लघु कथा 
उधार की महिमा 

चित्र : गूगल से साभार

 मेरा एक मित्र है - सुमीत . दस और बारह साल के दो बेटे हैं उसके . माँ - बाप अभी जीवित हैं और उसके साथ ही रहते हैं . बेचारे की अच्छी - खासी नौकरी थी लेकिन कंपनी का दीवालिया होते ही वह जाती लगी . एक दिन मेरे पास आया . आते ही अपने घर में रुपयों - पैसों की तंगी का दुखड़ा वह रोने लागा -

  " यार , आटे - दाल के लाले पड़ गये हैं . बच्चों की फीस नहीं दे पा रहा हूँ . तुम्हारे दो बच्चे भी स्कूल जाते हैं . तुम जानते ही हो आकाश को छूती उनकी फीसों के बारे में . हम खाएँ - पीयें या न खाएँ - पीयें लेकिन वृद्ध माँ - बाप को सुबह - शाम दूध - फल अवश्य चाहिए . मेरा एक बड़ा भाई है . हमारी तंगी में उसने आखें फेर ली हैं . तुम्हारे पास आया हूँ एक आस ले कर . कहीं , तुम तो आँखें नहीं फेर लोगे .? " 

 " कहो , यार हूँ तुम्हारा . बताओ क्या समस्या है ? "

 " बीस - पच्चीस हज़ार रूपये चाहिए . नौकरी मिलते ही वापस कर दूँगा . "

 मुसीबत में मित्र की सहायता अवश्य करनी चाहिए . मेरे मन में यह विचार आटे ही दूसरे दिन मैं उसके घर पहुँच गया और उसकी झोली में पच्छीस हजार रूपये डाल दिए मैंने . उसकी पलकों पर धन्यवाद के आँसू चमक उठे . दो महीने के बाद सुमीत को नौकरी मिल गयी . उसके अच्छे दिन फिर शुरू हो गये . 

मैंने सोचा कि अब जल्द ही वह मेरे रूपये लौटा देगा . मेरा सोचना बेकार निकला . उसने मेरे घर आना बंद कर दिया . सुबह - शाम जब कभी उससे मिलने के लिए मैं उसके घर जाता तो वह अपने बच्चों से कहलवा देता -

 " पापा जी , घर में नहीं हैं . " उसके पिता जी की गली में अच्छी साख है . एक बार तो उसने उनसे भी कहलवा दिया था -

" बेटे , सुमीत घर में नहीं है . सन्देश छोड़ जाओ . वो आयेगा तो मैं दे दूँगा . " मैंने सोचा कि उधार की महिमा कितनी अपरम्पार है ! अच्छे - अच्छे लोगों के दिलों का ईमान डांवाडोल कर देती है और आँखें फिरा देती है .

प्राण शर्मा 
प्राण शर्मा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। कॉवेन्टरी के प्राण शर्मा ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राणजी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। हिन्दी ग़ज़ल पर उनका एक लंबा लेख चार-पांच किश्तों में ‘पुरवाई’ में प्रकाशित हो चुका है। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण शर्मा ने ही लिखी थी। भारत के साहित्य से पत्रिकाओं के जरिए रिश्ता बनाए रखने वाले प्राण शर्मा अपने मित्र एवं सहयोगी श्री रामकिशन के साथ कॉवेन्टरी में कवि सम्मेलन एवं मुशायरा भी आयोजित करते हैं। उन्हें कविता, कहानी और उपन्यास की गहरी समझ है।

7 comments:

  1. अच्छी लघु कथा,,,,
    प्राण जी परिचय कराने के लिए,,,आभार

    RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

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  2. सही कहा उधार ही दोस्तो को दुश्मन बना देता है ।

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  3. बहुत सच्ची कहानी ..और यही है मेरी जुबानी भी... मैंने भी पाया कि जिस का इलाज दवा ओपरेसन फ्री में कर दो .. वह बाद में नमस्ते कहने से भी कतराता है.... प्राण जी का परिचय भी मिला ... आपका सादर धन्यवाद

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  4. कितना सच है इस कहानी में ... अपने पैसे भी दो और खुद ही मांगे वालो की कतार में आ जाओ ... जबरदस्त कहानी ...

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  5. Priya bhai Pran Sharma jee aksar dukanon par likhaa hota hai ki udhaar prem kii kainchi hai.tabhii to unhen kehte hue suna gaya hai ki aaj nakad kal udhaar,unhen pata hai ki kal kabhi nahi aaegag.shayad yahii sukhi jeevan kii sachchaii hai.aapne to udhaarname par bahut sundar laghu katha kahii hai. mujhe to kaee baar esa bhee lagta hai ki udhaar dene vala hii sharminda hota rehta hai.aapne is vishay par bahut achchhi kathaa keh dee hai.ek achchi v sashakt laghu katha ke liye badhai.

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  6. उधार मित्रता की कैंची है!
    इसी कथन की पुष्टि करती है यह लघुकथा!
    इला

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