माँ - ईश्वर का दूसरा नाम, माँ सुरक्षा का पर्याय... दिन भर फिरकनी सी खटती माँ रात में
अपने जायों के सपनों तक के लिए सचेत होती है, रखती है सिरहाने लोहे की कैंची ताकि बुरे
सपने ना आएँ .... बच्चों के हर कदम की वह डोर बन जाती है माँ -जो उन्हें स्थिरता दे ... माँ लोरी,
माँ ब्रह्ममुहूर्त , माँ रसोई की सुगंध, माँ संस्कारों की श्रृंखला , माँ जुबान, माँ शक्ति, माँ विश्वास ...
माँ सबकुछ बन जाती है, तभी तो हर बच्चे की मोहक तस्वीर होती है - माँ !
रश्मि प्रभा

मैं उर्विजा हूँ , अपने साहित्यकार पिता श्री रवीन्द्र प्रभात की लाडली ! उर्विजा का मतलब होता है पृथ्वी से जन्म लेना ! माता सीता पृथ्वी के गर्भ से प्रकट हुई थी इसलिए उन्हें उर्विजा भी कहा जाता है ! मेरा और माता सीता का जन्म-स्थान एक है, इसीलिए मेरे पापा ने मेरा नाम उर्विजा रख दिया ! संप्रति अपने मूल निवास लखनऊ से ५१६ कि. मी. दूर सहारनपुर में रहकर मॉडर्न ऑफिस मैनेजमेंट की पढाई कर रही हूँ ! यह मेरे जीवन की पहली मौलिक कविता है, जो आप सभी के सामने प्रस्तुत है-


!! मां !!
धूप में एक ठंडी छाँव है मां
समुद्र के गहरे तल में
सीप में छिपी मोती है मां .

मां प्यार की नगरी है /ममता की मूरत
स्नेह का आँचल है मां ...!
मां कोमलता का पर्याय है
मगर इरादों में-
चट्टानों सी मजबूत है मां
कवच बनकर सुरक्षा देती है
और करती है खतरों से आगाह
कभी दुर्गा तो कभी
काली बनकर....!
फूलों से भी कोमल हो जाती है मां
उस वक़्त जब करती है बरसात स्नेह की
और पढ़ाती है ककहरा जीवन का तब...

हर पल बसे होते हैं हम मां की साँसों में
और मां की सात्विकता
बसी होती है हमारे आचरण में हर पल...!
मां श्रृष्टि की अनुपम रचना है
इसलिए तो पानी से भी ज्यादा शीतल है मां
इतने गुण शायद भगवान में भी नहीं
इसलिए भगवान से भी बढकर है मां !
इतना कुछ होने के बावजूद -
हम क्यों नहीं समझ पाते मां की ममता को
क्यों करते हैं उनका उपहास
क्यों नहीं करते उन सा स्नेह
क्यों छोड़ देते हैं हम उन्हें बीच मझधार में
जो करती है स्वार्थ रहित प्यार
जो स्वयं भूखी रहकर भरती है हमारा पेट
और चोट खाकर खुद
मरहम लगाती है हमारे घावों को ....!
आज पूरी दुनिया के लिए-
एक सवाल है मां !
पूछती हूँ मैं आपसे कि क्या-
शर्मिन्दगी, लाचारी, बेवसी
और नाममात्र बनकर रह गयी है मां ?
() उर्विजा प्रभात

20 comments:

  1. bahot achchi kavita likhi hai aapne.badhayee ho.

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और साथ ही एक सार्थक प्रश्न

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  4. सवाल-जवाब के परे है माँ,
    खुदा का दूत है माँ,
    माँ बस माँ है ....!

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  5. मां कोमलता का पर्याय है
    मगर इरादों में-
    चट्टानों सी मजबूत है मां
    कवच बनकर सुरक्षा देती है
    और करती है खतरों से आगाह
    कभी दुर्गा तो कभी
    काली बनकर....!
    mमाँ होती है बडी महान
    समझो उसको गीता कुरान

    आज पूरी दुनिया के लिए-
    एक सवाल है मां !
    पूछती हूँ मैं आपसे कि क्या-
    शर्मिन्दगी, लाचारी, बेवसी
    और नाममात्र बनकर रह गयी है मां ?
    उर्जिता आज ये सवाल बहुत जरूरी हो गया है जब सुनते हैं कि बेटे या बेटी ने माँ का कत्ल किया। दुख होता है हमारी संताने किस ओर जा रही हैं। बहुत अच्छा लिखती हो लगता है पिता का नाम और काम सार्थक करोगी। बहुत बहुत बधाई तुम्हें भी और रवीन्द्र जी को भी। आशीर्वाद।

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  6. पूछती हूँ मैं आपसे कि क्या-
    शर्मिन्दगी, लाचारी, बेवसी
    और नाममात्र बनकर रह गयी है मां ?

    prabhavshali rachna

    badhai aapko

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और साथ ही एक सार्थक प्रश्न

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  8. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति। हार्दिक शुभकामनाएं!

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  9. अच्छी कविता ...!

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  10. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!

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  11. ढेरों शुभकामनाएं और आशीर्वाद !

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  12. naam maatr nahi.. us aik naam me saari duniya hai... aur har prani maa se judaa hai... is liye desh ho vaa ghar yaa videsh... sabhi ke man me maa ke liye apaar sneh hai... jo sneh nahi de saktaa vo iske liye apne man me jaroor apraadh bodh ko paale huve hoga...

    aapki rachnaa bahut pyari hai...aapko shubhkaamnaye

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  13. मां ...शीतल निर्मल कोमल ..
    पहली ही कविता मां को समर्पित कर साबित कर ही दिया है कि हर माँ उपेक्षा नहीं सहती ..
    बहुत अच्छी कविता ...
    बधाई व शुभकामनायें..!

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  14. बहुत खूब ...मै हमेशा ही कहता हूँ कि मां के आंचल मे ब्रह्माड छिपा होता है.. और संयोग्वश कल मैने भी मां पर ही लिखा था...http://merachintan.blogspot.com/2010/10/blog-post_03.html मौका लगे तो पढियेगा।

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  15. सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  16. maa ke liye to jitna kaha jaaye kam hai .... bahut achhi rachna ...

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  17. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...!

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  18. मैने अपनी इस कविता मे माँ की भावना तथा माँ नहीं बन पाने की तकलीफ को इंगित किया है

    माँ
    क्या होती है माँ ? नहीं पता मुझको ,क्योकि मै बन नहीं सका कभी माँ
    हां अपनी माँ के साकार रूप को देखा है मैंने ,
    इसीलिए ही शायद मन अपने स्त्री होने के अपने अस्तित्व को खोज रहा है
    मुझको याद है उसका अलसुबह उठ जाना ,हमारे लिए तैयारी करना
    कितना प्यार गुंधा होता था ,उन पराठो में ?
    हां ,अब मुझको पल पल याद आता है जब मै नहीं बन सका हु एक माँ
    माँ के सपनो के आँगन से तो मै निकल आया हु यतार्थ जीवन में
    और हां बन नहीं सका हु माँ
    हां माँ कभी मै रो नहीं सका तुम्हारी गोद मै सर रखे ,
    किस्मत से शिकायत है की मै नहीं बन सका माँ
    जानता हु मै जब तुम देखती हो मुझको किसी खिलोने से खेलते हुए तो क्या सोच रही होती हो ?
    और होले से एक आवाज लगाकर कहती हो ,अरे क्या बचपना है ये !
    मै जानता हु ,तुम कभी मेरे असीम दर्द का कोई अहसास मुझको नहीं कराना चाहती |
    इसीलिए मुझको एक हलकी सी आह्ट से ही खीच लेती हो ,अपने आँचल मै
    सच कहू तुमको पाकर सारे दर्द भूल जाता हु और बन जाना चाहता हु एक बार फिर वही छोटा सा तुम्हारा बेटा
    हां तुम्हारा ह्रदय बड़ा विशाल है की तुम हंस कर छिपा देती हो या कभी डांट कर
    मुझको पता है एक किसान तभी खुश होता है जब उसकी बचाई बिजवारी भी उसको भरपुर फसल देती है |
    पत्थर पूजते पूजते भी अब हार गया हु माँ ,
    इसीलिए भाग जाना चाहता हु ,इस दुनिया से दूर छीप जाना चाहता हूँ तुम्हारे आँचल मै
    हां इसीलिए की कभी ना बन सकूँगा माँ | माँ | माँ | माँ | माँ | माँ | माँ |

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