गुजरात - 27 फरवरी 2002
"हर रोज की तरह उस सुबह भी मैंने क्रिकेट की ख़बरें पढ़ने के लिए ही अखबार उठाया लेकिन उस सुबह अखबार लाल खून से रंगा था , एक दिन पहले ही जब गोधरा जल उठा था और कौन जानता था कि उस आग की लपटें पूरे देश को जकड़ लेंगी और हमें इंसानियत और धर्म का नंगा, खूंखार और बदसूरत चेहरा देखने को मिलेगा | मैं बहुत छोटा था तब लेकिन उस दिन मैंने पहली बार जाना कि दंगा किसे कहते हैं |"
उसने भी तो किसी को खोया था , वो उसके पड़ोस में रहती थी , शायद कोई ८-९ साल की होगी बहुत जिद्दी और बहुत प्यारी | वो उसे भैया कहती थी और दिन भर उसके साथ शरारत किया करती -
टाफ़ी का वो आधा भरा डिब्बा ,
सोचता हूँ ,
किसी को दे दूँ ,
पर उम्मीद है
तुम आओगी और तुतलाकर टाफी खिलाने की जिद करोगी |
हर रोज जब दफ्तर को निकलता हूँ ,
सोचता हूँ ,
शायद तुम दरवाजे पर ही मिलोगी ,
गाड़ी से मस्जिद तक चलने की जिद करोगी |
मैं आज भी शाम को कहीं घूमने नहीं जाता ,
बस मेज के उपर रखे लूडो को देखता हूँ ,
और सोचता हूँ ,
शायद आज शाम तो तुम लूडो खेलने की जिद करोगी |
आज भी मेरे सिरहाने पर ,
दो तकिये रखे हैं ,
सोचता हूँ ,
शायद आज रात तुम कहानियाँ सुनने की जिद करोगी |
पर
फिर सोचता हूँ ,
अपने हाथों से ही तो दफनाया था तुम्हें ,
फिर तुम कैसे आओगी , कैसे कोई जिद करोगी |
काश तुझे उस सुबह मस्जिद पर छोड़ा ही न होता ,
तो आज तुम जिन्दा होती ,
काश तुम्हारी एक जिद ना मानी होती ,
तो आज तुम जिन्दा होती ,
काश राम और अल्लाह ही न होते ,
तो आज तुम जिन्दा होती ,
काश इंसान में कुछ इंसानियत भी होती ,
तो आज तुम जिन्दा होती |
खौफ का वो मंजर भूलने की कोशिश तो करता हूँ ,
हर रोज ,
मगर ,
जिंदगी गुजारने के लिए उस मस्जिद से गुजरना भी जरुरी है |
तेरी शरारतों भरी जिद भूलने की कोशिश तो करता हूँ ,
हर रोज ,
मगर ,
कुछ देर मुस्कुराने के लिए तुझे याद करना भी जरुरी है |
कहाँ होगी तुम ,
शायद न राम के पास न अल्लाह के पास ,
तुम उस दुनिया में होगी ,
जहाँ प्यार ही अकेला मजहब होगा ,
और वही असली जन्नत होगी |
अब तक तो काफी बड़ी हो गयी होगी तुम ,
लेकिन जन्नत में भी तुम्हें हिचकी आती होंगी ,
क्योंकि मैं आज भी तुम्हे याद करता हूँ
मैं आज भी तेरी आवाज सुनता हूँ ||
lekin aajkal godhra ko bhulkar log gujrat dange hi yaad karte hain
ReplyDeleteuff
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक ... अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमार्मिक रचना...
ReplyDeleteबात राम और अल्लाह के होने या न होने की नहीं है, बात है इंसानियत के न होने की | राम और अल्लाह तो एक ही नाम हैं, पर धर्म या मजहब के नाम पर जो राजनीति का गन्दा खेल समाज में खेला जा रहा है वही सबसे खतरनाक है| यह गन्दा खेल खेलने वाले और खिलाने वाले नर्क में या दोजख में तो जायेंगे ही पर अपने अंतिम समय में भी अवश्य ही तड़प-तड़प कर मरेंगे|
इस पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद |
ReplyDelete-आकाश
मार्मिक रचना
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना आँखों के सामने वो चित्र सा बनाती हुई रचना दिल छू गई शुभकामनाएं
ReplyDeletedilko chhoo lene wali abhivyakti
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