शिखा वार्ष्णेय की कलम में संगीता स्वरुप
तेरे आकाश में
कहीं छिपा है
मेरे आकाश का
एक नन्हा सा टुकड़ा
अपने ख़्वाबों
और ख्यालों को
पतंग बना
उड़ा दिया है
अपने आसमान में
और पकड़ रखी है
डोर बड़ी मजबूती से
पर फिर भी
दे देती हूँ ढील कभी
तो लहरा कर
कट जाती है कोई पतंग
और मैं रह जाती हूँ
मात्र डोर थामे
निर्निमेष देखती हूँ
उस पतंग को
धरती पर आते हुए
तुम्हारे विस्तृत अम्बर में
नहीं है शतांश भी
मेरी पतंगों के लिए
मैं तुम्हारे आसमान में
अपना आसमां ढूँढती हूँ
अब तो डोर भी थामे
थकने लगी हूँ
बस
यवनिका गिरने को है ..
यह पंक्तियाँ हैं उस कवयित्री की जिनके लेखन में किसी को महादेवी वर्मा का रहस्यवाद नजर आता है तो किसी को बिहारी के लेखन का मूल तत्व - गागर में सागर. किसी को उनकी कवितायेँ पढ़कर गुलजार की पंक्तियाँ याद हो आती हैं तो किसी को नौशाद की .परन्तु एक बात जो उनका हर पाठक कहता है ,उनकी कविताओं में जिन्दगी बसती है.सबके मन के भावों को जैसे शब्द रूप देने की ठानी है उन्होंने. उनकी कविताओं की हर पंक्ति में पाठक को अपनी जिन्दगी का कोई ना कोई सूत्र मिल जाता है, खुद को कब उन रचनाओं से वे जोड़ लेते हैं पता ही नहीं चलता.और जब वह उन पंक्तियों को आत्मसात करके लौटते हैं तो एक सुकून का सा एहसास होता है .अब तक शायद आप समझ ही गए होंगे यह कवयित्री और ब्लॉगर और कोई नहीं यह हैं - संगीता स्वरुप जी. मुझे उनके लेखन की जो बात हमेशा आकर्षित करती है वो है, बहुत ही कम शब्दों में सबकुछ कह जाने की,वह एक कुशल रचना कार ही नहीं एक गंभीर ब्लॉगर भी हैं,और बहुत ही मेहनत और लगन से कविताओं का एक चर्चामंच भी सजाती हैं. आइये आज उनसे कुछ बात चीत करते हैं.
मैं - सबसे पहले यह बताइए कि कविता लिखने का शौक आपको कब और कैसे लगा ?
संगीता जी - कविता लिखने का शौक मुझे १९७१ में जब मैं बी .ए . में थी तब पड़ा
मेरी एक सीनियर थीं प्रतिभा श्रीवास्तव ...वो बहुत अच्छी कविताएँ लिखा करतीं थीं .उनकी कविताओं को सुन कर ही मेरे मन में भी कविता लिखने की इच्छा हुई ...बस तब से कुछ भी आस -पास महसूस करती थी उन भावों को शब्द देने का प्रयास करती थी |बस थोड़ी तुकबंदी हो जाती थी.
मैं - तब आप उन कविताओं का लिख कर क्या करती थीं ?और वह किस तरह की होती थीं?
संगीता जी - अपनी सहेलियों को सुनाती थी. या कभी कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ तो उसमे सुनाती थी. विषय कभी सामजिक चेतना के तो कभी जीवन दर्शन के हुआ करते थे. सहेलियों के रूठने मनाने में प्यार के भी हो जाते थे जिसे लोग विशेष प्यार के अर्थ में भी ले लेते थे... हा हा.
मैं - अभी सुना है आपका एक काव्य संकलन भी प्रकाशित होकर आ रहा है ..कभी सोचा था कि यहाँ तक पहुंचेंगी ?
संगीता जी - नहीं, यह तो कभी भी नहीं सोचा था. हाँ कभी कभी किसी पत्रिका में औरों की कविताएँ पढ़ मन करता था कि मैं भी भेजूं, पर वो भी कभी नहीं भेजीं.लेकिन जब ब्लॉग पर बहुत से ब्लॉगर्स के प्रोफाईल के साथ देखती थी काव्य संग्रह के नाम, तो सोचती थी कि काश कभी मेरी भी कोई किताब छपे.
मैं - यहाँ देखने में आता है कि जिसकी कविता में भाव होते हैं - उसे सुनना पड़ता है कि भाव तो हैं पर तुक,लय या शिल्प नहीं इसे कविता नहीं कहा जा सकता .और जहाँ तुक ,लय होती है उसे सुनना पड़ता है कि तुकबंदी है बस.इसके पीछे अंगूर खट्टे हैं वाली मनोवृति भी हो सकती है .आपके विचार में कविता क्या है?
संगीता जी - अब लोग तो कुछ भी कहेंगे ...आधुनिक कविता में तुकांत और अतुकांत दोनों ही तरह की रचनाएँ शामिल हैं .मैंने हिंदी साहित्य का इतिहास बहुत तो नहीं पढ़ा है फिर भी भारतेंदु काल के बाद से आधुनिक कविता का प्रारंभ शायद हुआ है. आज की कविता में मुख्य रूप से भाव सम्प्रेषण को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है ..आज की कविता सामजिक , राजनैतिक समस्याओं को भी उजागर करती है ...छंदबद्ध कविता लिखना सबके वश की बात नहीं है ..मेरी सोच के हिसाब से कविता -मन के भावों का कल्पना के साथ उड़ान भर कर स्वयं के विचारों को कम से कम शब्दों में संप्रेषित करना कविता है ...कवि जब स्वयं से द्वंद करता है तो कविता बनती है ...इस विषय पर मैंने कुछ लिखा भी है ..यदि आप पढ़ना चाहें तो ?-
मैं - हाँ पढ़वाइए ना.
संगीता जी -
भावों की सरिता
बह कर जब
मन के सागर में
मिलती है
शब्दों के मोती
से मिल कर
फिर कविता बनती है .
व्यथित से
मन में जब
एक अकुलाहट
उठती है
मन की
कोई लहर जब
थोड़ी सी
लरजती है
मन मंथन
करके फिर
एक कविता बनती है..
अंतस की
गहराई में
जब भाव
आलोडित होते हैं
शब्दों के फिर
जैसे हम
खेल रचा करते हैं
खेल - खेल में ही
शब्दों की
रंगोली सजती है
इन रंगों से ही फिर
एक कविता बनती है
मैं - वाह ..बहुत सुन्दर कविता है . आपको लोग आपके ब्लॉग पर बिहारी ,महादेवी वर्मा जैसे व्यक्तित्व से तौलते हैं ,तब आपको कैसा लगता है?
संगीता जी - हिंदी साहित्य की इतनी बड़ी हस्तियों के साथ जब नाम लिया जाता है तो निश्चय ही अच्छा लगता है ..पर मैं जानती हूँ कि मैं उनके पांव की धूल भी नहीं हूँ .
मैं - क्या बात है. यह जबाब तो एकदम साहित्यकारों वाला दे दिया आपने :)
संगीता जी - आपके प्रश्न को सुनकर जो लगा वही कहा है.महादेवी जैसी कवयित्री के सामने मैं और क्या कह सकती हूँ .
मैं - वस्तुत : आप किससे प्रभावित हैं?
संगीता जी - साहित्य क्षेत्र में मुझे मुंशी प्रेम चंद बहुत पसंद हैं. उनकी कहानियां और उपन्यास ज्यादातर पढ़े हुए हैं
मैं - और काव्य में?
संगीताजी - निराला जी , और दिनकर बहुत पसंद हैं निराला जी की तोडती पत्थर , भिक्षुक या फिर कविता का शीर्षक याद नहीं है पर कुछ पंक्तियाँ याद हैं-
मैंने बचपन में पैसों के बीज बोये थे
सोचा था
पैसों के पेड़ उगेंगे.
दिनकर की कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी मेरी प्रिय पुस्तकें हैं
मैथली शरण गुप्त की साकेत और यशोधरा भी पढ़ी है हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला पसंद है और उनकी एक कविता ...जो बीत गयी सो बात गयी ..बहुत पसंद है.
मैं - इसका मतलब आपकी रचनाओं में महादेवी जी के जैसे रहस्यवाद का प्रभाव भी एक रहस्य ही है:) ?
संगीता जी - अब आप इसे रहस्य कह सकती हैं .असल में महादेवी वर्मा जी की रचनाएँ इतनी गूढ़ होती हैं कि सच ही रहस्यमयी लगती हैं वैसे मैंने उनकी रचनाएँ पढ़ीं हैं, पर कम. महादेवी जी से प्रभावित नहीं हूँ. अगर पाठकों को लगता है तो उसे मेरा सौभाग्य और एक इत्तेफाक ही समझिए और रहस्य भी ..:):)
मैं - ब्लॉग्स पर लिखने के पीछे आपका मकसद क्या है ?
संगीता जी - कोई विशेष प्रयोजन ले कर मैंने ब्लॉग लिखना शुरू नहीं किया था.बस किसी ने प्रेरणा दी कि आप लिखती हो तो ब्लॉग बनाइये ..लोंग पढेंगे और और उनके कमेंट्स आयेंगे तो अच्छा लगेगा ..बस ब्लॉग बना लिया ....लोगों की टिप्पणियाँ प्रोत्साहित करती हैं ..नयी उर्जा मिलती है ..कुछ लिखने की प्रेरणा मिलती है
मैं - यहाँ देखा जाता है,ब्लॉग्स पर आपको गंभीर पाठक और प्रसंशा सब मिलते हैं फिर भी ब्लॉगर्स में छपास- यानी पत्र पत्रिकाओं में छपने की लालसा देखी जाती है. इस बारे में आपके क्या विचार हैं ?
संगीता जी - यह बात सही है की ब्लॉग्स पर गंभीर पाठक मिलते हैं .पर किसी पत्रिका या समाचार पत्र में कोई लेख या कविता का छपना एक महत्त्वपूर्ण बात है यह एक धरोहर बन जाती है.
बहुत संतुष्टि मिलती है यहाँ भी. यहाँ पर आप कुछ भी लिखो अपने ब्लॉग पर लिखने की कोई मनाही नहीं है. पर किसी पत्रिका में जब छपेगा तो बहुत सी रचनाओं में से चयन करके छापा जायेगा तो कभी कभी शायद यह एहसास होता है कि वहाँ ज्यादा संतुष्टि मिलेगी.
मैं - आप ब्लॉग्स को हिंदी के विकास में कितना प्रभावशाली पाती हैं?
संगीता जी - ब्लॉग पर हिंदी बहुत सक्षम हो रही है ...पुराने और नए साहित्यकारों से परिचय होता है उनकी रचनाएँ पढने को आसानी से मिल जाती हैं .हिंदी के विकास में ये ब्लॉग्स नए कीर्तिमान स्थापित करेगें, ऐसी उम्मीद है .क्योंकि यहाँ हिंदी ब्लॉगर्स ऐसे हैं जो अलग अलग क्षेत्र के हैं, अलग अलग प्रान्त के हैं फिर भी हिंदी में लिख रहे हैं .अच्छा लगता है यह देख कर . वैसे भी हिंदी भाषा स्वयं में सक्षम है.
मैं - क्या आपको लगता है ब्लॉग पर आईं प्रतिक्रियाएं सही मूल्यांकन/आलोचना करती हैं?
संगीता जी - हर रचनाकार को अपनी रचना बेमिसाल लगती है ...लेकिन फिर भी मैं कहना चाहूंगी कि ब्लॉग पर आई हर प्रतिक्रिया सही मूल्यांकन नहीं करती .पर जो पाठक गंभीरता से पढते हैं वो ज़रूर अपनी प्रतिक्रिया के रूप में सही मूल्यांकन करते हैं . यदि कोई लेख या कविता या कोई भी पोस्ट पसंद नहीं आये तो ज़रूरी नहीं कि आप उसे बुरा कहें बल्कि एक गंभीर समालोचक की तरह अपनी बात रखें ..न कि लेखक के उत्साह को ही खत्म कर दें .कमियां बताएँ, लेकिन किसी के लिखे को नकारें नहीं .यहाँ एक बात कहना चाहूंगी कि ब्लॉग पर टिप्पणियों के रूप में एक दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप न करें .विषय से सम्बंधित चर्चा ही हो. कभी कभी विषय से भटक कर आपस में एक दूसरे पर टिप्पणियाँ करने लगते हैं.यह कृत्य उचित नहीं लगता.
मैं - अक्सर कहा जाता है कि हिंदी कविता का पाठक वर्ग बहुत ही सिमित है इसलिए सामाजिक मूल्य भी कम आँका जाता है और गद्य विधा ज्यादा प्रभाव छोडती है ,आपका क्या कहना है?
संगीता जी - गद्य विधा में आप अपने विचार विस्तार से रख सकते हैं जबकि काव्य में सीमाएं होती है और साथ ही रहस्यवाद भी. कवि की कल्पनाएँ उसकी अपनी होती हैं. अपने अनुभव और कल्पना को ले कर वो शब्दों को बुनता है कम शब्दों में गहन बात भी कह जाता है. और यह सब समझने में कभी कभी पाठक को कठिनाई होती है. इसी लिए गद्य विधा को लोंग ज्यादा पसंद करते हैं. ऐसा मुझे लगता है
मैं - क्या आपको लगता है कि आजकल जो छंद मुक्त या आजाद कविता लिखी जा रही है वह लोगों के मन के ज्यादा करीब है और हिंदी को आगे बढाने में ज्यादा सहायक है?
संगीता जी - जी बिलकुल. यहाँ भावों का सम्प्रेषण आसान है.सहज सरल है.और काव्य को रोचक भी बनाता है,
-मैं - ब्लॉग जगत में सबसे ज्यादा आपको किसने प्रभावित किया है और क्यों?
संगीता जी - बहुत लोगों के लेखन से प्रभावित हूँ ..एक दो का नाम नहीं बता सकती ...उनमें से एक आप भी हैं :).
मैं - अब आखिरी सवाल .ब्लॉग जगत को आप क्या सन्देश देना चाहेंगी ?
संगीता जी - ब्लॉग जगत स्वयं ही विकसित होने की राह पर है .प्रगति कर रहा है ...यहाँ सब स्वयं के विचारों का आदान -प्रदान करते हैं .आप मन से लिखिए, विवाद विषय पर हो ..आपस में न हो. एक सौहार्द पूर्ण वातावरण बना रहे.यहाँ पर ब्लॉग्स पढते हुए एक दूसरे के विचारों से इतना परिचित हो जाते हैं कि, यह लगता ही नहीं कि कभी मुलाक़ात नहीं हुई. एक सुखद अनुभूति होती है जब कभी भी किसीब्लॉगर से व्यक्तिगत मुलाक़ात होती है. बस ऐसे ही एक दूसरे से स्नेह बनाये रखें यही कामना है.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका संगीता जी ! आपकी आने वाली पुस्तक और आपकी लेखनी की सफलता के लिए ढेर सारी शुभकामनाये
--
SPANDAN .http://shikhakriti.blogspot.com/
संगीता जी का साक्षात्कार पढ़ कर आनंद आ गया....शिखा जी आपने बहुत ही सुंदर प्रश्नों का समायोजन कर संगीता जी जैसी महान व्यक्तित्व से हमे रुबरु करवाया।बहुत अच्छा और प्रेरणादायी लगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteशिखा जी के सवाल और संगीता जी के जवाब इस साक्षात्कार में बहुत खूब ....रश्मि दी आपने ब्लाग जगत की दोनो महान हस्तियों को एक साथ वटवृक्ष पर लाकर बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति दी है ...
ReplyDeleteसंगीता जी के लेखन की खूबिया और यह पंक्तियां बहुत ही अच्छी लगी ...
व्यथित से
मन में जब
एक अकुलाहट
उठती है
मन की
कोई लहर जब
थोड़ी सी
लरजती है
मन मंथन
करके फिर
एक कविता बनती है..
आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।।
अच्छा साक्षात्कार।
ReplyDeleteअच्छी रचनाओं का दर्शन।
शुभकामनाएं आपको।
संगीता जी की कविताएँ पढ़कर तो अच्छा लगता ही है... आज उनसे यहाँ मिलकर और भी अच्छा लगा...
ReplyDeleteउनके लेखन की शुरुआत, पसंद, प्रभाव और रहस्य... सब कुछ बहुत ही बढ़िया...
बड़ी माँ और शिखा जी... आप दोनों को बहुत-बहुत धन्यवाद इस साक्षात्कार के लिए...
bahut achha laga sakshatkar padkar
ReplyDeleteaapka bahut bahut aabhar
...
bahut achha laga sakshatkar padkar
ReplyDeleteaapka bahut bahut aabhar
...
शिखा जी ,
ReplyDeleteसंगीता जी
प्रणाम !
संगीता जी का साक्षात्कार पढ़ कर आनंद आ गया....शिखा जी आपने बहुत ही सुंदर प्रश्नों का समायोजन कर संगीता जी जैसी महान व्यक्तित्व से हमे रुबरु करवाया।
सादर
kya bat he, aaj dikah shikha ji aapka patrakaar wala roop, iska matlab aapko gold-medal mila he, patrkarita me, (kidding)
ReplyDeletebahut hi sundar prastuti, sawalon ke anuroop, di ke jawab bhi !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसंगीता जी एक बेहतरीन कवयित्री है , उनके विस्तृत विचार पढ़कर मन प्रफुल्लित हुआ . बहुत सारे मन में उठ रहे सवालो का जबाब भी मिला . शिखा जी को साधुवाद इस साक्षात्कार के लिए और वटवृक्ष का आभार .
ReplyDeleteसंगीता जी को तो हम जानते थे, अब तो आपको भी मान गए!!
ReplyDeleteएक दम पेशेवर साक्षात्कार।
और जितने भी मुद्दे उठाए गए संगीता जी ने भी बहुत सुलझे हुए व्यक्तित्व की तरह जवाब दिए हैं, जो उनके वैचारिक स्तर को प्रदर्शित करता है।
वटवृक्ष का यह सद्प्रयास ब्लॉगजगत के लिए मील का पत्तर साबित होगा, यह मेरा मानना है।
शुभकामनाएं
bahut achchha sakshatkar...jankari mili
ReplyDeletedhanyavad...
एक अंतरंग साक्षात्कार!
ReplyDeleteशिखा के बेबाकी से किये गए सवाल और संगीता जी के शांतचित्त बुद्धिमत्ता पूर्ण जवाब ,
ReplyDeleteरोचक और ज्ञानवर्धक साक्षात्कार !
संगीता जी का साक्षात्कार पढकर अच्छा लगा ... उनको पुर्तक प्रकाशन के अवसर पर अभिनन्दन ... शिखाजी और संगीता जी दोनों को धन्यवाद !
ReplyDeleteदीदी आपने अपने ब्लॉग में ये जो समय समय पर साक्षात्कार देते रहते हैं ये बहुत रोचक है ... थोडा अलग स्वाद भी मिलता है और जानकारी भी ...
ek man-bhawan sakshhatkaar:)
ReplyDeleteसंगीता जी की मधुर मुस्कान जैसा सुन्दर साक्षात्कार । शिखा जी धन्यवाद। और दोनो को शुभकामनायें।
ReplyDeleteसंगीता जी की मधुर मुस्कान जैसा सुन्दर साक्षात्कार । शिखा जी धन्यवाद। और दोनो को शुभकामनायें।
ReplyDeleteसभी पाठकों का स्नेह मिला ...आभार ..
ReplyDeleteरश्मि जी और शिखा को विशेष धन्यवाद
संगीता जी,शिखा जी के माध्यम से आपके मन की गहराई में छिपे अनमोल तत्वों से साक्षात्कार बेहद आत्मीय लगे. आपलोगों की बातें काफी प्रेरणादायी हैं .शिखा जी का साक्षात्कार उच्च कोटि का है.
ReplyDeleteशिखा जी आपका बहुत धन्यवाद, आपके इस साक्षात्कार से हम संगीता जी को और अच्छी तरह जान सके| बहुत बधाई और शुभकामनाएं शिखा जी और संगीता जी को|
ReplyDeleteसंगीता जी अच्छी साहित्यकार हैं यह तो उनकी प्रस्तुति से ज्ञात होता है। साक्षात्कार के माध्यम से आपका बहुत ही सुंदर पहलू प्रस्तुत किया है। संगीता जी को इसके लिए बधाई। परंतु पानी में जाल डाल मीन की जगह मोती निकाल लाना तो कोई अनुभवी धीमर ही कर सकता है। 'धीमर जाल डाल का होइहैं जब मीन पिघल भइ पानी'।
ReplyDeleteआपकी रहस्यवादी रचना के सम्मान में 'मैंने अपनी राह बदल ली कि वह समझदार है पीछे आना छोड़ देगा; लेकिन वह तो नासमझ निकला, छाए को ही पकड़ रखा है।'