पद-चिन्ह
ये पदचिन्ह,
नई नवेली दुल्हन
के से,
मुझको तो लगते
हैं।
जिस दिन मेरी
पुत्रवधु ने,
पलक झुकाये,
झीने से घूँघट मे
गृह प्रवेश किया
था,
पायल और चूड़ी की
छम छम खन खन,
मेरे आँगन मे
गूँजी थी,
ये पदचिन्ह,
मुझे तो,
उस दिन के ही
लगते है।
अनुभूति
सू्र्य का
स्वागत,
मै बाँहें फैला
कर करता हूँ,
आग़ोश मे लेलूँ
सूरज को,
महसूस कभी ये
करता हूँ।
इस सुनहरे पल मे,
कुछ आधात्मिक
अनुभूति
होतीं हैं।
जो नहीं मिला
मंदिर मे कभी,
उसका दर्शन मै
करता हूँ।
बीनू भटनागर
जन्म ०४ सितम्बर १९४७ को बुलन्दशहर, उ.प्र. में हुआ। शिक्षा: एम.ए. ( मनोविज्ञान, लखनऊ विश्वविद्यालय) १९६७ में। आपने ५२ वर्ष की उम्र के बाद रचनात्मक लेखन प्रारम्भ किया। आपकी रचनाएँ- सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी, माधुरी, सृजनगाथा, स्वर्गविभा, प्रवासी दुनियाँ और गर्भनाल आदि में प्रकाशित। आपकी कविताओं की एक पांडुलिपि प्रकाशन के इंतज़ार में हैं। व्यवसाय - गृहणी। सम्पर्क: ए-१०४, अभियन्त अपार्टमैंन्ट, वसुन्धरा एनक्लेव, दिल्ली, - ११००९६, मो. - ९८९१४६८९०५
दोनों ही बहुत भावपूर्ण हैं..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण....
ReplyDeleteअनु
दोनों ही कविताएं अपनी बात कहने में सक्षम हैं
ReplyDeleteBINU JI KEE KAVITAAYEN MAN PAR
ReplyDeleteSUKHAD PRABHAAV CHHODTEE HAIN .
दोनों ही रचनाये अच्छी लगी,,,,
ReplyDeleteबीनू भटनागर जी रचना साझा करने के लिए आभार,,,
RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
अच्छी रचनाएँ. खासकर पहली रचना 'पदचिह्न'. आभार !
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