प्रेम न कहा गया , न लिखा गया
इसकी गहनता आँखों में होती है
इसके शब्द इसके बोल अनसुने अनकहे होते हैं
बांसुरी से निकलते हैं
बावरी राधा के पैरों से लिपटते हैं
प्यार कहते कुछ होता है - बस होता है ...
रश्मि प्रभा
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कान्हा ,कहाँ लिख पाऊँगी ...
कान्हा
कहाँ लिख पाऊँगी
मैं ,राधा के प्रेम को .....
लिखा जा सकता ,तो
लिख देती 'वो '
स्वयं.......
लिखना तो दूर ,
कहा भी तो नही
कभी उसने .....!!
बस किया ...
तुमसे प्रेम ,और
किया भी ऐसे
कि खुद
हो गई
प्रेम स्वरूपा..
और तुम्हे
बना लिया
अनन्य भक्त.....!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इसलिए, कान्हा..!
मत होना नाराज़ ,
नही लिख पाऊँगी
मैं कभी
चाह कर भी .....
पर हाँ ,देना मुझको
वो दृष्टि ....
पढ़ पाऊं
उस नेह को ...
प्रेममयी आँखों की
मुस्कान में ...
तेरी बांसुरी की
तान में ...
उसके चरणों की
थकान में ...
तेरे हाथों की
पहचान में ...
आंसुओं के
आह्वान में ...
भक्ति के
विरह -गान में ...
दो रूप
एक प्राण में ...!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
प्रेम ,भक्ति की
यही गलबहियां
खींच लेती है मुझे ....
आत्मविभोर हो
खिल उठती हूँ ...
फ़ैल जाते हैं होंठ
खुद ब खुद ही ...
देखती हूँ ,
कनखियों से ,
सकुचाहट के साथ ...
मुस्कुरा देते हो
तुम भी
राधा के साथ ......!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बस ,कान्हा ...!
यहीं से ,
होता है शुरू
एक सफ़र .....
हवाओं के उठने का ...
समंदर में उतरने का ...
बादल के बनने का ...
आसमान में उड़ने का ...
बरसात के होने का ..
मिटटी के भीगने का ...
फूलों के खिलने का ...
महक के बिखरने का ...!!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इससे पहले कि
बिखर जाऊं ...
तान देते हो
चादर झिलमिल सी ....
छोड़ देते हो मुझे
फिर एक और ...
यात्रा के लिए .....
.......................
पर ,सुनो कान्हा ..!!
राह भी तेरी ...
यात्रा भी तेरी ...
पर मंजिल
है मेरी ...!
इसलिए कान्हा ...!!!
न भूलना 'तुम '
कभी ये बात ........
क्यूंकि
यात्रा ,
कितनी भी लम्बी हो ...
राह ,
कितनी भी कठिन हो ...
मंजिल तो
निश्चित है ........./
इसलिए कान्हा ...!
बिखर जाने दे ...
उतर जाने दे ...
हो जाने दे
समंदर ....
शायद ,तब
कह पाऊं ...
लिख पाऊं ....
कुछ ऐसा
जो हो बिलकुल
तेरी राधा के जैसा ..........
तेरी वंशी के प्राण जैसा .......
अंजू
http://anjuananya.blogspot.com/
वाह! वाह! सच नही लिख सकते है..... पर अपने फिर भी बहुत कुछ कह और लिख दिया..... सच में सिर्फ एक शब्द....... अदभुत........!
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहे कान्हा....मुझे शक्ति दे...भक्ति दे...आसक्ति दे...न दे पाए तो विरक्ति दे !! !
ReplyDeletesundar bhaavmai prastuti.bahut achchi lagi.
ReplyDeleteअंजु जी की इस रचना ने तो हमेशा निशब्द किया है…………बस प्रेम रस मे भीग रही हूँ।
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeletewah......gazab ka.....
ReplyDeleteभक्तिमय कर देने वाली सुंदर कृति ! आभार!
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteआभार !
नए साल की हार्दिक बधाई आपको !
नही लिख पाऊँगी
ReplyDeleteमैं कभी
चाह कर भी .....
पर हाँ ,देना मुझको
वो दृष्टि ....
पढ़ पाऊं
उस नेह को ...
प्रेममयी आँखों की
मुस्कान में ...
तेरी बांसुरी की
तान में ...
उसके चरणों की
थकान में ...
तेरे हाथों की
पहचान में ...
आंसुओं के
आह्वान में ...
भक्ति के
विरह -गान में ...
दो रूप
एक प्राण में ...!
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बहुत सुंदर भावों का संतुलित प्रकटीकरण
खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteआप सब का आभार ......राधा और उसका प्रेम,नतमस्तक हूँ उन चरणों में ....उस लेखन शक्ति का शुक्रिया ...और रश्मि जी का तहे दिल से धन्यवाद .....वट वृक्ष की छाँव में रचना को लाने के लिए.....
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