अच्छाई हद से जब बढ़ जाये
तो जीने का अर्थ प्रश्न बन ही जाता है !!!
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आज फिर झुमकी रो पड़ी ............आंसू टप-टप बह रहे थे . अहसासों का कोर कोर मानो लहुलुहान था , आखिर क्यों उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया मोहल्ले वालो ने
मन के आंसू धुधली छाया लिए उसे बीते साल की यादो मे ले गये ........
सब मोहल्ले वालिया नुक्कड़ पर खड़ी थी कभी इसकी कभी उसकी बुराई की जा रही थी . उसको कतई पसंद नही था यह सब करना जब उसको सबने आवाज लगायी तो उसने आने से मना कर दिया के घर में ढेरो काम पड़े हैं मुझे ट़ेम नही यहाँ आने का . बचपन से अपनी किताबो मे घुसी रहने वाली झुमकी मोहल्ले की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी ओंरत थी . हर वक़्त मोहल्ले के चोराहों पर आते जाते आदमियों की नज़रो का स्वाद बन'ने की अपेक्षा उसको सिलाई करना पसंद था घर का हर कोना उसकी सुघड़ता की गवाही देता था . छोटे से घर में अपने दो बेटो के साथ बहुत खुश रहती थी हर मिया-बीबी की तरह किसनवा से लड़ भी लेती थी तो बच्चो की शरारत पर उनको पीट भी देती थी हर तरह से आम औरत थी बस यह चौराहा उसको पसंद नही था . धीरे धीरे मोहल्ले की ओरते जो कभी उस से बात करने मे फख्र महसूस करती थी अब उसको घमंडी कहने लगी उसके सुथरे कपडे सबकी आँखों मैं खटकने लगे सबके मर्द" झुमकी को देख जरा "कहकर अपनी बीबियो को चार बात कहने लगे थे . पिछले बरस उसने गीतली के घर कीर्तन मैं सुमनी को उसकी सास/पति की बुराई करने से टोक दिया तो सबने उसको स्पेशल ओंरत का तमगा पहना दिया जैसे सास/पति की बुराई करना हर औरत का अधिकार हैं अब किसनवा अगर प्यार करता हैं तो क्या हुआ अगर गलत काम पर गुरियता भी हैं जब बख्त आता हैं तो झुमकी भी तो उसको खूब सुना देती हैं यह बात हर औरत को समझ नही आती सबकी सब अनपद औरत नारी मुक्ति आन्दोलन की नेता बनी फिरती हैं एक का मर्द मारे सब इकठ्ठी हो जाती हैं खुसर-फुसर करने को .पर झुमकी ने न कभी किसी को बुलाया न कभी किसी के यहाँ चुगली करने गयी .बस यही से उसको घमंडी कहा जाने लगा धीरे धीरे सब को लगने लगा के यह हमारे जैसे क्यों नही ...
सब मोहल्ले वालिया नुक्कड़ पर खड़ी थी कभी इसकी कभी उसकी बुराई की जा रही थी . उसको कतई पसंद नही था यह सब करना जब उसको सबने आवाज लगायी तो उसने आने से मना कर दिया के घर में ढेरो काम पड़े हैं मुझे ट़ेम नही यहाँ आने का . बचपन से अपनी किताबो मे घुसी रहने वाली झुमकी मोहल्ले की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी ओंरत थी . हर वक़्त मोहल्ले के चोराहों पर आते जाते आदमियों की नज़रो का स्वाद बन'ने की अपेक्षा उसको सिलाई करना पसंद था घर का हर कोना उसकी सुघड़ता की गवाही देता था . छोटे से घर में अपने दो बेटो के साथ बहुत खुश रहती थी हर मिया-बीबी की तरह किसनवा से लड़ भी लेती थी तो बच्चो की शरारत पर उनको पीट भी देती थी हर तरह से आम औरत थी बस यह चौराहा उसको पसंद नही था . धीरे धीरे मोहल्ले की ओरते जो कभी उस से बात करने मे फख्र महसूस करती थी अब उसको घमंडी कहने लगी उसके सुथरे कपडे सबकी आँखों मैं खटकने लगे सबके मर्द" झुमकी को देख जरा "कहकर अपनी बीबियो को चार बात कहने लगे थे . पिछले बरस उसने गीतली के घर कीर्तन मैं सुमनी को उसकी सास/पति की बुराई करने से टोक दिया तो सबने उसको स्पेशल ओंरत का तमगा पहना दिया जैसे सास/पति की बुराई करना हर औरत का अधिकार हैं अब किसनवा अगर प्यार करता हैं तो क्या हुआ अगर गलत काम पर गुरियता भी हैं जब बख्त आता हैं तो झुमकी भी तो उसको खूब सुना देती हैं यह बात हर औरत को समझ नही आती सबकी सब अनपद औरत नारी मुक्ति आन्दोलन की नेता बनी फिरती हैं एक का मर्द मारे सब इकठ्ठी हो जाती हैं खुसर-फुसर करने को .पर झुमकी ने न कभी किसी को बुलाया न कभी किसी के यहाँ चुगली करने गयी .बस यही से उसको घमंडी कहा जाने लगा धीरे धीरे सब को लगने लगा के यह हमारे जैसे क्यों नही ...
और =
आज अरसे बाद उसने अपने घर मे माता का कीर्तन कराया .............. दो चार बुजुर्ग औरते आई बाकि कीर्तन मण्डली वालियों ने भी अलग ढोलक बजा ली के बहुत बनती थी न बजा ले घंटी मंजीरा अपने आप .............किसी ने नही सोचा शक्ति औरत में खुद विराजमान हैं .........क्यों इक दुसरे की दुश्मन बनी हैं वोह ............... क्या कसूर रहा उसका . क्यों नही वोह एक आम ओंरत बनकर सबकी बातो का काट पाती . क्यों नहीं सबके सामने कुछ और पीछे कुछ और बन जाती हैं क्यों आज वोह अकेली हैं माँ के इस दरबार मैं . क्या खुद को बदल डाले या इस मोहल्ले को या फिर खुद मैं शक्ति बन जिए . डोल गया आज उसका मन का विश्वास ............... जार जार रोता रहा आज झुमकी के मन का कोना ..........साथ ही हर उस ओंरत के मन का कोना जो खुद मैं जीना चाहती हैं और ढूढ़ रहा हैं अपने अच्छे होने के सवाल का जवाब ..................
http://nivia-mankakona.blogspot.in/
...किसी ने नही सोचा शक्ति औरत में खुद विराजमान हैं ..
ReplyDeleteबिल्कुल सही.. नीलिमा शर्मा जी को बहुत-बहुत बधाई उत्कृष्ट लेखन के लिये
।
साथ ही हर उस ओंरत के मन का कोना जो खुद मैं जीना चाहती हैं और ढूढ़ रहा हैं अपने अच्छे होने के सवाल का जवाब ..................यह एक कड़वा सच है जीवन का .......निर्वस्त्रों के बीच वस्त्रधारी की यही दशा होती है
ReplyDeleteछोटी सी कहानी में सच्चाई लिखी है , बहुत सुन्दर वर्णन |
ReplyDeleteसादर
सुस्पष्ट ....सार्थक ...उत्कृष्ट विचार ...!!
ReplyDeleteप्रबल लघु कथा ....!!बहुत अच्छी लगी ....!!
Rashmi jee bahut bahut dhanywad meri likhi kahani ko yaha sthan dene ka .
ReplyDeletetahe dil se Aabhari hu aap sabki .jinhone is kahani ko saraha ..
Anupama Tripathi jee
Akash Mishra jee
Sada jee
Saras jee
har vidha me Neelima jee aap to aage badhte ja rahe ho...
ReplyDeleteshubhkamnayen...
एक छोटी से कहानी वो यथार्थ कह रही है कि अगर अपने सिद्धांत और रूचि के रस्ते पर अकेले चलाना है तो अकेले ही चलाना होगा क्योंकि इसा समाज और जाती की भीड़ में अपनी सी कुछ ही मिलेंगी लेकिन अगर शक्ति का अहसास अपने में एक ही हैं
ReplyDelete.साथ ही हर उस ओंरत के मन का कोना जो खुद मैं जीना चाहती हैं और ढूढ़ रहा हैं अपने अच्छे होने के सवाल का
ReplyDeleteभीड से अलग चलने का ये परिणाम तो भोगना होगा मगर जिस दिन एक औरत अपने दम पर कोई मुकाम हासिल करती है तो उस दिन ये ही भीड झुक कर सलाम भी करती है बस जरूरत है तो अपनी आत्मिक शक्ति को जगाने की।
जो लीक से हट कर चलता है उसे ये सब झेलना ही पड़ता है ...बहुत उम्दा कहानी के लिए बधाई
ReplyDeleteSach! kabhi kabhi khudka hi jeena doobhar kar deta hai ye achhapan! Behtareen prastuti.Shubhkaamnayein Neelimaji, Rashmiji.
ReplyDeleteकुछ अलग स्वभाव सबसे काट देता है ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteMukesh sinha jee यह आपका मार्गदर्शन था कि नीलिमा कुछ अलग अलग टॉपिक्स पर भी लिखा करिए ..... शुक्रिया तो में आपका करती हु ..
ReplyDeleteRekha jee सच बात हैं ना यह कि हर नारी को अकेले ही चलना पड़ता हैं अगर वोह अपने मन का कहा मानती हैं .सराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार
ReplyDeleteRekha jee सच बात हैं ना यह कि हर नारी को अकेले ही चलना पड़ता हैं अगर वोह अपने मन का कहा मानती हैं .सराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार
ReplyDeleteसराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार वंदना जी ..........पर आत्मिक शक्ति हर नारी मैं होती हैं कोशिश बस बनाये रखने की होनी चाहिये
ReplyDeleteRekha jee सच बात हैं ना यह कि हर नारी को अकेले ही चलना पड़ता हैं अगर वोह अपने मन का कहा मानती हैं सराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार
ReplyDeleteसराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार Aparna jee
ReplyDeleteसराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार Aparna jee
ReplyDeleteसराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार Sangeeta jee
ReplyDeleteमैंने पढ़ी है ये कहानी पहले....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेखन...
बहुत बहुत बधाई नीलिमा जी...
शुक्रिया रश्मि दी...
सादर
अनु
एक सुखद संयोग है आपकी कहानी से रु-ब-रु होना
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ,दिल छू लिया ....सच में बधाई की पात्र हो नीलिमा ...
ReplyDeleteसराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार Anu jee
ReplyDeleteसराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार Ramaajay jee
ReplyDeleteसराहनीय शब्दों के लिय आपका आभार Vandana grovar jee
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