
कैक्टस की नियति कहो

रश्मि प्रभा
या उसकी भूमिका कहो
कि वह काँटों से बना है
प्रतीक के रूप में खड़ा है ....

रश्मि प्रभा
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"कैक्टस के फूल"
काँटों-भरी
अपनी हरियाली के संग
जीते रहे जीवन पर्यंत,
भूलकर अपना सारा दर्द
मुस्कुराते रहे
अभावों के शुष्क रेगिस्तान में,
समय के बेरहम थपेड़ों से
बेहाल
करते रहे
बारिस के आने का इन्तजार ,
देखते रहे
एकटक
उम्मीद के बादलों से भरा
सूना आकाश.
सूरज को रखकर
सदा अपने सर-आँखों पर,
उसकी तपती छांव में
सुख के रिमझिम फुहारों का
बिना किये इन्तजार
लगाते रहे बाग़,
श्रम के स्वेद-कणों से
भिगोते रहे जमीन
उगाते रहे फूल
तुम्हारे लिए
बिना मांगे
अपने श्रम का
प्रतिदान.
गुलाब के चाहने वालों
काँटों के बिना
बस फूलों की करो बात,
काँटों की तो हर जगह
एक सी ही है जात.
पर
तुम्हें
कहाँ दिखाई देता है
काँटा अपने गुलाब का,
कहाँ दिखाई देता है
हमारा त्याग.
हमने
स्वेच्छा से चुनी है
अवसरों की उसर जमीन
ताकि गुलाब को मिल जाए
हरा-भरा उपजाऊ मैदान,
फिर भी
कहाँ भाए तुम्हें
काँटों के बीच खिलते
"कैक्टस के फूल"
खुले आसमान के
नीले छप्पर तले
ओढ़कर
चाँद की शीतल चांदनी
सपनों के सिरहाने
रखकर अपना सर
बेफिक्र हो सोते रहे,
मुट्ठी-भर मिटटी में भी
मुस्कुराकर जीते रहे
अपने विश्वास के सहारे
अपनों के साथ
आजतक.
(समाज के उस बड़े हिस्से को सादर समर्पित जो हमें सबकुछ देकर आज भी सर्वथा उपेक्षित है )

राजीव कुमार
http://ghonsla.blogspot.com/
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह! उपेक्षित वर्ग का सुन्दर चित्रण!
ReplyDelete'उपेक्षित वर्ग के लिए'???????? मैंने तो खुद को देखा हर शब्द मे....एक औरत...एक पत्नी...एक माँ ...हर रूप मे बस खुद को.
ReplyDeleteऔर खुद से पूछा -क्या पाया??'
भीतर से किसी ने जवाब दिया -'तुझ-सा रंग,तुझसी शौखी,तुझ-सा जीने का ज़ज्बा किसी मे है? ???? इसी लिए तो प्रकृति की खूबसूरत रचना है तू. तू औरत है....श्राप नही वरदान है तेरा केक्टस होना.
राजीव! जब कोई हम पर कोई रचना लिखे तो खुशी और गर्व महसूस होता है न? महसूस कर रही हूँ....भीतर तक डूबेंगी तो सब महसूस करने लगेगी इस खूबसूरत कविता को जो मात्र उनके लिए है जिनके प्यार ,सेवा,समर्पण,त्याग की आज तक जितनी उपेक्षा उनके अपनों ने की वो किसी वर्ग की नही हुई.'वर्गों' को उपेक्षित करने वाले उनके अपने कोई नही थे...........
बेहतरीन चित्रण किया है।
ReplyDeleteसच कैक्टस के पेड़ से बहुत कुछ सीख मिलती है...जिसका आपने बहुत खूबसूरती से विवरण दिया है। आभार
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिवयक्ति....
ReplyDeleteवाह बेहद सारगर्भित और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत प्यारी खूबसूरत रचना |आभार |
ReplyDeleteआशा
सीखने की इच्छा हो तो कैक्टस भी कितना कुछ सिखा सकता है
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क
केक्टस अदम्य जिजीविषा का प्रतीक है और आपने खूबसूरती से इसे व्यक्त किया
ReplyDeletebahut achchhi prastuti, shubhkaamnaayen.
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