माँ
कहीं रहूँ,कुछ भी कह जाऊं
मुझे तुम्हारी ज़रूरत है ....
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अब भी करता हूं घर पे फोन मगर
पर वो आवाज़ अब नहीं आती
लगता है कितने ज़माने बीते
होता था रोज़ फोन पर अक्सर
मेरे कुछ बोलने से पहले ही
कहती थीं खुश रहो सदा बेटा
आज आफिस से देर लौटे हो
तुम को तो भूख लगी होगी बहुत
जाओ पहले ज़रा सा कुछ खा लो
फिर थोड़ी देर में बातें करना
सोचता हूं जो मां की बातों को
आंख में तैर सी जाती है नमी
आज मैं फिर से देर लौटा हूं
और हाथों में लेके बैठा हूं
अपना तन्हा सा एक मोबाइल
मां तेरा फोन क्यों नहीं आता..?
मधुरेंद्र मोहन पाण्डेय
भावुक करने वाली कविता |
ReplyDeleteसादर
आह. पुरानी यादों को याद करवाती सुन्दर कविता..
ReplyDeleteमाँ वो शख्स है जो अपने अलावा सबके के बारे में सोचती है , करती है और उसी में डूबे डूबे चली जाती है।
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ... अनुपम प्रस्तुति
ReplyDeletebehtreen bhaav....
ReplyDeleteहर रचना लाजाबाब है,,
ReplyDeleteमां ...इस शब्द में पूरी सृष्टि समाई है
ReplyDeleteसुंदर....