तुम पास होते तो हो
रश्मि प्रभा
पर मन में घुमड़ती बातें
क्यूँ रह जाती हैं दूर ...
तुम्हारे होने का विश्वास भी है
पर ये होठ अनबोले क्यूँ रह जाते हैं ?....
रश्मि प्रभा
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दावा ...
उँगलियों से लिपटे
उलझती ...
वक़्त की गिरह में
लिपटी कुछ यादें
और कुछ बातें
जो दावा करती है
तेरे बहुत करीब होने का
पर ...........
कभी पूछ नहीं पायी
तुमसे ......
वह छोटी छोटी बातें
जो अक्सर
बेफजूल हुआ करती है
कि ....तुम्हे क्या पसंद है ?
बरसात में भीगना ?
रोशनदान से छनती
आती रोशनी का
धीरे से गुदगुदाना
मुक्त गगन में
एक जुट कबूतरों के
झुण्ड का उड़ना
सर्दियों की सुबह की
गिरती ओस में भीगना
किस करवट सोना
और क्या भाता है तुम्हे
यूँ ही बेमतलब
मेरी तरह से ठहाके लगाना ?
सच कितनी छोटी छोटी बातें
कभी नहीं पूछ पाया
यह मन ....
जो तुमसे जुड़े रहने का
हर वक़्त दावा करता है ..!!!
रंजना [रंजू भाटिया]
कितना ही कह लें ...बहुत कुछ अनकहा रह जाता है फिर भी ...!!
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteaabhar---bahut sundar kawita ke liye
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसारा अनकहा भी दिल को छू गया...
सादर.
और क्या भाता है तुम्हे
ReplyDeleteयूँ ही बेमतलब
मेरी तरह से ठहाके लगाना ?
सच कितनी छोटी छोटी बातें
कभी नहीं पूछ पाया
यह मन ....
जो तुमसे जुड़े रहने का
हर वक़्त दावा करता है ..!!!
..bahut sundar bhavmayee prastuti..aabhar!
बढ़िया रचना , ख़ूबसूरत भाव !
ReplyDeleteतुम पास होते तो हो
ReplyDeleteपर मन में घुमड़ती बातें
क्यूँ रह जाती हैं दूर ...
तुम्हारे होने का विश्वास भी है
पर ये होठ अनबोले क्यूँ रह जाते हैं ?....
बहुत खूब ।
सच...औरों की तो रहने दें हम अपने ही मन से भी कितने अनजाने रह जाते हैं...
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबस एक ही दुआ है अनकहा अनसमझा न रह जाए ....... बेहतरीन अंदाज़ !
ReplyDeleteबहुत खूब , उम्दा रचना
ReplyDeletebahut hi khubsurat aur maasoom sawal piro daale apne is rachna mein..
ReplyDeletebehad pasand aayi
छोटी छोटी बातें अक्सर नज़रंदाज हो जाती हैं
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
सुंदर!
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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