२६ जनवरी : इमरोज़ जी की वर्षगांठ पर वटवृक्ष की विशेष प्रस्तुति

पत्तों पर छलकती ओस की बूँदें
आती हैं बनकर इमरोज़
आतुर रहती हैं हर प्रातः
एक नज़्म सुनाने को
चिड़ियों का कलरव बनकर
पायल कि रुनझुन बनकर
प्रेम राग में डूबी-सिमटी
चाँद के रथ में आती छनकर
हर रोज़ शक्ल ले नज्मों की
कोई प्यार का गीत सुनाती है
गिर कर सुर कोई न भटके
बढ़ती हूँ हथेली में भरने
छन से गिरते हर साज़ को मैं
अपनी आँखों से लगाती हूँ
फिर जीती हूँ पूरे दिन को
इमरोज़ बना कर आँखों में...
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इमरोज़ की कलम से इमरोज़
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खेतों में खेलने के बाद रंगों से खेलने के लिए मैं लाहौर के आर्ट स्कूल में पहुँच गया कुछ बनने कुछ ना बनने से बेफ़िकर तीन साल आर्ट स्कूल में मैं रंगों से खूब खेला
जो कुछ हो चुका हैउसे दुहराने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं कुछ नए की तलाश में रहता हूँ-इंतज़ार भी करता
हूँ ...
मेरे लिए ज़िन्दगी एक खेल हैअपने बैट से ज़िन्दगी को ख़ूबसूरती से खेलता रहता हूँ...
आर्ट्स स्कूल के बाद ज़िन्दगी के स्कूल में भी रंगों से खेलना जारी रहा --कभी सिनेमा के बैनरों के रंगों सेकभी फिल्मों के पोस्टरों के रंगों सेखेल चलता रहा...
एक दौर कैलीग्राफी का भी आयाउर्दू के 'शमा' मैगजीन में कोई छः सालमैं अपनी तरह की कैलीग्राफी करता रहारंगों में भी खेल जारी रहाज्यादातर पेंटिंग बनी-ख़ास तरह के टेक्सटाइल केडिजाईन भी बने और घड़ियों के नए-नए डायल भी --और ज़िन्दगी कमाने के लिए बुक कवरसरंगों से खेलते-खेलतेज़िन्दगी चलती रही है
एक उम्र शायरा अमृता के साथमुहब्बत और आजादी का सत्संगसारी ज़िन्दगी ने देखाऔर जब अमृता पेड़ से बीज बन गईतो एक नया मौसम आ गयाअनलिखी नज्मों को लिखने का मौसम--जो मैं अब लिख रहा हूँ ....
और आखिर में मुझसे यूँ कहते हुए--------------
रश्मि,
कई सवाल होंगे जो तुमने अभी पूछे नहीं पर वो ज़िन्दगी में हैं कई शक्लों में
मेरी नज्में अक्सर सवाल भी उठाती हैं और जवाब भी ढूंढती हैं
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इमरोज़ !
यानि आज -
रब की देन
इबादत में सर झुक जाता है!
इमरोज़ !
ओस नहाई भोर
या पूनम की रात
कोई इतना सहज,सरल,पारदर्शी हो सकता है
यह सुबह शाम
उनके बारे में सुनते हुए जाना ...
इमरोज़ !
प्यार के बेमिसाल स्तम्भ
मधुर भावनाओं की सच्चाई हैं
- स्फटिक की तरह ...
इमरोज़ - अमृता के
प्यार को पूजा माननेवालों के दिलों में रहते हैं !
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जब कविता में
जब कविता में

इन्द्रधनुषी रंग घुलने लगें,
एक स्पंदित चित्र उभरने लगे,
तो संशय न करना ---
जो व्यक्ति काव्य में,
जीवित है,
वो "इमरोज़" ही है---
जब चित्रों के मौन में,
शब्द गूँजने लगें,
प्रेम घोलने लगें,
आसक्ति से विद्रोह कर,
अनुरक्ति बोलने लगे,
समझो कि-----
चित्रों में रंग नहीं,
"अमृता" बसी है---
ज्योत्स्ना पाण्डेय
काश एक इमरोज.........
काश एक इमरोज मेरी भी ज़िन्दगी में होता......
तो जीने का फलसफा ही कुछ और होता,
मैं चलती, मेरे संग संग चलता वो......
जो रूकती, तो पल भर को ठहर जाता वो भी,
हर अश्रु को मोती बना देता वो.....
जो रोती तो पल भर को सहम जाता वो भी,
मैं हंसती खिलखिला उठता वो......
जो मुस्कुराती तो अपने गम में भी मुस्कुरा उठता वो भी,
मेरी हर हार को जीत बना देता वो......
मेरी जीत के लिए जीती बाजी हार जाता वो भी,
मेरी धुन में गूँज उठता वो........
जो गाती मैं तो संग संग गुनगुना उठता वो भी,
मैं झूमती तो नाच उठता वो........
जो गिरती मैं तो चलते चलते लड़खड़ा जाता वो भी,
जो मरती तो मुझे अमर कर जाता वो,
मेरे मरने के बाद भी अपनी कलम से मुझे जिवंत कर जाता वो.........
काश एक इमरोज.........
रानी मिश्रा
"एक सूरज आसमान पर चढ़ता है. आम सूरज सारी धरती के लिए. लेकिन एक सूरज ख़ास सूरज सिर्फ़ मन की धरती के लिए उगता है,इस से एक रिश्ता बन जाता है,एक ख्याल,एक सपना,एक हकीक़त..मैंने इस सूरज को पहली बार एक लेखिका के रूप में देखा था,एक शायरा के रूप में,किस्मत कह लो या संजोग,मैंने इस को ढूंढ़ कर अपना लिया,एक औरत के रूप में,एक दोस्त के रूप में,एक आर्टिस्ट के रूप में,और एक महबूबा के रूप में !"
कल रात सपने में एक
औरत देखी
जिसे मैंने कभी नही देखा था
इस बोलते नैन नक्श बाली को
कहीं देखा हुआ है ..
कभी कभी खूबसूरत सोचे
खूबसूरत शरीर भी धारण कर लेती है...
ऐसे शब्द लिखने वाला इंसान ,कहने वाला इंसान यदि सामने बैठा हो तो उस से एक रूहानी रिश्ता खुद भी खुद जुड़ने लगता है ...अमृता से मिलने की इसी चाह ने मुझे उनके घर तक पहुंचाया पर वहां तब जब अमृता सशरीर उपस्थित नहीं थी पर इमरोज़ के लफ़्ज़ों से आज भी वो वही थी ...तभी तो इमरोज़ के मुहं से एक बार भी थी नहीं सुना अमृता के लिए और वो प्यार जिसको कभी कहने की बताने की जरुरत नहीं पड़ी एक दूजे को वह प्यार कितना पावन होगा ....
मैंने अमृता प्रीतम को बहुत छोटी उम्र से पढना शुरू किया था ,इमरोज़ उस लिखे में एक साये की तरह साथ साथ चलते रहे ..और अमृता की तरह ही मेरी सोच ने भी एक साया खुद में बुन लिया ..पर हर किसी को इमरोज़ मिले यह कहाँ मुमकिन है ...पर साक्षात् जब इमरोज़ से मिली और जो प्यार मैंने अमृता के लिए उनकी आँखों में उनके न रहने पर भी देखा तो सच कहूँ ...एक ख़ुशी के साथ कि प्यार अभी भी इस जमीन से उठा नहीं ,एक हलकी सी जलन भी दे गया कि क्या आज के युग में भी कोई किसी को इतना प्यार कर सकता है ..बिना किसी स्वार्थ के ....
चालीस साल में कभी भी अमृता और इमरोज़ ने एक दूसरे को I LOVE U नही कहा ..उन्हें कभी इस लफ्ज़ की ज़रूरत ही नही पढ़ी ..वैसे भी प्यार तो महसूस करने की बात है उसको लफ़्ज़ो में ढाला भी कैसे जा सकता है ......बस दोनो ने एक दूसरे की ज़रूरत को समझा ....कभी एक दूजे को बदलने की कोशिश नही की .... .यही तो प्रेम की प्रकाष्ठा है ..इस से उपर प्रेम और हो भी क्या सकता है ..
इमरोज़ नाम मेरे लिए तो प्यार लफ्ज़ का एक दूसरा नाम है एक ऐसा लोक गीत.एक ऐसा प्यार का रिश्ता जिसे सामाजिक मंजूरी की जरुरत नही पड़ती है ...
मैं एक लोकगीत
बेनाम ,हवा में खड़ा
हवा का हिस्सा
जिसे अच्छा लगूं
वो याद कर ले
जिसे और अच्छा लगूं
वो अपना ले --
जी में आए तो गा भी ले
मैं एक लोकगीत
जिसको नाम की
जरुरत नही पड़ी...
इमरोज़ शब्द मतलब आज टुडे ..उन्होंने अपना यह नाम खुद ही रखा उनसे मिलने पर यह भी जाना कि उनका सेन्स ऑफ़ हयूमर भी बहुत गजब का है वह छोटी छोटी बातो में भी हंसने की वजह तलाश लेते हैं और बहुत ही दार्शनिक बातें कह जाते हैं ..एक बार एक दोपहर में खाना लगा हुआ था कि इमरोज़ कहीं चले गए ...अमृता ने आवाज़ दी ----इम्मा जी (वह इमरोज़ को इम्मा कह कर बुलाती थी कभी कभी ) और कभी अलीजा जिसका मतलब है सखी मित्र सखा या आदर योग्य सबका अजीज अलीजा ....और इमरोज़ अमृता को कभी माँ सदके ,कभी बुल्ले शाह या अधिक माजा कह कर बुलाते .प्यार के कितने नाम ...कभी कभी तो जिंदगी एक नाम के लिए किसी विशेष से सुनने को तरसती रह जाती है और इंतज़ार रह जाता है कि कोई तो हो जो उसको प्यार के नाम से न सही उसके नाम सी ही पुकार ले ...खैर यहाँ बात अमृता के इमरोज़ की हो रही है ....माजा नाम उन्होंने अमृता का एक स्पेनिश नावल से पढ़ कर रखा जिसका मतलब होता है बिलकुल मेरा अपना ...तो अमृता ने इमरोज़ को पुकार कर कहा कि रोटी के वक़्त आप कहाँ उठ कर चले जाते हैं इम्मा जी ...इमरोज़ बोले माजा छत पर तेरी टंकी में पानी लगाने गया था ,तेरी टंकी में पानी लगाने के लिए बाकी टंकियों का पानी बंद करना पड़ता है ...........और आगे कहा ..जैसे तुझसे मिलने के लिए बाकी समाज से मिलना बंद करना पड़ता है ..अमृता ने यह सुन कर इमरोज़ का माथा चूम लिया ....
समाज की परवाह कब की इमरोज़ ने ..वह अमृता के लिए एक उस घने पेड़ की तरह रहे जिसकी छांव में अमृता बेफिक्री से सोती जागती ,मुस्कारती रही ...इमरोज़ ने एक जगह लिखा है
कानून
किसी अजनबी मर्द औरत को
रिश्ता बनाने का
सिर्फ मौका देता है
रिश्ता नहीं ...
रिश्ता बने या न बने
इसका न कानून
फ़िक्र करता है
और न जिम्मा लेता है
इमरोज़ मेरी कलम से जितना भी लिखूं उतना ही कम होगा ..मेरे लिए वह अमृता से ही पूजनीय हैं और जब जब यह एहसास दिल में जागेगा कि प्यार लफ्ज़ में बहुत सच्चाई है अभी भी इस दुनिया में तो इमरोज़ का ही मुस्कराता चेहरा यह गुनगुनाते हुए सामने आ जायेगा ..........
प्यार सबसे सरल
इबादत है
बहते पानी जैसी ....
ना इसको किसी शब्द की जरुरत
ना किसी जुबान की मोहताजी
ना किसी वक़्त की पाबंदी
और ना ही कोई मज़बूरी
किसी को सिर झुकाने की
प्यार से ज़िन्दगी जीते जीते
यह इबादत अपने आप
हर वक़्त होती रहती है
और --जहाँ पहुँचना है
वहां पहुँचती रहती है ....
रंजना (रंजू ) भाटिया
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...
गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....
ReplyDeleteदीदी बहुत अच्छी प्रस्तुति है
ReplyDeleteआप को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteइमरोज़ जी को जन्मदिन कि बहुत सारी शुभकामनायें ..
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
इमरोज़ जी के जन्मदिन पर यह विशिष्ट प्रस्तुति बहुत मन भाई ! जन्मदिन के लिये उनका हार्दिक अभिनन्दन एवं कोटिश: मंगलकामनाएं ! बधाई एवं आभार !
ReplyDeleteछह रंगों में सजी बढ़िया रही यह प्रस्तुति ... इमरोज़ जी को जन्मदिन की शुभकामनायें ...
ReplyDeleteआपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई ..
इमरोज जी को जन्मदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की 62वीं वर्षगाँठ पर
भी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
Imroz ji ko janmdin bahut bahut mubarak ho..........
ReplyDeletethank you so much didi.............
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteइस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, एक से बढ़कर एक, धन्यवाद्!
ReplyDeleteइमरोज़ जी को जम्नदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ...{थोड़ी देर से}
ReplyDeleteऔर इमरोज़ जी को इतने सारे शब्दों के माध्यम से मिलवाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...
सारी अभिव्यक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...
imroz ji ke baare mein padhkar achha laga aur sabhi ki soch mein wo kis roop mein shaamil hain ye bhi jaankar sukhad laga. imroz ji se itni baar mili hun aur har baar lagta ki kuchh aur janna rah gaya, unke saath har baar amrita ji se bhi milti hun.
ReplyDeletebahut shubhkaamnaayen.