कविता
दोस्तों,
उस औरत के बारे में
हर कोई सोचता है
हर पुरुष देखता है
और अपने भीतर भर लेना चाहता है
जिसकी छाती खूबसूरत अंगिया में
कसी है
और देहयष्टि याद दिलाती है
सौन्दर्य की देवी - वीनस की
एक ऐसी वीनस
जिसके होंठ ही नहीं
वरन
पूरा तन ताज़े गुलाब सा है
जो हँसती है तो फूल झरते हैं
देखती है
तो कलेजे के भीतर
पहुँचती है
ओस सी ठंडक
पर दोस्तों...
उस काली औरत के बारे में
कोई क्यों नहीं सोंचता
जो आज भी पत्थर तोड़ती है
इलाहाबाद के पथ पर/या
किसी घने पेड़ के नीचे
हाँका कर के ले जाई जाती है
और शिकार हो जाती है
दोस्तों-
उस बेबस औरत की ओर
क्यों नहीं देखते
जिसकी बदरंग खुली छाती से
बूंद-बूंद टपकता है दूध
पर,
उसका काला नंग-धड़ंग बच्चा
चिलकती हुई धूप में
मुँह में सूखा अंगूठा दिए
किसी टूटी डलिया के भीतर पड़ा
तड़पता है एक बूंद दूध के लिए
पर,
वह मजबूर औरत
बेबसी से सींचती है
अपने ही दूध से
टूटते हुए पत्थरों को
दोस्तों...
सोचना
देखना
और अंकपाश में भर लेना
अगर
आदमियत की इंतिहा है
तो देखो
एक बार इंसान बन कर
उस काली औरत की ओर
जिसकी बदरंग छाती
किसी अंगिया की मोहताज नहीं
जिसकी छाती में
दूध नहीं, अमृत भरा है
और जिसके बाहर नहीं
बल्कि भीतर
क़ैद है
हजार-हजार वीनस
एक बेटी...बहन...व माँ के रूप में...
() प्रेम गुप्ता `मानी’
जन्म:इलाहाबाद/ मुख्य कृतियाँ : कथा संग्रह (संपादित)- अनुभूत , दस्तावेज़ , काथम , मुझे आकाश दो
कथा संग्रह- लाल सूरज / कविता संग्रह- शब्द भर नहीं है ज़िन्दगी, अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
लघुकथा संग्रह- सवाल-दर-सवाल/ संपर्क : " प्रेमांगन ", एम.आई.जी-२९२, कैलाश विहार, आवास विकास योजना संख्या-एक, कल्याणपुर, कानपुर- 208017 (उ.प्र.)
Blog: www.manikahashiya.blogspot.com
Email: premgupta.mani.knpr@gmail.com
बेहतरीन...
ReplyDeleteगहन रचना...
सादर
अनु
yeh itni khubsurat aur gehri rachna hai ki kya kahu......seedhe dil par utarti hai.....
ReplyDelete.
ReplyDeleteइस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.
कब सीखेगा आदमी स्त्री को उसके शरीर से इतर देखना आत्मीय रिश्तों में !
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति !
आप सभी की टिप्पणियों के लिए आभार...।
ReplyDeleteमानी