रिश्तों की बंदिशों से परे
एक ख्वाब हो
जिसे देखने की खातिर
मैं सबकुछ भुलाकर चलती हूँ
चाँद जलता है तो जले
मैं अपनी बन्द पलकें खोलूंगी नहीं
सुबह से पहले कुछ और नहीं ....

 




रश्मि प्रभा







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[parul2.jpg]
तुम 


नींद की हथेली पर
एक ख्वाब रख गए थे तुम
या कि मेरी उम्र का
हिसाब रख गए थे तुम!
यूँ भी कुछ नमकीन था
तेरा अनकहा आफरीन था
ख़ामोशी की आह पर
एक किताब लिख गए थे तुम!
हरफ-हरफ जैसे बरस
मैं देर तक जीता गया
जिंदगी के सवाल पर
शायद एक जवाब रख गए थे तुम !
सुलगी तिल्ली रात की
और चाँद जैसे जल उठा
जानता हूँ वो बदरंग हुआ
तो नीला नकाब रख गए थे तुम !
()पारुल

15 comments:

  1. सही बात है कुछ खाश थे तुम..........बहुत ही सुंदर रचना "तुम"..........बेहतरीन

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  2. जिंदगी के सवाल पर
    शायद एक जवाब रख गए थे तुम !

    ज़िंदगी सवाल-जवाब का एक अंतहीन सिलसिला ही तो है।

    अच्छी कविता। इस भावपूर्ण रचना के लिए धन्यवाद।

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति है धन्यवाद दीदी ..... पारुलजीकी रचनाये बहुत सुन्दर होती है ...शुभकानाए पारुलजी

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    बस एक और हो जाये ....

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  4. पारुल जी की रचनाओं में एक मखमली एहसास होता है .,..बहुत प्यारी रचना है

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  5. ज़िंदगी के सवाल पर पारुल जी के जवाब का ख्वाबी अंदाज़ कौन नज़र अंदाज़ कर पायेगा भला ! रश्मि जी! उनसे रू-ब-रू कराने के लिए धन्यवाद ! शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ उन्हें.....

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  6. सुलगी तिल्ली रात की
    और चाँद जैसे जल उठा
    जानता हूँ वो बदरंग हुआ
    तो नीला नकाब रख गए थे तुम !

    बहुत सुन्दर रचना..

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  7. बेहद ही खूबसूरत रचना परोसी आपनें।
    पारूल जी की कलम काबिले दाद है।
    आभार इस प्रस्तुति के लिये

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  8. वाह! बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  9. जबाब नहीं

    बहुत बहुत सुन्दर

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  10. बदरंग हुआ तो नीला नकाब रख गए थे तुम !
    सुन्दर !

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  11. अच्छी कविता। इस भावपूर्ण रचना के लिए धन्यवाद।

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  12. बहुत सुन्दर कविता ...और रश्मि जी ऊपर आपकी लिखीं पंक्तियाँ भी बेहद खूबसूरत ... फोटो - उम्दा

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  13. वो बदरंग हुआ
    तो नीला नकाब रख गए थे तुम !

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  14. एक बेहतरीन काव्य के लिए पुनः धन्यवाद् .आपकी कविताओ का तो मै हमेशा से कायल रहा हु . पारुल जी ने भी दिल को छूने वाली रचना की है. यही जज्बा बना रहे, और हमें, कविताओ का स्वाद मिलता रहे, शुभकामनाये

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