हमने देखा जिसे
जिस वक्त भी देखा
काफीर सी नजरों में
शैलाब देखा
एक बुलबुला सा पानी का
दर्द का समुंदर
अपनों में ही गैरों को देखा

एक छोटा सा हवा का झोंका
अंबर में खुदगर्ज की तरह
आहें भरता
जिन्दगी तरासते देखा
एक टीस कामयाबी की
मन में लिए
दुनिया की पलकों में
खुद को छिपाते देखा...
और देखा उसे भी
जो शायरी करता है
गलियों, चौराहों, तन्हाई में
मुशाफिरों की तरह
ना कोई ठिकाना
ना कोई आशियाना
बनाते देखा।।

कातिलाना हुश्न की मलिका
जो बिकती है दुकानों में
शराबों की तरह...
नैनों में आंसू लिए
सरिता में बह रही
ख्वाबों की तरह..
मां की आंचल में भी
अब सुकून मिलता कहां मंगल
जहां भी देखा
मां के ममत्व को बिकते देखा...

अब ना रही उम्मीद
इस दुनिया से
जहां रिश्तों को
रिश्तों के लिए
परायों से मांगते भीख देखा
अहमियत ना रही उनकी जरा भी
जिनके वास्ते
खुद को मोलभाव होते देखा।।


() मंगल यादव

मंगल यादव मूल रुप से जौनपुर, उत्तर प्रदेश का रहने वाले हैंये इस समय हरियाणा न्यूज चैनल, दिल्ली में काम कर रहे हैं। पत्रकारिता इनका शौक है। इन्हें बचपन से लिखने की आदत रही है। अभी तक इनके दो खण्ड काव्य समेत ये कई व्यंग और निबंध लिख चुके हैं

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