प्रवृतियों की आग मे घी डालने का काम कर रही है । जरूरी है कि हम अपनी सामूहिक प्रतिरोध की क्षमता को इतना बढ़ा दें कि समाज का कोई भी दरिंदा हमारी बहू-बेटियों पर आँख उठाने का दुस्साहस ही न कर सके ।
मेरी गजल की कुछ पंक्तियाँ है और यही सत्य भी है, कि-
जज़्बात पर हावी यकीनन धाक हो गयी है
दिल्ली की सल्तनत बड़ी नापाक हो गयी है ।
नुमाइंदे आवाम के बसते हैं जिस शहर में-
इज्जत-हिफाजत उस शहर की खाक हो गयी है ।
सरकार कहती है अमन है चैन है चारो तरफ-
फिर दामिनी की आबरू क्यों चाक हो गयी है ?
मत करो अब न्याय की उम्मीद उस सरकार से-
जिसकी आग ही इंसानियत की राख़ हो गयी है ।
सोचो, जरा सोचो कि कैसे तख्त पलटा जाएगा-
जिस तख्त से जख्मी हमारी नाक हो गयी है ?
जज़्बात पर हावी यकीनन धाक हो गयी है
दिल्ली की सल्तनत बड़ी नापाक हो गयी है ।
नुमाइंदे आवाम के बसते हैं जिस शहर में-
इज्जत-हिफाजत उस शहर की खाक हो गयी है ।
सरकार कहती है अमन है चैन है चारो तरफ-
फिर दामिनी की आबरू क्यों चाक हो गयी है ?
मत करो अब न्याय की उम्मीद उस सरकार से-
जिसकी आग ही इंसानियत की राख़ हो गयी है ।
सोचो, जरा सोचो कि कैसे तख्त पलटा जाएगा-
जिस तख्त से जख्मी हमारी नाक हो गयी है ?
दिल्ली की पाशविक घटना से हम स्तब्ध भी हैं , और दुखी भी | क्रोध भी आ रहा है और घृणा भी हो रही है।
ऐसी घटनाओं की बार-बार पुनरावृति होने की दो वजहें है,एक तो पितृसत्ता के इस समाज ने तमाम तरीको से स्त्री-पुरुष विभाजन को गहरा और असंतुलित कर रखा है , जिसमें पुरुष होने मात्र से आपको बहुत कुछ प्राप्त हो जाता है , और महिला होने मात्र से आप एक संकुचित दायरे में सिमट कर रह जाते है | साथ ही राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नेतृत्व की अक्षमता/उदासीनता ने ऐसी प्रवृतियों की आग मे घी डालने का काम कर रही है । जरूरी है कि हम अपनी सामूहिक प्रतिरोध की क्षमता को इतना बढ़ा दें कि समाज का कोई भी दरिंदा हमारी बहू-बेटियों पर आँख उठाने का दुस्साहस ही न कर सके ।
जिन लोगों को स्त्री के वस्त्र और उसका खुले में घूमना या साँस लेना स्वीकार्य नहीं, वे वही लोग हैं जिन्हें अपने पर संयम नहीं। ऐसे असंयमी लोग अपने लिए बुर्के तलाश लें और ऐसे समय बाहर निकला करें जब संसार की हर औरत सो चुकी हो। या फिर बाहर निकला ही न करें।
ऐसे असंयमी पशुओं को अपने असंयम के चलते मनुष्यों को दड़बे में बंद करने का कोई अधिकार नहीं। जंगली पशु को दड़बे/पिंजरे/सलाखों में बंद किया जाता है, न जंगली पशुओं से बचाए जाने वालों को
vandana gupta
आज जरूरी है सबसे पहले महिला को ही सक्षम बनाना वो भी मानसिक और शारीरिक रूप से भी ताकि ऐसा वक्त आने पर मुकाबला कर सके और सामने वाले के हौसले भी पस्त हो सकें क्योंकि बलात्कारी यही सोच कर इस कार्य को अंजाम देता है कि अबला है, कमजोर है उस पर काबू पाना आसान होगा।
दूसरी बात ऐसे लोगों को सिर्फ़ फ़ांसी देने से कुछ नही होगा ऐसे लोगों को जनता के सामने डाल देना चाहिये जनता खुद न्याय कर देगी शायद उसका हश्र देखकर दूसरे लोग ऐसा कुकर्म करने से पहले 100 बार सोचेंगे।यहाँ तक कि वो ज़िन्दा भी रहे और हर पल मरता भी रहे ऐसी सज़ा मिलनी चाहिये तब जाकर समझ आये कि एक स्त्री की अस्मत से खेलना क्या होता है।
तीसरी बात सभी मर्द एक जैसे नहीं हैं हम सब जानते हैं और ऐसी घटनाओं से वो भी उतना ही आहत होते हैं इसलिये सबको मिलजुलकर सम्मिलित प्रयास करना चाहिये जहाँ भी ऐसी कोई घटना देखे ना कि आँख मूंदकर निकल जाये क्योंकि वक्त का नही पता कल किसके साथ क्या हो आज हम एकजुट होंगे तो उन वहशियों को एक संदेश जायेगा वरना देखिये चाहे मैट्रो हो या बस वहाँ कौन सी महिलायें सुरक्षित हैं वहाँ भी उनके साथ बदतमीज़ी होती है और हम मूकदर्शक बने देखते रहते हैं यदि वहीं से आवाज़ उठानी शुरु कर दें तो शायद ये दिन ना देखना पडे।
चौथी बात हमारी न्याय व्यवस्था और कानून इतने सख्त होने चाहियें कि पीडित को जल्द से जल्द न्याय मिल सके ना कि तारीखों मे उलझा रहे और मानसिक तनाव से गुजरे ये तो उसके साथ दोहरा अन्याय ही हुआ ना।
आज मीडिया के माध्यम से फ़ैलती अश्लीलता ने ऐसे कार्यों मे इज़ाफ़ा ही किया है जिसका नतीज़ा स्त्री भुगत रही है । क्या जरूरी है स्त्री को प्रोडक्ट की तरह दिखाना या सैक्स सीन दिखाना फिर चाहे विज्ञापन हों या सीरियल जब तक इन पर लगाम नहीं लगेगी ऐसी घटनायें होती रहेंगी क्योंकि कुछ लोग सही और गलत मे फ़र्क ही नही कर पाते और जो देखते हैं वैसा हि समझ कर गलत कार्य की ओर अग्रसर हो जाते हैं जो समाज के लिये बेहद घातक है जिसका दुष्परिणाम हमारे सामने है।
और सबसे जरूरी चीज़ हमें अपने घरों से शुरुआत करनी चाहिये अपने बच्चों को सही संस्कार देने की , औरत की इज़्ज़त करने की जब तक ऐसा नही होगा आगे आने वाला वक्त और खराब होगा । अब ये हम पर है कि हम अपने समाज को क्या देना चाहते हैं और कैसा बनाना चाहते हैं
जब तक ऐसे जरूरी कदम नही उठाये जायेंगे तब तक किसी बहस का कोई परिणाम नहीं निकलने वाला।
sadhana vaid
दिल्ली में जो हृदयविदारक घटना घटी है उससे मन बहुत ही व्यथित एवं चिंतित है ! नारी घर और बाहर, गृहस्थी और कैरियर की जिस सीमा रेखा पर खड़ी है उसके एक ओर कुआ है तो दूसरी ओर खाई ! एक ओर रूढ़ियों. मर्यादाओं और पाबंदियों का अंधेरा है तो दूसरी ओर सब कुछ बहुत ही अनजाना, अपरिचित और संदेहास्पद है ! घर के अंदर के रास्ते जाने पहचाने तो हैं लेकिन स्वीकार्य नहीं क्योंकि यहाँ नारी अपनी पहचान को खो देने के भय से ग्रस्त है ! बाहर की दुनिया आकर्षक और मनमोहक तो है और वहां स्वयं को सिद्ध करने के लिए विकल्प भी ढेरों हैं लेकिन सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है ! पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम किये हुए बिना आदमखोर और हिंसक पशुओं से भरे जंगल में अकेले घुस जाने की तरह ही यह जोखिम से भरा हुआ कदम है ! कितने लोग यहाँ भद्र पुरुष का मुखौटा लगाए आपके आस-पास घात लगाए घूम रहे हैं कल्पना करना मुश्किल है ! फिर दिल्ली में जो घटना घटी उसमें तो वह लड़की अकेली भी नहीं थी ! उसका एक पुरुष मित्र भी उसके साथ था ! क्या कर पाया वह ? तो क्या इतनी सुरक्षा पर्याप्त नहीं थी ? क्या घर से बाहर सुरक्षा गार्डों की फ़ौज लेकर निकलना होगा लड़कियों को ? घर से पति, पिता या भाई के संरक्षण में ही तो निकल सकती है लड़की ! क्या वे सब साधारण इंसान नहीं आसुरी शक्तियों से लैस कोई दैत्य हैं ? कैसे रक्षा कर पायेंगे ? यह हम कैसे समाज में जी रहे हैं आज ?
यहाँ अपना वर्चस्व सिद्ध करना है तो लड़कियों को भी अपने लिए आचार संहिता बनानी होगी ! अपने ऊपर कुछ संयम, कुछ नियम और कुछ पाबंदियां लगानी होंगी ! शालीन ढंग से रहें, आधुनिकता की अंधी दौड़ में ऐसे फैशनेबिल परिधान ना पहने जो लोगों को फब्तियाँ कसने के लिए उत्तेजित करें और जब तक पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम ना हों बेवजह समय कुसमय घर से बाहर ना रहें ! नौकरी के लिए बाहर जाना तो आवश्यक है लेकिन जब हमारे आस-पास का वातावरण इतना दूषित है तो पिक्चर देखने के लिए भी घर बाहर जाया जाए यह भी तो ज़रूरी नहीं ! यह नारी के लिए सबसे मुश्किल संक्रमण काल का दौर चल रहा है ! निर्णय भी उसीको लेना है ! घर में सुरक्षा है तो बाहर खतरे ही खतरे हैं ! उनसे कैसे निबटना है इसके लिए सुनियोजित योजना बनाने के और सुरक्षा के पक्के इंतजाम भी उसीको करने होंगे !
Vani Sharma
Saras Darbari
इस किस्म की घटनाएं तब तक नहीं रुक सकती जब तक विकृत मानसिकता के लोग समाज में इस भय से मुक्त हैं की कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता ..बहुत होगा एक आध रोज़ के लिए लोक-अप में बंद कर देंगे ...थोडा शोर मचेगा ..थू थू होगी और थोड़े दिनों बाद लोग फिर अपने रोज़ मर्रा के जीवन में व्यस्त हो जायेंगे ...तब तक हम कोई नया शिकार ढूंढ लेंगे...
'अगर इसके खिलाफ कोई ठोस कदम उठाना ही है ...तो एक ऐसी सज़ा तजवीज़ की जाये जिससे इन दरिंदों की रूह काँप जाये....जो इस कृत्य को करने से पहले इसके अंजाम से खौफ खाएं' ...और यह तभी मुमकिन है जब सरकार...समाज और स्वयं म ...एकजुट होकर उनकी सज़ा तै करें ...और उन्हें वह सज़ा दिलाकर ही छोडें ....कुछ देशों में यह अपराध बिलकुल नगण्य है क्योंकि उसकी सज़ा बहुत भयानक है ...हमें भी कुछ ऐसा ही करना होगा .....फांसी तो बहुत मामूली सी सज़ा है ...इन लोगों को ऐसा करके छोड़ देना चाहिए ...की जब अपने आप को देखें तो उस पल को कोसें जब यह कृत्य करने की ठानी थी ...और दूसरा कोई इनकी हालत देखकर सपने में भी ऐसा करने से घबराये.
अंजु(अनु)
साधारण सी ही घटती है
पर अपने आप में गहरे अर्थ,
ढेर सारा विमर्श और
ढेर सारी करुपता लिए हुए
और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
करुणा,करुणा और करुणा
क्या अब इसके अतिरिक्त भी
मेरा कोई जीवन होगा ?
चाहे फेसबुक का प्रोफाइल पिक्चर काला करिए या अपना चेहरा.... मुझे नहीं लगता यह सब करने से कुछ बदलने जा रहा है, बेहतर है कोशिश करें कि अपने मन के कालेपन को बदलें, दिल और दिमाग में मोमबत्ती जलाएं।
दिव्या
हे शक्ति स्वरूपा
क्या अब भी मौन रहोगी
क्या यही सच है कि--
देवियाँ बोला नहीं करती
सुनो शक्ति वाहिनी
बस अंश मात्र शक्ति दो
इन दुशासनों का वक्ष चीर
इनके रुधिर से केश भिगो लूँ
इन रक्तबीजों का रक्तपान करूँ
अगर एक बूंद भी दूषित रक्त की
रह गई तो न जाने कितने
रक्तबीज उठ खड़े होंगे ---और
फिर कैसे कोई बेटी करेगी
अपने ही माँ जाए पर विश्वास
कैसे लिपट के रो सकेगी
अपने ही पिता के वक्ष से
बाप भाई का स्नेहिल
स्पर्श भी उन्हें चौंका देगा
एक अनजाने भय से
वो भी तो पुरुष ही है न
वो नराधम भी तो
पुरुष ही हैं जो कामांध हो
अपना पौरुष दिखाते हैं
जबरन बलात्कार कर के
उस समय निसहाय की
पीड़ा भरी आँखों में क्या
एक पल को भी अपनी
बहन बेटी माँ नहीं दिखती
कुंठित वीभत्स कलुषित
मानसिकता वाले इन
असुरों का विनाश
करना ही होगा -
इनके जीवित रहने से
माएं लज्जित होंगी
अपनी ही कोख से
इसी कोख से ही तो
जन्म लेते हैं इसको
गाली देने वाले भी
वरना बाप भाई अपनी
ही बेटियों और बहनों से
आँखे नहीं मिला पायेंगे
भारत देश की ये परंपरा रही है के अगर घर की बेटी पर आंच आती है तो कमजोर से कमजोर बाप भी कुछ करने की सोचता है ,अगर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति देश के सबसे बड़े ओहदे है और जानता के पिता की तरह हैं तो देश की एक बेटी का सामूहिक बलात्कार हुआ है तो इनका चुप बैठना शर्मनाक है और
नेताओं द्वारा भारत माता का बार बार गैंग रेप रोज हो रहा है ,ये उन लोगों के लिए शर्मनाक है जो अब भी भारत माता की जय का नारा बड़ी शान से लगा रहें है |
आज कल ऐसे कुकृत्यों की घटनाएँ निरंतर बढ़ रही हैं लेकिन ऐसे जघन्य अपराध पर अंकुश लगने की बजाय घटनाएँ और बढ़ रही हैं। देश में ही नहीं विदेशी महिला मेहमानों के साथ भी ऐसे कुकृत्य किये जा हैं और हम अपनी को रोज के रोज हुई इन घटनाओं से देश का सम्मान खोते चले जा रहे हैं। आज से 3 साल पहले कानपूर में 11 साल की बच्ची पर साइंस लैब में ऐसा ही आमानुषिक कुकृत्य किया गया था। उसको उसी हालत में स्कूल की आया माँ के अनुपस्थिति में बाहर पड़ी चारपाई पर डाल कर चली आई थी और उसके बाद वह चल बसी। उसके अपराधी आज भी सरकारी मेहमान है . अब अगर ये आवाजें इसी तरह से उठती रहीं तो कोई न कोई ऐसा क़ानून जरूर बनेगा कि ऐसे लोगों के कुकृत्यों पर अंकुश लग सकेगा . न बनने तक ये आवाज दबनी नहीं चाहिए . कहीं न कहीं हम भी अपनी बेटियों के लिए हमेशा सशंकित जी रहे है और हमारी बच्चियां वे तो सहमी हुई हैं।
ये संविधान में मिले मौलिक अधिकार का हनन है और उसके खिलाफ अगर आवाज उठाई जा रही है तो उनके दमन में कोई भी कोर कसर पुलिस और सरकार नहीं छोड़ना चाहती है। लगता है कि अपनी असफलता और क़ानून और सुरक्षा की व्यवस्था के प्रति आ रहे आरोपों को सरकार पचा नहीं पा रही है . चंद लोगों के लिए अति सुरक्षा की जा रही है और आम आदमी की सुरक्षा के प्रति हो रहे खिलवाड़ को शायद किसी भी सुरक्षा की दरकार नहीं। जहाँ अपने ही देश में बेटी और बहनें सुरक्षित न हों तो समाज में कौन सुरक्षित है? क्या हम फिर से बाल विवाह , नारी अशिक्षा और कन्या हत्या के लिए मजबू र नहीं हो जायेंगे ? अपनी बेटी या बहन को इस तरह से तो शायद ही कोई देखना चाहेगा।
अब तो ऐसी ही कोई मुहीम जरूरी है जिससे ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोगों को सर उठाने से पहले ही कठोर दण्ड के भय से भयभीत कर जाय .
आज कल ऐसे कुकृत्यों की घटनाएँ निरंतर बढ़ रही हैं लेकिन ऐसे जघन्य अपराध पर अंकुश लगने की बजाय घटनाएँ और बढ़ रही हैं। देश में ही नहीं विदेशी महिला मेहमानों के साथ भी ऐसे कुकृत्य किये जा हैं और हम अपनी को रोज के रोज हुई इन घटनाओं से देश का सम्मान खोते चले जा रहे हैं। आज से 3 साल पहले कानपूर में 11 साल की बच्ची पर साइंस लैब में ऐसा ही आमानुषिक कुकृत्य किया गया था। उसको उसी हालत में स्कूल की आया माँ के अनुपस्थिति में बाहर पड़ी चारपाई पर डाल कर चली आई थी और उसके बाद वह चल बसी। उसके अपराधी आज भी सरकारी मेहमान है . अब अगर ये आवाजें इसी तरह से उठती रहीं तो कोई न कोई ऐसा क़ानून जरूर बनेगा कि ऐसे लोगों के कुकृत्यों पर अंकुश लग सकेगा . न बनने तक ये आवाज दबनी नहीं चाहिए . कहीं न कहीं हम भी अपनी बेटियों के लिए हमेशा सशंकित जी रहे है और हमारी बच्चियां वे तो सहमी हुई हैं।
ये संविधान में मिले मौलिक अधिकार का हनन है और उसके खिलाफ अगर आवाज उठाई जा रही है तो उनके दमन में कोई भी कोर कसर पुलिस और सरकार नहीं छोड़ना चाहती है। लगता है कि अपनी असफलता और क़ानून और सुरक्षा की व्यवस्था के प्रति आ रहे आरोपों को सरकार पचा नहीं पा रही है . चंद लोगों के लिए अति सुरक्षा की जा रही है और आम आदमी की सुरक्षा के प्रति हो रहे खिलवाड़ को शायद किसी भी सुरक्षा की दरकार नहीं। जहाँ अपने ही देश में बेटी और बहनें सुरक्षित न हों तो समाज में कौन सुरक्षित है? क्या हम फिर से बाल विवाह , नारी अशिक्षा और कन्या हत्या के लिए मजबू र नहीं हो जायेंगे ? अपनी बेटी या बहन को इस तरह से तो शायद ही कोई देखना चाहेगा।
अब तो ऐसी ही कोई मुहीम जरूरी है जिससे ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोगों को सर उठाने से पहले ही कठोर दण्ड के भय से भयभीत कर जाय .
ये शर्म की बात है कि देश की राजधानी में एक लड़की के साथ चार्टर्ड बस में छेड़छाड़ फिर मारपीट और सामूहिक बलात्कार .
Ankita Chauhan
तुम महा-मानव हो
तुम सब कुछ हासिल कर सकते हो
यही सोच कर तुमने कदम बढाए थे
एक चीटी को कुचल देने के लिए
पर वो चीटी नहीं थी
और तुम महा-मानव नहीं
तुम्हे शायद इसका कभी पश्चाताप भी नहीं होगा
पर वो फिर कभी ज़िंदा ना हो पायेगी
किशोर कुमार खोरेन्द्र
माँ का दूध लजाया तुम ने, उससे की गद्दारी
घड़ा पाप का भर ही चुका ,अब फूटने की तैयारी
तुम और तुम से है जो भी , सज़ा पाने की उनकी आई बारी
अबला पाकर बल समाज का हुई सबला , खोई लाचारी
खत्म करो नहीं रखना इन को, ये है समाज की बीमारी
दोजख में भी तुम्हे जगह ना होगी ,सुन लो अस्मत के व्यापारी
Ilesh shah
जिस लड़की पे बलात्कार हुआ ये हमारा देश का पहला वाक़या तो नही हे लेकिन जन जागृति अब जो उमड़ी हे उसका फ़ायदा लेते हुए सरकार से बलात्कारी को कड़ी से कड़ी सज़ा मिले ऐसा क़ायदा करवाने मे उठाना चाहिए .ना सिर्फ़ ऐसा लॉ बने मगर उसका अमल भी सख्ती से होना चहिये. फाँसी की सज़ा मेरे हिसाब से बहोत कम हे क्यूंकी फाँसी लगने से बलात्कारी कुच्छ समय का दर्द पा के छूट जाएगा लेकिन सज़ा भी ऐसी दर्दनाक हो की बलात्कार करने से पहले इंसान कई बार सोचेने पे मजबूर हो जाए बलात्कार ही नही किसी लड़की या औरत को छेड़ने से भी डरे . बलात्कार पीड़ित के प्रति हमदर्दी नही लेकिन ज़िम्मेवारी से उसके साथ व्यवहार करना चाहिए क्यूंकी हमदर्दी से उसके अंदर के जख्म ज़्यादा गहरे होते हे उसको ए एहसास होता रहता हे की उसके साथ जो हुआ उसी के कारण हमदर्दी मिल रही और वो खुद मे सिमट के रह जाती हे .इस लिए ज़िम्मेवारी से उसके साथ किया व्यवहार उसको इस कृत्य से बाहर ले आने मे मदद करेगा. और जैसा की आगे कहा दरिंदो को सज़ा ऐसी जो उन्हे अपनी दरिंदगी का एहसास जीए तबतक चैन से जीने ना दे. पुराने जमाने की कई सज़ा सायद हम वाइट कॉलर लोगो को अच्छी ना लगे लेकिन ऐसे मामलो मे सज़ा तो ऐसी ही होनी चाहिए जैसे की प्राइवेट पार्ट काट लिया जाए और ज़िंदगी भर उन दरिंदो को एहसास रहे की उन्होने ग़लत किया था और आगे भी कोई करने से पहले सो बार सोचे .
meenakshi dhanwantri
इंसान हूँ इंसान के ही एक कुकृत्य से शर्मसार हूँ ....
चाहती हूँ इस दुष्कर्म के लिए मिले उन्हें मृत्युदंड ....
सिर्फ एक दिन नहीं हर रोज़ की मौत.... आजीवन मृत्यु दंड ...
जिस तरह से मासूम लड़की के अंग भंग हुए उसी तरह
उनके भी अंग भंग किए जाएँ ......
पल पल तिल तिल कर उन्हें मार कर ज़िन्दा रखा जाए...
उनमें कौन से रसायन कब और कैसे बदलते है
हो अध्ययन उनके दिल और दिमाग़ का ...
क्यों वे ऐसा दुष्कर्म करने से पहले एक पल भी नहीं सोचते ... !
RAJESH KUMARI
(1) आग किसी के घर में लगी हो तो दूसरा यही सोचता है मैं क्यूँ जाऊं बुझाने ,अरे ये आग तो घर घर में लगी है
सभी की माँ, बहन ,बेटियाँ हैं , एक जुट होकर इस गंदगी को साफ़ करें |
(2) उम्र कैद में क्या हमें नहीं पता कुछ सालों बाद ये कुत्ते फिर बाहर आयेंगे फिर हड्डियां तलाशेंगे एक
बलात्कार की भी वो सजा दस बीस करेंगे तो भी वही सजा ,और जेल में भी अपनी
सुविधाएं मिल जुल कर बना लेते हैं तो क्या सजा हुई ,इनको तो उसी तरह टार्चर करके मौत के घात उतरना
चाहिए ,सरे आम फांसी दे सरकार|
(3) जब कुत्ता पागल हो जाता है तो क्या उन्हें शूट नहीं किया जाता ? यही हो इन अपराधियों की सजा|
(4) शरीर का कोई अंग खराब हो जाए तो उसे काट दिया जाता है, ये भी समाज के संक्रमित अंग हैं |
(5) बदलाव हमे घरों में बच्चों की परवरिश में लाना है पहले हम लड्के ,लड़कियों को घर में सबके सुबह सुबह
चरण स्पर्श सिखाया जाता था ,आज के वक़्त में जो ऐसा करता है उसे पुराने विचारो का कहकर उपहास बनाते
हैं ,फिर नारियों का, बड़ों का सम्मान बच्चों के दिलों में कहाँ से आएगा ?
(6) शिक्षण संस्थानों में सेक्स शिक्षा पर अक्सर बाते होती हैं ,अरे पहले सब संस्थानों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य
करो |
(7) हमारे समाज में गन्दी सोच पैदा कर रही हैं वो हैं पोर्न फिल्मे उन पर बैन क्यूँ नहीं लगते घर घर में ,साइबर
कैफे पर इंटरनेट से बच्चे कौन सी साईट देखते हैं कभी सोचा ?? क्यूँ अपने
देश में इन साईट पर बैन नहीं ??
(8) इन घटनाओं को जो अंजाम देते हैं उनमे बेरोजगार ,अनाथ ,गुंडे प्रवार्तियों लोग ज्यादा शामिल हैं उन्हें तो
कानून का कोई डर खौफ है ही नहीं, क़ानून, पुलिस ऐसे लोगों पर विशेष पैनी नजर रखे |
(9) स्त्रियों को भी निडर होना पड़ेगा आत्म रक्षा के लिए चाहे कोई अस्त्र ही साथ में लेकर चलना पड़े अगर
सरकार नारियों की सुरक्षा नहीं कर सकती तो उन्हें अस्त्र रखने की इजाजत दे जिससे वो एकांत में भी स्वरक्षा
कर सके |
(10) क़ानून में बदलाव कर प्रशासन ,निष्पक्ष होकर ऐसे न्रशंस अत्याचारियों ,बलात्कारियों को सरे आम फांसी
दे।
Sanjh Parashar
aise khayal apne man mai laaye to uski ruh kaanp jaaye, saja ki soch
kar
1. Sabse pehle in kamino ke guptang ko sareaam kat diya jaye
2. Inki body parts ko nikal diya jaaye jaise kidny eyes taki wo kisi
jarurat mand ke kaam aasaken
3.inki saari property nilaam ki jaaye
4. In kamino ko ya to kahin sunsaan beehad main bandh kar tang diya
jaaye or kamine ki ek ek boty ko jab tak panchi or kutte noch noch ke
khayen uska live telecast kiya jaaye
5.ya inhe sare aam chourahe par khada karke pathron se jab tak maara
jaaye tab tak ki jaan na nikal jaaye
6.har hindustani mahila ko adhikar diya jaaye us kamine ke sath kya
saja mukrar ki jaaye
7.physical attemp ke liye hamari govt. Ko free insurane policy har
mahila ke liye laayi jaaye
8.pidit mahila ki pehchan gopniye rakhi jaye or sarkari tor par use
jivan yapan karne ke liye uchit madad ki jaaye,
9.or aise cases ko fast track court mai jald se jald clear kiya jaaye.
10.jurm sabit hone par jald se jald saja
इन सब बातों के बाद अब फिर कोई प्रस्तुति की हिम्मत नहीं, इसलिए आज के कार्यक्रमों को मैं यही विराम देती हूँ, और मिलती हूँ पुन: 24 दिसंबर को सुबह 10 बजे परिकल्पना पर...तबतक शुभ विदा !
जिंदगी कब अपने मायने बदल दे ये कोई नहीं जानता...अब एक सही समय है जब सबको लगता है कि कुछ बदलाव जरुर हो तो इसकी शुरुआत अगर हम अपने घर से करें तो बेहतर होगा....दिल्ली के इस गैंग रेप ने सबको झंझोर कर रख दिया है और सोचने पर मजबूर किया है कि
ReplyDeleteआखिर कब तक ???????
culprit must punished in the same manner!
ReplyDeleteab had gujar chuki hai , ab aar-paar ki ladai ladani hogi. sansad men sirf svarhpurn baton parcharcha aur hangame hote hain. aise masalon par sochane ki phursat kisko hai ?
ReplyDelete...:(.... bas itna se hi dard deekha sakta hooon
ReplyDeleteबस अब और नहीं अब तो हल निकलना ही चाहिये इस वीभत्सता का। दिल दिमाग शून्य होने लगते हैं सोचते ही।
ReplyDeleteऐसे कुकृत्यों पर यदि कानून अपने हाथ नहीं उठा पा रहा ,सही न्याय की उम्मीद करना बेकार होगा, हम में से ही समाज के कुछ लोगों को आगे आना होगा, दुराचारियों को बीच चौराहे पर सजा देनी होगी | जिससे ऐसे करने से पहले रूह कांप जाये दुराचारियों के |
ReplyDeleteबेहद शर्मनाक हादसा हुआ है ! संसद और क़ानून तो नेताओं की मर्जी से चलते हैं लेकिन कुछ कदम तो समाज में रहने वाले भी उठा सकते हैं ! ऐसे लोगों का पूरी तरह से सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाना चाहिये ! तभी शायद माता पिता बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए प्रेरित हों !
ReplyDeleteयूं तो ऐसी घटनाएँ हर जगह घटी ही रहती परन्तु इस हृदयविदारक कृत्य ने सभी अंदर तक झकझोर दिया है. अब वक्त आ गया है इन ज्यादितियों की इति का.
ReplyDeleteशर्मसार करदेने वाली घटनाएं हैं ये ... पुरुष होने पे लज्जा आती है ...
ReplyDeleteदिल्ली के इस कृत्य पर भड़ास तो इतनी है दिल में कि शब्द ही कम पड़ जाएंगे...लेकिन फिर भी मैंने भी कुछ पन्ने स्याह कर अपनी भड़ास निकालने की कोशिश की है..
ReplyDeleteदेखें- filmihai.blogspot.com
जैसे मांस पर गिद्ध मंडराते हैं ,वैसे ही महिलाओं पर ये कामान्ध नर गिद्ध मंडराते ही रहते हैं ! गिद्ध तो बेचारे मरे हुए पशुओं का ही मांस नोचते खाते हैं ,पर ये कामी कुत्ते तो ज़िंदा नारियों का मांस नोचने को फिरते हैं कदाचित किसी महिला में कहीं कोई कमजोरी दिखी नहीं ,कोई महिला बेचारी अकेली दिखी नहीं ,उसे डरा धमकाकर ब्लकमेल कर और जोर जबरदस्ती कर पथभ्रष्ट करने से नहीं चुकते ! कवि की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद हो उठती हैं –
ReplyDeleteनारी जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल में है दूध और आँखों में पानी
आज देश /प्रदेश में सरकारें चाहे जो भी दावा करें, कानून व्यवस्था की स्तिथि ठीक नहीं है। चोराहों पर पुलिस वालों को चंदा इकठ्ठे करने के सिवा शायद कोई काम नहीं! अकेले रहने वाली महिलाओं का जीवन सुरक्षित नहीं रह गया है। राह चलते महिलाओं के साथ बदतमीजी, चेन स्नेचिंग आम बात है। लेकिन इस चलती बस में सामूहिक बलात्कार की शर्मनाक व वीभत्स घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है ! जागो हिन्दुस्तान जागो ......
jainrohtak@gmail.com
http://www.teerthankar.blogspot.in
क्या लिखूं ....... आज भी कहने वाले कह रहे , दिल्ली में हुए बलात्कार को ही क्यों महत्व दिया जा रहा .........
ReplyDeleteकविता जी की बात से पूर्णतः सहमत | कहना तो बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन सच तो ये है कि मैं खुद शर्मिंदा हूँ इस कृत्य से | कहीं न कहीं ये समाज मुझे भी उन दानवों से जोड़ता है | शायद मैं और समाज का हर सदस्य भी कुछ हद तक इस राक्षशी घटना में भागीदार हैं |
ReplyDeleteमेरी माँ को मुझ पर फक्र है ,
मेरी बहन भी नाज करती है मुझ पर ,
वो भी तो किसी का बेटा था ,
शायद किसी का भाई भी रहा होगा ,
कोई होगा , जो उस पर भी फक्र करता होगा ,
अब खुद पर शर्म आती है ,
नजरें नहीं मिला पाता हूँ खुद से ,
आईना देखता हूँ ,
तो कहीं उसका भी अक्स दिख जाता है |
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सादर