फरियाद ....
आजादी के इस पावन अवसर पर
आइए सुनते हैं इनकी फरियाद
चीख-चीखकर ये भी कह रहे हैं
आखिर हम हैं कितने आजाद
पहली बारी उस मासूम लड़के की
जो भुखमरी से ग्रस्त होकर
न जाने हररोज कितने अपराध कर ड़ालता है
दूसरी बारी उस अबला नारी की
जो आए दिन दहेज़ के लोभियों द्वारा
सरेआम दहन कर दी जाती है
तीसरी बारी उस बच्चे की
जो शिक्षा के अधिकार से वंचित
अज्ञानता के गर्त में गिरा दिया जाता है
चौथी बारी उस बुजुर्ग की
जो अपने ही घर से वंचित होकर
वृद्धा आश्रम में धकेल दिया जाता है
पाँचवीं बारी उस मजदूर की
जो ठेकेदार की तानाशाही से
ताउम्र गरीबी झेलता है
छठी बारी उस जनता की
जो नेताओं की दादागिरी के कारण
मँहगाई की मार सहती है
तो आओ,हम सब इनकी फरियाद सुनकर
एक मुहिम चलाएँ
सही मायनों में आजादी का अधिकार
इन्हें दिलाएं !
प्रीत अरोड़ा
जन्म – २७ जनवरी १९८५ को मोहाली पंजाब में। शिक्षा- एम.ए. हिंदी पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी में दोनो वर्षों में प्रथम स्थान के साथ। कार्यक्षेत्र- अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन व अनुवाद। अनेक प्रतियोगिताओं में सफलता, आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों तथा साहित्य उत्सवों में भागीदारी, हिंदी से पंजाबी तथा पंजाबी से हिंदी अनुवाद। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन जिनमें प्रमुख हैं- हरिगंधा, पंचशील शोध समीक्षा, अनुसन्धान, अनुभूति, गर्भनाल,हिन्दी-चेतना(कैनेडा),पुरवाई (ब्रिटेन),आलोचना, वटवृक्ष,सृजनगाथा,सुखनवर, वागर्थ,साक्षात्कार,नया ज्ञानोदय, पाखी,प्रवासी-दुनिया, आदि मे लेख,कविताएँ,लघुकथाएं,कहानियाँ, संस्मरण,साक्षात्कार शोध-पत्र आदि। वेब पर मुखरित तस्वीरें नाम से चिट्ठे का सम्पादन. E-mail-arorapreet366@gmail.com
सार्थक भाव व्यक्त करती रचना...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये..
:-)
बहुत खूबसूरत रचना………………स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeletesundar rachna..
ReplyDeleteशिव खेडा जी की किताब है...फ्रीडम इज नॉट फ्री...हर जेनेरेशन को अपनी आज़ादी की कीमत चुकानी पड़ती है...हमारे बुजुर्गों ने अपना काम कर दिया...अब हमारा काम है उस आज़ादी को मेंटेन रखना...इसके लिए भी कुर्बानियां चाहिए...पर अफ़सोस हम असहाय से मूक दर्शक बने बैठे हैं...और चाहते हैं सब ठीक हो जाए...माइंड इट...फ्रीडम इज नॉट फ्री...
ReplyDeleteस्वतन्त्रता की मात्रा नहीं, गुणवत्ता देखनी होगी।
ReplyDeleteमार्मिक व सटीक! वाह!
ReplyDeleteham kya karte rhe abtak
ReplyDeleteआजादी का अर्थ बदलता जा रहा है ... सबने आज इसकी अलग अलग परिभाषा बना ली है और कैद होकर रह गए है इसके अन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चिंतनशील रचना
प्रस्तुति हेतु आभार
अच्छा लिखा है...बधाई
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