बंद आँखों पे समझना न नींद का कहर
धुंधला न जाएँ सपने सो पलकें गए हैं ठहर ।
खो गए हो दुनिया की भीड़ में छोड़ मेरा दामन
वक़्त थम गया ,बहारें रूठ गयीं छोड़ मेरा आँगन ।
हम तो बैठे हैं पहलु में भूल हर खता को
किस गुनाह की सजा देते हो भूल मेरी सदा को ।
जीने का बहाना मिल गया उलझनों में तलाशते रास्ता
वरन् फूल भरी जिंदगी के छलावे से होता बस वास्ता ।
अब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा
इक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा ।
मिल जाओ गर भागती जिंदगी की जद्दोजेहद में
अजनबी सा ठिठक जाना पहचानी सी आहटों में ।
ढेर सारी यादों को देकर भूल जाने कहते हो
मानों सागर में मिली अश्कों को ढूंढ़ लाने कहते हो ।
आपकी बेरुखी ने मुझे आपका कायल बना दिया
आपकी तसव्वुफ़ से रेगिस्तान में सहरा बना दिया ।
कविता विकास
http://kavitavikas.blogspot.in/
वाह ... बहुत ही बढिया ।
ReplyDeletevery nice
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2. दिल है हीरे की कनी, जिस्म गुलाबों वाला
3. तख़लीक़-ए-नज़र
सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह!! बहुत खूब...
ReplyDeleteअब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा
ReplyDeleteइक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा ।
bahut khub
wah!bahut khoob
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत
ReplyDeleteऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति......
mitron ,dhanywad ...aabhar
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