मुझे अकेलेपन से घबराहट तो नहीं होती पर जब एक लम्बा$$$$$$$ वक़्त गुज़र जाता है तो यादें अलसाने लगती हैं दीवारें जुम्हाइयां लेने लगती हैं फिर मैं उम्मीदों की नन्हीं उंगलियाँ थामती हूँ- जल्दी ही रात होगी चाहूँ ना चाहूँ नींद भी आ जाएगी और सवेरा हो जायेगा ....
 



रश्मि प्रभा




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बेबस ज़िन्दगी
ज़मीन और जिस्म के बीच सुगबुगाता आदमी
जैसे फूट रही हो बाँस की कोपलें
छू ली मैंने बहती हुई रात
कितनी सर्द, कितनी बेदर्द
करने लगी मज़ाक अपने आप से गरीबी
कितनी रातों से नहीं सोती है नींद मेरी
भीग गये अब तो आँसू भी रोते-रोते
एक सदी का सा एहसास देता है पल
घाव-सा कुछ है सितारों के बदन पर
आँखं छिल जायेंगी देखोगे अगर चाँद
काट दिये किसने पर हवाओं के
बिल्ली के पंजों में आ गया बादल
आज फिर मुसलाधार बरसा है लहू
पानी का रंग लाल है सारे नालों में
एकत्र करता हूँ बोतल में काली धूप
मुट्ठी से फिसल जाती है ज़िन्दगी मेरी
देख रहा है उदास काँच का टूकड़ा
आज भी टेढ़ी है उस कुतिया की दुम
मचलती जाती है नदी मेरी बाहों में
कितना मटमैला है शाम का क्षितिज
टूट गया कोई हरा पत्ता डायरी से
वर्षों से खाली पड़ा है एक कमरा
चूम लेती है मुझे तस्वीर बाबूजी की
याद का कोहरा घना है बहुत
वह जो मिला था पॉकेटमार था शायद
चॉकलेट नहीं है अब जेब में मेरी
हर एक पल बढ़ती रही भूख बच्चों की
उबलता रहा सम्बन्ध का सागर
खो गई जाने कहाँ दूध-सी मुस्कान
पिछले साल माँ ने मेरी स्वेटर पर
उकेरा था एक नदी और एक चिड़िया
नदी में डूब कर मर गई वह चिड़िया
और बन्द हो गया आदमी का सुगबुगाना

My Photoत्रिपुरारि कुमार शर्मा
http://tanhafalak.blogspot.com/
शिक्षा- एम.ए. (पत्रकारिता) अध्ययन जारी ।
प्रकाशन- दैनिक हिन्दुस्तान, साहित्य अमृत,(वेब),जानकी पुल (वेब), सरिता,मुक्ता, संचेतना, दि गौड़सन्स टाइम्स जैसी पत्र-पत्रिकाओं – में कविता,कहानी, ग़ज़ल एवं लेख प्रकशित । जानकी पुल और सृजनगाथा के लिए लेखन ।
सह-लेखन- स्मृति में साथ (डॉ. नरेंद्र मोहन पर केंद्रित संस्मरण-संग्रह) ।
सम्मान- श्री गुरू तेग़ बहादुर खालसा महाविद्यालय (दिल्ली विवि) में (2007-09) तक ‘बेस्ट ऑल
राउन्डर स्टूडेंट’ (हिन्दी) का सम्मान । दिल्ली विश्वविद्यालय की (अंतर महाविद्यालय) काव्य एवं अन्य
प्रतियोगिताओं में कई बार पुरस्कृत ।
विशेष- हिंदी, मैथिली और उर्दू में कविता-कहानी लेखन । मैथिली, उर्दू और अँगरेज़ी कविताओं का हिंदी
अनुवाद ।
संप्रति- सह-सम्पादक @ स्वाभिमान टाइम्स (हिंदी दैनिक अख़बार) ।

12 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  2. बहुत सुन्दर रचना।

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  3. भावनाओं से ओत-प्रोत सुन्दर रचना..

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  4. बेहद भावपूर्ण रचना...
    पूर्णतया डूबी हुई...
    आप दोनों को धन्यवाद...

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  5. पिछले साल माँ ने मेरी स्वेटर पर
    उकेरा था एक नदी और एक चिड़िया
    नदी में डूब कर मर गई वह चिड़िया
    और बन्द हो गया आदमी का सुगबुगाना

    kitna gahra bhaw hai...samvednao se bhara hua..:)

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  6. बेबस ज़िन्दगी को शब्दों और प्रतीकों का अद्भुत सहारा दिया है कवि ने।

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  7. और सवेरा हो जायेगा ....
    ...bahut achchi lagi.

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  8. बहुत ही सुन्दर शब्द्चित्रण...

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