करवटों की अनकही बातें
होती हैं अनकहे लम्हों से
अपनों से ..........
सुबह तक नींद के इंतज़ार में ...
रात से लेकर सुबह तक,जो रिश्ता है मेरा नींद से,
उसे थोडा बहुत निभाने की कोशिश करती हूँ.... रोज़...
समझाती है एक ही बात मुझे वो.... रोज़...
फिर मना ही लेती है आखिर नींद मुझे .... रोज़....
"नहीं मुझसे प्रीत तुझे तो बिसरा दे खयाल ये तू....की
सपने आएंगे इन आँखों में मीठे से !!
कुछ हसाएंगे कुछ शायद रुला भी जायेंगे....
पर क्या तू रह सकेगी उन सपनों के बिना ????
जो तुझे तेरे अपनों से मिला लाते हैं....
कभी-कभी परीलोक की सैर भी करा लाते हैं....
और कभी आकाश में स्वतंत्र विचरने का मौका देते हैं...
भूलाकर इस दुनिया के झंझट सारे तुझे अपनी एक अलग दुनिया में ले जाते हैं.... "
नहीं...!!
नहीं रह सकती उन सपनों के बिना मैं....!!
गले लगा ही लेती हूँ फिर नींद को.... रोज़...
आती नहीं है आँखों में नखरे हैं तेरे.... रोज़...
फिर मना ही लेती है आखिर नींद मुझे .... रोज़....
मीनाक्षी मिश्रा
उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही बढिया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteमीनाक्षी को उसके बचपन से जानती हूँ....तब से उसको गीता कंटस्थ है...बहुत प्रतिभावान लड़की हैं...अशेष शुभकामनाएँ और स्नेह मिनाक्षी.
आभार रश्मि दी..
अनु
roj roj:)
ReplyDeletejo bhi kaho
har roj:)
बहुत खूबसूरत है ख़्वाबों की दुनिया ,
ReplyDeleteख़्वाबों में रंगों को भरकर तो देखो |
बहुत सुन्दर लेखनी |
सादर
sundar
ReplyDeleteवाह, बहुत उत्कृष्ट कविता
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद रश्मि दी !!
ReplyDeleteजो आपने मुझे इस लायक समझा ........
सहृदय आभारी हूँ ...
bahut sundar
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