पगडंडियों को जब तक राहों में तब्दील करती हूँ
सबकुछ बदल जाता है !

रश्मि प्रभा



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जिंदगी की राहें
 
जिंदगी की राहें
अनजानी क्यूँ है ?
हवा हर पल रुख
बदलती क्यूँ है?

वक्त की धुंध में
कहीं खो गयी चाहत,
निगाहे मेरी फिरभी
उसे ढूँढती क्यूँ है ?

अनजान है वो
इन बातों से
कि परवाने के लिए
शमा जलती क्यूँ है ?

गैर हो गए हैं
आज वो लेकिन,
इंतज़ार में फिर वो
लम्हे गुजारती क्यूँ है ?

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डा. तृप्ति इन्द्रनील

मैं पेशे से भू-वैज्ञानिक हूँ, किताबें पढ़ना शौक है ... थोडा बहुत लिखती हूँ जो भी मन में आये ...
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4 comments:

  1. गैर हो गए हैं
    आज वो लेकिन,
    इंतज़ार में फिर वो
    लम्हे गुजारती क्यूँ है ?

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  2. अच्छा लिखा है, मन के भावो को!

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  3. मेरी रचना को आपके ब्लॉग में स्थान देने के लिए शुक्रिया दीदी

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