नया आकाश
उस दिन
काँच के बिखरे हुए टुकड़ों में जब झाँका
तो पाया स्वयं का ही प्रतिबिंब
बिखरा-बिखरा था अस्तित्व
फिर उस दिन
खंडहर के टूटे हुए टुकड़ों को जोड़ कर
असली शक्ल ढूँढ़नी चाही
तो पाया अपना ही घरौंदा
नज़र आया जो था टूटा-टूटा सा
काँच के टुकड़े हँसते रहे
खंडहर के टुकड़े बोलते रहे
आज
मैं खुद को समेटने लगी हूँ
जोड़-जोड़ घरौंदा बनाने लगी हूँ
इतिहास को इतिहास ही रहने दो
मैंने नए आकाश तराशने के लिए
एक नयी औरत को
आमंत्रण दिया है
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हम दोनों मौन हैं
हम दोनों मौन हैं
बस इतना याद है
दो हथेलियों का साथ है
एक हथेली मेरी और
एक तुम्हारी है
हम दोनों मौन हैं
चाँद मेरी तरह पिघल रहा है
नींद में जैसे फिर चल रहा है
मेरी खुली आँखों में ख़्वाब हैं
तेरी खुली आँखों में अलाव है
मगर हम दोनों फिर भी मौन हैं
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बोंजाई
हर रोज़ यह चाँद
रात की चोकीदारी में
सितारों की फ़सल बोता है
पर चाँद को सिर्फ बोंजाई पसंद है
तभी तो वो सितारों को
कभी बड़ा ही
नहीं होने देता है ।
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bonjaai ......khaas taur par behad pasand ayi waise to sabhi kavitaayen achchi hain ........shubhkaamnaayen ........
ReplyDeleteवाह तीनों ही रचनाएं बहुत सुन्दर र्हैं...
ReplyDeleteANITA JI , ACHCHHEE KAVITAAYON KE
ReplyDeleteLIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
तीनो अच्छी हैं खास कर बोंजाई !
ReplyDeleteteeno ek se badh kar ek:)
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