मेरे महिवाल
तुमने रंगों की गागर भरी थी
मैं चनाब का पानी लेकर क्या करती
तेरे गागर के रंगों से खुद को रंग लिया है
तेरे जीवन के कैनवस पर चित्रित हूँ .....
============================================================
तब ...
मैं रात का इंतज़ार करती थी
पूरा दिन बेचैनी में गुज़रता
कोलाहल से परे
रात की नीरवता में
तुम्हारे आने की संभावना लिए
दिल क्या
पूरा वजूद धड़कता था
जागी आँखों में एक सपना उतरता था ...
अब...
वो रात नहीं
अब रात की नीरवता में
दिल अनमना हो उठता है
बेसब्री से इंतज़ार होता है दिन का
शाम तक दुनिया अपनी लगती है ...
यूँ कई बार यह दिन भी
मेरी मुट्ठी से फिसल जाता है
पर उम्मीदें सेकेण्ड की सूई सी
साँसें लेती हैं ...
खुश हूँ
उम्मीदों के पंख लगा
मैं तुमको ही सोचती हूँ
सीढियों के धड़कने का
दरवाजों के कांपने का
इंतज़ार करती हूँ ...
तब और अब में
रात और दिन का फासला तो है
पर रात भी तुम्हारी आहटों से होती थी
दिन भी तुमसे है !!!
रश्मि प्रभा
अब रात की नीरवता में
ReplyDeleteदिल अनमना हो उठता है
बेसब्री से इंतज़ार होता है दिन का
शाम तक दुनिया अपनी लगती है .
किसी के के न होने के एहसास् से उपजी सुन्दर कविता। शुभकामनायें।
achchhi kavitaa
ReplyDeleteaajkal aap manovaigyanik kavita likh rahi hain rashmi ji jo man ko choo jaati hain.. udwelit kar jaati hain... darwajon kaa kaapna achha vimb hai...
ReplyDeleteshabdo me dhadkan hai...dhadkte man ki dhadkan bhari rachna
ReplyDeleteरात की नीरवता में
ReplyDeleteतुम्हारे आने की संभावना लिए
दिल क्या
पूरा वजूद धड़कता था
जागी आँखों में एक सपना उतरता था ...
Tab uar Ab ... me hi zindagi basar hoti hai... mai aaj bhi sochata hu, kabhi kahtm n ho ye kashmakash... kyuki... mere jeene kaa makasad hi nahi, aadat si ban gai hai ye....
magar
बहुत अची कविता रही रश्मि दी !
ReplyDeleteshabdhin kar diya aapne to...............
ReplyDeleteसब वक्त वक्त की बात है
ReplyDeleteना तब अपना था ना अब
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
सब समय के फेर की बात है, उस समय और आज के समय के अनुरुप सारे मूल्य बदल गए . अब प्यार उस परीक्षा से नहीं गुजरता है जिस के लिए उस समयकभी मिलन संभव ही न हुआ.
ReplyDeleteye samay kaa hee fair hai... Tab aur ab jisko ham jeete hai .. aur jiske sang chaltey hai...Kavita bahut bhavnaaon se bhari huvi.. ..sundar
ReplyDeleteतब और अब में रात और दिन सा फासला ...
ReplyDeleteमगर एहसास तो वही रहे ...!
tab aur ba ka fasle ko di.....aap hi sanjo sakte ho sabdo me......:)
ReplyDeleteवाह...क्या बात कही....
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण सुन्दर कविता..
तब और अब में
ReplyDeleteरात और दिन का फासला तो
rat aur din to vahi hai par ehsas badal gaya .shayad vah na aye ya shayad vah kabhi bhi kahi se bhatkata hua aa jaye .intjar hi to jindagi hai
tab aur ab mein chaahe waqt badle ya haath se fisle sab ko aatmsaat karna hin jivan hai. bahut achhi rachna, shubhkaamnaayen.
ReplyDelete