
चाँद फिसलकर आ गया है खिड़कियों पर
ग़ज़ल की ताबीर ही कुछ ऐसी है ...
(ग़ज़ल)
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
खार के बदले में यारो खार देना सीख लो
गुल दिया करते जो, वो लोग हैं नादान से
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
...
मेरे बारे में
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए.
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
ReplyDeleteसांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से ।
वाह ...हर पंक्ति अपने आप में बहुत कुछ कहती हुई ...आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
बहुत खूबसूरत गज़ल ....हर शेर मन तक पहुँचता हुआ ..
ReplyDeleteनीरज जी की यह गज़ल, हर पंक्ति एक सार्थक संदेश है।
ReplyDeleteजब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
ReplyDeleteऔर उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
waah waah waah... wese to har pakti apne aap main purn hai, satik hai...
Aapki gazal chu gayi mere mann ko to..!
वाह...
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया इस ग़ज़ल से मिलवाने के लिए...
मुझे भी सीखना है... शायद कुछ रास्ता मिले...
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से...
कितनी गंभीर और सही बात है मगर अपनी उम्र , ओहदे और रुतबे के बल पर लोग इसको भुलाये रहते हैं ...
खिड़की से झांकते चाँद की तो बात ही क्या है ...!
har sher apne aap mein mukammal...badhai.
ReplyDeleteएक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
bahut achcha likhe hain.
श्री नीरज जी को पढ़ना सदा ही सुकून और तृप्ती देता है. कौनसे शेर को कोट करूँ? हर शेर सीधा दिल की गहराइयों तक उतर गया. प्रत्येक शेर के आशार जैसे हमारे आस-पास की सच्चाई को संजोये हैं. नीरज जी जितने अच्छे इंसान हैं उतने ही अच्छे आ'शर उनके शरों में भी नज़र आते हैं. उनकी ग़ज़ल के बारे में ज्यादा कह पाना मेरे सामर्थ्य के बाहर है. आभार ! रश्मि दी का भी शुक्रिया नीरज जी को पढवाए के लिए.
ReplyDeleteसरल शब्दों में गहरे भाव की अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसरल शब्दों में गहरे भाव की अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteएक से बढकर एक शेर...उम्दा गज़ल.
ReplyDeleteएक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
बहुत ख़ूब नीरज जी ,
विचारों को सहजतापूर्वक अश’आर में ढाल देने की अद्भुत कला है आप के पास
शुक्रिया रश्मि जी
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
ReplyDeleteसांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से ।
वाह!हर पंक्ति अपने आप में बहुत कुछ कहती हुई ,आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
कुछ शेर पढे तो लगा कि पहले पढे हुये हैं और जब नीचे नाम देखा नीरज जी का तो समझ गयी कि अक्सर उनके लिखे शेर मुझे याद रहते है। बहुत अच्छी गज़ल। बधाई।
ReplyDeleteएक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
बहुत अच्छी गज़ल। बधाई।
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
ReplyDeleteप्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
पहले शेर पर ही सिक्सर मारने वाले सिर्फ़ एक ही शख्स हैं …………नीरज जी और यही उनकी खासियत है……………हर शेर बेहतरीन होता है पढने वाला उनमे खो जाता है।
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से bahut khoob ...
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से ..
Awesome creation !
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