लम्बी नदी
छोटी सी नाव
लम्बा सा दिल ...
नाव सबको पार उतारेगी
रश्मि प्रभा
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- सार्थकता की तलाश है। फिलहाल बंगलौर में हूं। - गुल्लक, यायावरी और गुलमोहर- के माध्यम से यहां मुखातिब हूं। अधिक परिचय के लिए गुल्लक/गुलमोहर ब्लाग पर देखें 'काले-सफेद हाशिए।'
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मरने से पहले
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मैं
बिखर जाने से पहले
जीना चाहता हूं
फूल भर जिन्दगी
महकाना चाहता हूं
सुवास अपनी
मैं
हवाओं में विलीन होने से पहले
हंसना चाहता हूं
उन्मुक्त हंसी
भरकर फेफड़ों में
शुद्ध प्राणवायु
मैं
नष्ट होने से पहले
चूमना चाहता हूं
एक जोड़ी पवित्र होंठ
तृप्त होने तक
मैं
शरीर विहीन होने से पहले
स्वीकार करना चाहता हूं
अपराध अपने
ताकि
रहे आत्मा बोझविहीन
मैं
चेतना शून्य होने से पहले
सोना चाहता हूं
रात भर इत्मीनान से
ताकि न रहे उनींदापन
सच तो
यह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पहले ।
0 राजेश उत्साही
http://utsahi.blogspot.com/ गुल्लक में यादें,वादे और संवाद
http://apnigullak.blogspot.
http://gullakapni.blogspot.
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वाह! जो ऐसे जी गया फिर मरने से क्या डर्। एक सुन्दर और सकारात्मक सोच को दर्शाती शानदार रचना।
ReplyDeleteआत्म मंथन का बहुत ही सुन्दर चिंतन अपनी दार्शनिक भावों में व्यक्त किया है राजेश जी ने..! बेहद ही उम्दा रचना के लिए कोटिशः साधुवाद ! आभार !!
ReplyDeleteश्रेष्ठ कृति, आत्म मंथन॥
ReplyDeleteमैं
शरीर विहीन होने से पहले
स्वीकार करना चाहता हूं
अपराध अपने
ताकि
रहे आत्मा बोझविहीन
बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवटवृक्ष के कर्ताधर्ताओं का आभार। जो पाठक कविता पढ़ने आए और जो आएंगे उन सबका भी धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteसकारात्मक सोच
ReplyDeleteकविता में कुछ पंक्तियां विशेष रूप से अच्छी लगती हैं,कौन सी पंक्तियाँ छोड़ी जायें, यही मुश्किल है।
बहुत शानदार, आभार स्वीकारें।
मैं
ReplyDeleteचेतना शून्य होने से पहले
सोना चाहता हूं
रात भर इत्मीनान से
ताकि न रहे उनींदापन
.... बेहद सुन्दर दार्शनिक भाव में किया आत्म चिंतन के लिए आभार ...
आपकी पोस्ट की पहली लाईन ने ही आईना दिखा दिया
ReplyDeleteसच तो
ReplyDeleteयह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पहले...
बहुत उम्दा कविता है
राजेश जी, बधाई.
बाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
कविता अच्छी है....
लेकिन जिन पंक्तियों ने इसमें ना भूलने वाला तड़का लगा दिया है, वो हैं:
सच तो
यह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पहले...
स्वाद आ गया!
जुग-जुग जियो ना जियो, मगर जब तक जियो जी भर जियो!
आपका भी,
आशीष
..अंतिम पंक्तियों में कविता अपने पत्ते खोलती है।
ReplyDeleteसच तो
यह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पहले
..एक सशक्त कविता।
राजेश भाई की कविताओं पर कुछ कहने से पहले कई बार लिखना मिटाना पड़ता है.. कई बार कविता का पाठ करना होता है.. क्योंकि इतनी सधी हुई कविता होती है.. इतने विम्ब होते हैं कि दो पंक्तियों के बीच पूरा संसार, समाज, इतिहास छुपा होता है... यह कविता शुरू से सदहरण लगती हुई अचानक अंतिम पंक्त्यों में असाधारण हो जाती जा.. जीवन के प्रति अदम्य जिजीविषा इन पक्तियों में है.. जहाँ आज के समय में जब मूल्य बदल रहे हैं, जीवन के मायने बदल रहे हैं.. एक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं हम.. खास तौर पर मानसिक स्तर पर.. हम हर पल किसी ना किसी तरह मर रहे हैं.. ऐसे में यह कविता जीवन के प्रति प्रतिबद्धित दिखती है... कि
ReplyDelete"मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पहले"
आत्म चिंतन के लिए आभार ,बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteज़िंदगी को नापने का पैमाना ही हमने बरसों का बना लिया है,जबकि ज़िंदगी तो बस जीने और मरने के दो खूँटे के बीच की दौड़ है. कवि ने जीवन की इस दौड़ के जिन पड़ाव का वर्णन किया है, वही जीवन को जीवन बनाते हैं और उनका न होना मृत्यु!
ReplyDeleteएक कहावत भी है कि ज़िंदगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए. कवि ने इस ज़िंदगी को बड़ी बनाने की सारी अभिलाषाएँ व्यक्त कर दी हैं. और यह सिर्फ उनकी इच्छा नहीं मानवता को एक संदेश है कि
ज़िंदगी फूलों की नहीं
फूलों की तरह महँकी रहे!
उत्साही जी, आपकी कविता हमेशा सीख देती है!
वस्तुत: तो यह मानवीय सरोकारों की कविता है। इसमें 'मैं' को व्यक्तिवाची न देखकर व्यष्टिवाची देखने से यह व्यापक अर्थयुक्त कविता है। कवि को इस व्यापक हृदयता के लिए बधाई।
ReplyDeleteसच तो
ReplyDeleteयह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पहले ।
सकारात्मक सोच की कविता ..
मरने से पहले क्या मरना.
मैं मरना नहीं चाहता
ReplyDeleteमरने से पहले ...
बहुत सकारात्मक सोच ...वरना इंसान जीते रहते हैं आत्मा को मार कर ...!
'मरना नहीं चाहता हूं, मरने से पहले' इसीलिए तो कविता बन पाई है.
ReplyDeleteजीवन को जी लेने की उत्कट अभिलाषा, समय का चौंधियाना हमारी आँखों में, बचने का उपक्रम, छाँह ढूढ़ने का प्रयास। बहुत ही अच्छी कविता।
ReplyDelete.
ReplyDelete@--मरने से पहले क्या मरना...
एक इंसान अपने जीवन में कई बार मरता है। और हर बार उसका एक पुनर्जन्म होता है। इस पुनर्जन्म में उसे एक नयी शक्ति, नयी चेतना, नयी दिशा, नयी उमंग और एक नया सवेरा मिलता है।
जैसे सोना ताप कर कुंदन हो जाता है, वैसे ही जीवन में बार बार मरना एक अलौकिक व्यक्तित्व को जन्म देता है।
आओ मृत्यु तुम्हें गले लगा लूँ ,
तुमको चुम्बन से भर दूँ,
तुमको आलिंगन में ले लूँ ।
.
इतनी समझ मियां मजाल को आ जाये तो फिर वो मरे हो क्यों .....
ReplyDeleteअच्छी रचना, राजेश जी को बधाइयाँ ....
शानदार रचना.
ReplyDelete'वस्तुत: तो यह मानवीय सरोकारों की कविता है। इसमें 'मैं' को व्यक्तिवाची न देखकर व्यष्टिवाची देखने से यह व्यापक अर्थयुक्त कविता है। कवि को इस व्यापक सहृदयता के लिए बधाई।'
ReplyDeleteउपर्युक्त कथन में कृपया 'व्यक्तिवाची' के स्थान पर 'व्यष्टिवाची' तथा 'व्यष्टिवाची' के स्थान पर 'समष्टिवाची' पढ़ा जाय।
क्षमायाचना सहित।
marne se pahle, marna nahi chahta.....:)
ReplyDeletekitni pyari baat kahi bhaiya aapne!!
sidhe saadhe sabdo me ek behtareen rachna
jeevan darshan ko batati ek shandaar kriti!!
Aapki kavita bahut hi achhi hai.
ReplyDeleteise bar-bar padha ja sakta hai.
कठिन है, इस कविता पर कुछ कह पाना, बहुत कठिन; यह स्पष्ट दिख रहा है कि इसपर सही प्रतिक्रिया देने के लिये कविता का तत्वज्ञान आवश्यक है । इतना जरूर कह सकता हूँ कि जिसका जीवन एक उद्देश्य के प्रति भी प्रतिबद्ध हो गया उसे सही अर्थों में जीने का कारण मिल जाता है और वह अपना जीवन सार्थक भी कर जाता है।
ReplyDeleteयहॉं कवि मृत्युपूर्व अपनी सुवास बिखराना चाहता है, स्वाभाविक है कि ऐसे कृत्यों के प्रति प्रतिबद्ध है जिनसे सुवास बिखरे, उन्मुक्त हँसी चाहता है तो स्वाभाविक है कि उससे ऐसे कारण भी जुड़़े होंगे जो उसे बन्धन आडम्बर रहित हँसी दे सकें, उसमें उस प्रगाढ़ प्रेम की चाह है जो हमारी संस्कृति में 'दिल से रे' के पारिवारिक संबंधों में ही संभव है, उसमें शरीर त्याग से पहले अपने अपराध स्वीकारने का साहस है, क्या-क्या नहीं है। अब सकारात्मक उद्देश्य लेकर तो जीना ही संभव है, मर नहीं सकते। लंबा मृतप्राय: जीवन जीने से अच्छा तो यही है कि जितना जियें भरपूर जियें। Live life King size.
bahut hee sundar sach...
ReplyDelete.. bbadi khubsurti se likhi aapki rachna, kehne ke liye kuch nahi..
bahut hee sundar sach...
ReplyDelete.. bbadi khubsurti se likhi aapki rachna, kehne ke liye kuch nahi..
bahut hee sundar sach...
ReplyDelete.. bbadi khubsurti se likhi aapki rachna, kehne ke liye kuch nahi..