
चिड़िया तिनके ले मशगूल है
- घर बनाने में,
रोशनदान वाली जगह पसंद है !
जब भी कोई बाहरी आवाज़ आती है,
चिड़िया मासूम निगाहों से
मुझे देखती है,
' तुम तो माँ हो !
मेरे नीड़ की अहमियत बताना ज़रा
इन उदासीन लोगों को,
देखना,
कोई मेरी मेहनत नाकाम ना कर जाए !'
...........................................
छोटी कटोरी में पानी देकर
मैं उसे भरोसा देती हूँ..........
अपनी नन्हीं चोंच उसमें डुबाकर
वह आश्वस्त होती है,
और मैं !
अतीत के स्याह सायों में
डूबने लगती हूँ..............
डर ! डर ! डर !!!
यही तो था मेरे पास .............
मेरा दिल स्वतः कहता है,
' मैं जानती हूँ चिड़िया,
माँ के दर्द, उसकी ख्वाहिशों को,
उसके भय को........
तुम निर्भय रहो,
एक माँ तुम्हारी सुरक्षा में खड़ी है,
आँधी,तूफ़ान सब रोक दूँगी
तुम्हारे नन्हे चिडों के लिए
..........
मुझे तूफानों का रुख
मोड़ना आता है !'
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''प्रेम की पराकाष्ठा''
आज सुबह-सुबह ही
एक चिड़िया
कहीं से उड़ती-उड़ती
बर्फीली हवाओं से लड़ती
अपने भीगे पँख समेटकर
बगीचे में ठिठुरती हुई
इधर-उधर फुदकने लगी
और बहुत बेचैनी से
खाना ढूँढने की कोशिश में
बर्फ को कुरेदने लगी....
शायद अपने बच्चों को कहीं
किसी नीड़ में छिपाकर
बाहर ना आने को कहकर
यहाँ आई है कितनी आस
और आत्म विश्वास से
हर झाड़ में जाकर देखती है
कभी पत्तों के नीचे तो कभी
बर्फ में कुरेद के टटोलती है....
सोचती हूँ आज क्रिसमस है
तो शायद कुछ खास
खाना लेने आई होगी
अपने नीड़ को कुछ और
तिनकों से सजाया होगा
कुछ और मजबूत बनाया होगा
बच्चों को भी दिलासा दी होगी
कुछ खास खाना खिलाने की.....
पंछियों में भी तो क्षमता होती है
माँ में भी कितनी ममता होती है
इतनी देर से ढूँढ कर भी
ना वोह दिखती है थकी
ना ही और ढूँढने से रुकी....
अब उस कोने में कुरेद रही है
जहाँ कल मैंने कुछ ब्रेड के
टुकड़े फेंके थे...हाँ, तो
लगता है जैसे उसे वहाँ से
कुछ मिल गया हो
चूँ-चूँ कर खुशी जताती है
अपनी चोंच में कुछ दबाती है....
और जोर से पँख फड़फड़ा कर
कुछ उड़ान भरकर जरा सा
कुछ डगमगाती है
फिर गिरे हुये टुकड़ों को
चोंच में उठाकर उड़ जाती है....
मुझे कुछ देर बाद एक
ख्याल आता है कि अब वह
शायद अपने बच्चों के पास
पहुँचने ही वाली होगी
और उसके बच्चे माँ की
आहट पाकर ख़ुशी से
चूँ-चूँ कर शोर मचायेंगे
और उससे चिपक जायेंगे....
जब माँ उनको खाना देगी
तो खाने के टुकड़ों पर
छीना-झपटी भी होगी पर
एक अनोखी तृप्ति का
अहसास माँ को प्रेरित करेगा
उन्हें सब खाना खिलाकर
खुद बिना खाये सो जायेगी
पर बच्चों को नहीं बतायेगी
एक दिन यही बच्चे
बड़े होकर उसे छोड़ जायेंगें
कहीं और जाकर बस जायेंगे
वोह ये सब जानते हुये भी
अपने बच्चों को प्यार करती है
क्यों कि....
वोह एक माँ है....इसलिये
और एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती !
मैं एक साधारण गृहणी हूँ. भारत में मेरा जन्म एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. शिक्षा पूर्ण करने के बाद शादी कर दी गयी और लंदन में बसना हुआ. पति पहले से ही लंदन में थे..और फिर हम यहीं ही बस गये. कवितायें लिखना बचपन में एक शौक था जो शादी के बाद की परिस्थितियों से छूट गया. फिर करीब दो साल पहले हिन्दयुग्म से जुड़ी तो कुछ और कवितायें लिखीं..और फेसबुक पर आने के बाद लेखन में और प्रगति हुई. धन्यबाद.
- शन्नो अग्रवाल
मुझे तूफानों का रुख
ReplyDeleteमोड़ना आता है !'
बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में मां ने ...अपने भावों को जो शब्द दिये हैं ..बेहतरीन ।
और एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती !
दोनों ही रचनाओं में मां की ममता का बखान बहुत खूबसूरती से किया गया है ..बधाई के साथ आभार ।
एक माँ तुम्हारी सुरक्षा में खड़ी है,
ReplyDeleteआँधी,तूफ़ान सब रोक दूँगी
तुम्हारे नन्हे चिडों के लिए
..........
मुझे तूफानों का रुख
मोड़ना आता है !'
( बहुत सुंदर ... कितना सच है न ... एक आम औरत जब माँ बन कर खड़ी होती है तो न जाने कौन सी एक तूफानी ताकत आ जाती है )
रश्मि जी ,
ReplyDeleteआपकी हर रचना जीवन में संघर्ष करने की प्रेरणा देती
है .. तूफानों का रुख मोडना आता है ...कितनी गहन और अच्छी बात कही है ..
शान्नो अग्रवाल जी की कविता भी बहुत पसंद आई ...
वोह एक माँ है....इसलिये
ReplyDeleteऔर एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती !
मेरे ख्याल से इसके बाद कहने को कुछ नही रह जाता…………सब कुछ तो कह दिया …………बस यही माँ होती है।
मुझे तूफानों का रुख
ReplyDeleteमोड़ना आता है !
mantr-mugdh kar din aap.
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और एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती
bahut achcha likhi hain aap.
दोनों कविताओं के बीच झूल रही हूँ ..
ReplyDeleteहवाओं का रुख मोड़ना आता है ...
माँ स्वयं बच्चों की माँ हो जाए मगर अपनी माँ की सुरक्षा की तलबगार रहती है हमेशा ...
माँ का प्रेम आस्था होता है , इसकी कोई पराकास्था नहीं होती ...बहुत ख़ूब ..
एक और साधारण गृहिणी के ब्लौग से परिचित करवाने के लिए बहुत आभार !
दोनों ही कविताएं भाव विभोर कर गईं
ReplyDeleteरश्मि जी ,
आप के ब्लॉग पर आना एक सुखद अनुभूति है
शब्द कम पड़ जाते हैं प्रशंसा के
Rashmi ji ..
ReplyDeletedono kavitaayen mann ke bhaavo ko chhooti hue hain.
apne bachon ki maa hone ke baad bhi maa ki jarurat hume bhi mehsus hoti hai.
सुन्दर कविता...
ReplyDeleteएक माँ तुम्हारी सुरक्षा में खड़ी है,
ReplyDeleteआँधी,तूफ़ान सब रोक दूँगी
तुम्हारे नन्हे चिडों के लिए
..........
मुझे तूफानों का रुख
मोड़ना आता है !'
माँ का प्यार होता ही इतना सशक्त कि वह अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए दीवार बन कर खड़ा हो जाता है सभी मुसीबतों के सामने..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
और एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती !
बहुत मर्मस्पर्शी ....दोनों ही प्रस्तुति बहुत सुन्दर..
दोनों ही कवितायेँ अद्भुत हैं.
ReplyDeleteरश्मि जी दोनों ही कविताएँ बहुत सुंदर हैं. बार बार पढने का दिल चाहता हैं..
ReplyDeleteyeh dono rachnaye sirf rachna nahi, antarmann ki baat hai... Love U Maa...!
ReplyDeletedono hi kavitaye
ReplyDeletebahut sunder hai
....
दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर हैं मगर पहली वाली ने आँखें नम कर दीं. दो माओं की इशारों में गुफ्तगू दिल को छू गयी, ये बात और है एक चिड़िया और दूसरी इंसान है... आशा है की आप अपने मिशन में कामयाब रहेंगी और एक माँ का विश्वास नहीं टूटेगा. सादार
ReplyDeleteमाँ सिर्फ माँ होती है, वह चाहे पशु की हो, पक्षी की हो या फिर मानव की हो. अपने बच्चों के लिए जी जान से हिफाजत करती है और अपने जिगर के टुकड़ों के लिए एक प्रेम ही तो है उसके पास जो बिना किसी स्वार्थ के देती रहती है. भले ही वे बच्चे अपने परिवार के साथ कहीं भी रचें और बसें माँ उनके लिए हमेशा चिंतित रहती है. खाना बना कर अगर किसी बच्चे को बहुत पसंद है तो एक बार ये जरूर कहेंगी की ये उसको बहुत पसंद है और गीली ऑंखें लिए सबको परोस देती हैं. उसको बच्चों की याद तक रुला जाती है . फिर भी माँ अक्सर अकेली होती है.
ReplyDeleteरश्मि जी, सबसे पहला धन्यबाद मैं आपके लिये कहती हूँ क्योंकि जब मैंने ''प्रेम की पराकाष्ठा'' को लिखा था तो ये रचना आपकी निगाह में आई और आपने इसे पढ़कर इसकी सराहना की थी. और अब अपने ''वटवृक्ष'' की छाया में भी इसे स्थान दिया. और फिर जब मैंने आपकी रचना पढ़ी तो मैं अचंभित रह गयी और प्रभावित हुयी सोचकर कि अरे आपकी रचना भी मेरी रचना से कितनी मिलती जुलती है. हम दोनों की ही रचनाओं में अपने-अपने तरीके से एक ''माँ'' का अपने बच्चों के लिये प्रगाढ़ वात्सल्य.
ReplyDeleteसदा जी, संगीता जी, वंदना जी, मृदुला जी, वाणी जी, इस्मत जी, नीलम जी, कैलाश जी, शिखा जी, मासूम जी, प्रीति जी, दीप्ति जी, अंजना जी और रेखा जी...आप लोगों ने रचना को पढ़कर पसंद किया जानकर मुझे अपार हर्ष हुआ. आप सभी का आभार सहित धन्यबाद.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताएँ हैं। उपनिषद का आख्यान हैं ये।
ReplyDeleterashmi ji, bahut prernadayak rachna. shanno ji ki rachna bahut pasand aai. badhai aur shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteतुम निर्भय रहो,
ReplyDeleteएक माँ तुम्हारी सुरक्षा में खड़ी है,
आँधी,तूफ़ान सब रोक दूँगी
तुम्हारे नन्हे चिडों के लिए
कविता में अपनी संतान के प्रति मां के हृदय का स्नेह छलक उठा है।
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वोह एक माँ है...इसलिये
और एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती !
मां के असीम प्रेम को अभिव्यक्त करती एक सशक्त कविता।
दोनों कविताएं अत्यंत प्रभावशाली हैं।
बहुत ही प्यारी कवितायेँ...
ReplyDeleteमाँ कि ममता को कितने अच्छे से बयाँ कर दिया...
वाकई माँ के प्रेम कि कोई पराकाष्ठा नहीं होती...
आप दोनों का बहुत-बहुत शुक्रिया...
दोनों ही रचनाएं अच्छी लगीं।
ReplyDeleteदिनेश जी, जेन्नी जी, महेंद्र जी, पूजा जी, मनोज जी...मेरी और रश्मि जी दोनों की कविताओं के प्रति आप सबकी प्रशंसा व सराहना की अभिव्यक्ति के लिये
ReplyDeleteमैं हृदय से आभार प्रकट करती हूँ..बहुत-बहुत धन्यबाद.
मुझे तूफानों का रुख
ReplyDeleteमोड़ना आता है !'
रश्मि जी पहले तो आपको इन प्रेरक पँक्तिओं के लिये बधाई।
शानो जी कविता भी बहुत अच्छी लगी
वोह एक माँ है....इसलिये
और एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती !
बिलकुल सही कहा शानो जी ने । बधाई उनको इस सुन्दर कविता के लिये।
निर्मला जी, रचना को सराहने कि लिये आपको हृदय से धन्यबाद.
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