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पगडंडियों को जब तक राहों में तब्दील करती हूँ
जिंदगी की राहें
जिंदगी की राहें
अनजानी क्यूँ है ?
हवा हर पल रुख
बदलती क्यूँ है?
वक्त की धुंध में
कहीं खो गयी चाहत,
निगाहे मेरी फिरभी
उसे ढूँढती क्यूँ है ?
अनजान है वो
इन बातों से
कि परवाने के लिए
शमा जलती क्यूँ है ?
गैर हो गए हैं
आज वो लेकिन,
इंतज़ार में फिर वो
लम्हे गुजारती क्यूँ है ?
अनजानी क्यूँ है ?
हवा हर पल रुख
बदलती क्यूँ है?
वक्त की धुंध में
कहीं खो गयी चाहत,
निगाहे मेरी फिरभी
उसे ढूँढती क्यूँ है ?
अनजान है वो
इन बातों से
कि परवाने के लिए
शमा जलती क्यूँ है ?
गैर हो गए हैं
आज वो लेकिन,
इंतज़ार में फिर वो
लम्हे गुजारती क्यूँ है ?
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डा. तृप्ति इन्द्रनील
मैं पेशे से भू-वैज्ञानिक हूँ, किताबें पढ़ना शौक है ... थोडा बहुत लिखती हूँ जो भी मन में आये ...
Coral - http://www.coralsapphire.blogspot.com/
गैर हो गए हैं
ReplyDeleteआज वो लेकिन,
इंतज़ार में फिर वो
लम्हे गुजारती क्यूँ है ?
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
बहुत सुंदर रचना .......
ReplyDeleteअच्छा लिखा है, मन के भावो को!
ReplyDeleteमेरी रचना को आपके ब्लॉग में स्थान देने के लिए शुक्रिया दीदी
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