शरद जोशी अपने समय के अनूठे व्यंग्य रचनाकार थे। अपने वक्त की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों को उन्होंने अत्यंत पैनी निगाह से देखा। अपनी पैनी कलम से बड़ी साफगोई के साथ उन्हें सटीक शब्दों में व्यक्त किया। शरद जोशी पहले व्यंग्य नहीं लिखते थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी आलोचना से खिन्न होकर व्यंग्य लिखना शुरू कर दिया। वह भारत के पहले व्यंग्यकार थे, जिन्होंने पहली बार मुंबई में ‘चकल्लस’ के मंच पर 1968 में गद्य पढ़ा और किसी कवि से अधिक लोकप्रिय हुए। आज ब्लॉगोत्सव में हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं उनका मशहूर नाटक - एक गधा उर्फ अलादाद ख़ाँ ।
इस नाटक के माध्यम से बताया गया है कि झूठी शानौ शौकत तथा समाज मेँ अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए सामंतवादी लोग अपने मतलब के लिए एक आम आदमी का बलिदान भी आसानी से कर सकते हैँ। नाटक के एक पात्र झुग्गन धोबी के गधे जिसका नाम अलादाद था की मृत्यु हो जाती है। जुग्गन के विलाप करने पर लोग समझते है कि उसके किसी रिश्तेदार की मौत हो गई। यह खबर नगर के नवाब तक पहुँचती है तथा वे समाज मेँ लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह एलान कर देते है कि अलादाद खाँ को पूरे सम्मान के साथ दफनाया जायेगा तथा उसके जनाज़े मेँ वे शरीक हो कर उसे कन्धा देँगे। भेद खुलने पर जब यह पता चलता है कि मरने वाला आदमी नहीं गधा था तो अपनी इज्जत और आबरू बचाने के चक्कर मेँ अलादाद खाँ नामक एक आदमी को पकड कर लाया जाता है और उसकी हत्या करके उसका जनाज़ा बडी शान से निकाला जाता है जिसमेँ नवाब साहब शरीक होकर कन्धा देते है।
अगस्त्य कोहली के निर्देशन में यह नाटक प्रतिध्वनि नाटक मंडली की प्रस्तुति है।
इस नाटक के माध्यम से बताया गया है कि झूठी शानौ शौकत तथा समाज मेँ अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए सामंतवादी लोग अपने मतलब के लिए एक आम आदमी का बलिदान भी आसानी से कर सकते हैँ। नाटक के एक पात्र झुग्गन धोबी के गधे जिसका नाम अलादाद था की मृत्यु हो जाती है। जुग्गन के विलाप करने पर लोग समझते है कि उसके किसी रिश्तेदार की मौत हो गई। यह खबर नगर के नवाब तक पहुँचती है तथा वे समाज मेँ लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह एलान कर देते है कि अलादाद खाँ को पूरे सम्मान के साथ दफनाया जायेगा तथा उसके जनाज़े मेँ वे शरीक हो कर उसे कन्धा देँगे। भेद खुलने पर जब यह पता चलता है कि मरने वाला आदमी नहीं गधा था तो अपनी इज्जत और आबरू बचाने के चक्कर मेँ अलादाद खाँ नामक एक आदमी को पकड कर लाया जाता है और उसकी हत्या करके उसका जनाज़ा बडी शान से निकाला जाता है जिसमेँ नवाब साहब शरीक होकर कन्धा देते है।
अगस्त्य कोहली के निर्देशन में यह नाटक प्रतिध्वनि नाटक मंडली की प्रस्तुति है।
भाग: प्रथम
भाग: द्वितीय
भाग: तृतीय
चलिये अब चलते हैं परिकल्पना पर आगे के कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए।....
स्थितियाँ बहुत बदली नहीं हैं...अब नवाबी शौक सरकार के खर्चे पर होते हैं...नाटक तो अभी देख नहीं पाया...लेकिन इसे साझा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
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