
हवा मुझे छूकर गई है

कानों में गुनगुना के गई है
बांयी आँख फड़की है
हिचकी भी आई है .... कहीं यह सब तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !

रश्मि प्रभा
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कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
घटाटोप अन्धकार में
आसमान की ऊँचाई से
मुट्ठी भर रोशनी लिये
किसी धुँधले से तारे की
एक दुर्बल सी किरण
धरा के किसी कोने में टिमटिमाई है !
कहीं यह तुम्हारी आने की आहट तो नहीं !
गहनतम नीरव गह्वर में
सुदूर ठिकानों से
सदियों से स्थिर
सन्नाटे को चीरती
एक क्षीण सी आवाज़ की
प्रतिध्वनि सुनाई दी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
सूर्य के भीषण ताप से
भभकती , दहकती
चटकती , दरकती ,
मरुभूमि को सावन की
पहली फुहार की एक
नन्हीं सी बूँद धीरे से छू गयी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
पतझड़ के शाश्वत मौसम में
जब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
साधना वैद
मेरे बारे में
एक संवेदनशील, भावुक और न्यायप्रिय महिला हूँ । अपने स्तर पर अपने आस पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ जोड़ने की यथासम्भव कोशिश में जुटे रहना मुझे अच्छा लगता है ।
पतझड़ के शाश्वत मौसम में
ReplyDeleteजब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना -
बधाई
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
ReplyDeleteप्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
और इस आहट को महसूस करना जिन्दगी को सत्य के करीब ले जाना है ...पूरी कविता सुंदर बिम्ब और नया अर्थ संप्रेषित करती है ...शुक्रिया आपका
पतझड़ के शाश्वत मौसम में
ReplyDeleteजब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति !
मेरे मन के उपवन में एक
ReplyDeleteकोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
वाह ...बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...इस बेहतरीन रचना प्रस्तुति के लिये आभार ।
पतझड़ के शाश्वत मौसम में
ReplyDeleteजब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
एक से एक सुन्दर बिम्ब प्रयोग के साथ बेहद भावमयी रचना एक सुन्दर संदेश भी देती है।
hame bhi kisi ke aane ki aahat le rahi hai...:)
ReplyDeleteitti payari soch...!!
ek nivedan: mera blog jindagikeerahen.blgospot.com pata nahi kahan gumm hoga, agar aap iske revive ke liye koi suggestion de sakte hain, to bahut kripa hogi..!!
घटाटोप अन्धकार में
ReplyDeleteआसमान की ऊँचाई से
मुट्ठी भर रोशनी लिये
किसी धुँधले से तारे की
एक दुर्बल सी किरण
धरा के किसी कोने में टिमटिमाई है !
कहीं यह तुम्हारी आने की आहट तो नहीं !
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
kahi ye tmhare aane ki aahat to nhi
ReplyDelete..
ha sach m ye vahi aahat hai
unke aane ki
..
bahut khub
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteआपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत सुंदरता से बुना है शब्द जाल अपनी भावनाओं की उड़ान को ऊंचाई देने के लिए , पंख फैलाए उड़ने के लिए |सुन्दर शब्द चयन |बधाई अच्छी प्रस्तुति के लिए |
ReplyDeleteआशा
हम्म... न जाने क्यूं दिल तेज से धड़का था...
ReplyDeleteकहीं ये तुम्हारे आने की खबर तो नहीं...
बहुत अच्छी रचनाएँ...
ReplyDeleteपढ़कर कही कुछ अहसास जागे...
अवसान के भीतर से उदय की आहट .....जिजीविषा से भरपूर ....सुन्दर भावपूर्ण शब्द संयोजन के साथ ....किसलय सी कोमल रचना ......हम ऐसी ही और भी रचनाओं की आशा करेंगे आपसे ....
ReplyDeleteहवा मुझे छूकर गई है
ReplyDeleteकानों में गुनगुना के गई है
बांयी आँख फड़की है
हिचकी भी आई है .... कहीं यह सब तुम्हारे आने की आहट तो नहीं
kitni sunder aahat hai,hamen bhi chookar gayee.
sadhnajee ki kavita bhi mugdh kar gayee.
जब किसी के आने का इंतज़ार हो तो हर आवाज़ आहट में बदल जाती है और इंतज़ार और असहनीय हो जाता है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
आभार
मन उपवन में नहीं कलि ने जन्म लिया , पतझड़ से लड़ते लड़ते भी ...
ReplyDeleteये उसके आने की आहत ही तो है !
मनभावन कविता ...
प्रकृति में होने वाले हर परिवर्तन से आहट का सुनना ..बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDelete.
ReplyDeleteकोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं ..
भावपूर्ण रचना !!
.
मेरे मन के उपवन में एक
ReplyDeleteकोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
बड़ी ही प्यारी कविता है...बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
प्रेममय भावुक उदगार...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...