डर लगता है आत्मीयता से
औपचारिकता ही भली है जीने के लिए ...



रश्मि प्रभा

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आशीर्वाद नहीं दूंगी ...बेटा ..

अच्छा नमस्ते ..बेटा
जब एक सत्तर वर्ष की माँ ने
मेरे आगे हाँथ जोड़े
तो मेरा अस्तित्व हिल गया
ऐसा क्या किया था मैंने ?
जो अश्रुपूरित,
सारे .ब्रह्मांड की संवेदना समेटे,
जिजीविषा से भरी दो आँखे,
मुझे इतनी आत्मीयता और
सम्मान को तत्पर है,
मैंने माँ के हाथ पकड़ लिए
और अपने सर पे रख लिए
आशीर्वाद दो
मुझे यही चाहिए
माँ ने झटके से खीच लिया हाँथ
ना बेटा ... क्या करते हो
सर पे हाथ .. तुम्हारे..... कभी नहीं
मै भौचक
अपराध बोध से ग्रसित , .सशंकित
माँ...!
क्या मै आपके आशीर्वाद का हक़दार नहीं ?
फिर ये कंजूसी क्यों ?
न .. बेटा... ,
तेरे लिए तो जान भी दे दूँ
मगर अब और सर पे हाथ नहीं
बेटों के सर पे बहुत रखा
आज .. बबूल सी खड़ी हूँ निपट अकेली
बहुत दूर तक अकेली जाती इस सड़क के
उस कोने का मकान है मेरा
जिसके आस पास
हमारा कोई नहीं रहता
वो जिनको
सौ साल जीने का आशीर्वाद दिया
मुझसे पहले चले गए
अब आशीर्वाद नहीं
नमस्ते करती हूँ
तुम्हारे दादा जी ..
तीन बर्ष से एड़ियां रगड़ रहे है
उन्हें रोज आशीर्वाद देती हूँ
न चाहते हुए भी,
रख देती हूँ सर पे हाथ
मगर वो जाते ही नहीं
दर्द से और चीखने लगते है
और जो चले गए
उसके लिए मुझे गुनाहगार ठहराते है
तुम्हे आशीर्वाद नहीं दूंगी,
मजबूर हूँ ,
न ही कह सकती हूँ तुम्हे बेटा
बस नमस्ते ही ठीक है
खुश रहो
माँ ..चली जाती है
छोड़ जाती है एक प्रश्न ?
जिसका उत्तर मै इधर-उधर ढूंढता हूँ
मगर नहीं मिलता
क्योंकि मै जानता हूँ
माँ के दोनों बेटे मरे नहीं
ज़िंदा है
इसी शहर में है
उधर जहां बड़े लोग रहते है
जहा थके हुए लोगों का आना जाना नहीं होता
एड़ियां रगड़ते पिता का दर्द
टकरा कर लौट आता है
महल के भीमकाय गेट से
और माँ
बहुत चढ़ पाई तो
तीसरी मंजिल तक ही जा पाती है
वहाँ
जहा बेटों के नौकर रहते हैं
कई कुत्तों के साथ.
Mahesh Kushwansh




-कुश्वंश

17 comments:

  1. सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

    .

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  2. भावमय करते शब्‍दों के साथ्‍ा

    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. वाकई बेटों से अच्छी बिटियाएँ होती हैं....
    शुभकामनायें !

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  4. बहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक रचना । सुंदर

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  5. दिल को झझोडने वाली मार्मिक अभिव्यक्ति।

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  6. मार्मिक, भावोद्वेलक रचना...
    कुश्वंश जी को सादर साधुवाद...
    सादर आभार...

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  7. सुन्दर रचना,बधाई............

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  8. सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ....

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  9. बहुत मर्मस्पर्शी ...

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  10. कुशवंश जी को इतनी जीवंत रचना के लिये बधाई ।

    यथार्थ का दर्द दिल को दहला गया ।

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  11. औपचारिकता ही भली है जीने के लिए ...
    kitna kathor hai ye dard.......

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  13. रश्मि जी ,आपकी सदासय्ता का ह्रदय से आभारी, वटवृक्ष पर कविता की पुनः प्रस्तुति के लिए आभार ,सभी विद्वान् और सुधि जानो का हृदायिक प्रतिक्रिआये देने के लिए कृतज्ञ रहूगा. आपका कुश्वंश

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  14. मन भर आया यह रचना पढकर ....यहाँ तो हालात इतने बिगड गए हैं कि अगर कोई पडोसी संवेदनशील होना चाहे तो उस पर इल्जाम लगा कर उसे भी अपनी ही श्रेणी में ले आते हैं संवेदना रहित बेटे

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