प्रत्यक्ष और परोक्ष का फर्क कहाँ नहीं होता
महाभारत की पृष्ठभूमि कहाँ नहीं बनती !!!
रश्मि प्रभा
==============================================================
उद्घाटन
अभी भवन निर्माण का कार्य सम्पन्न भी नहीं हुआ था पर मंत्रालय से सूचना आ गयी कि कल मंत्री जी भवन का उद्घाटन करने वाले हैं. सारा का सारा महकमा व्यवस्था में लगा हुआ था. भवन के पिछले हिस्से का कार्य चल ही रहा था. अफरा-तफरी के इस माहौल में तय हुआ कि भवन के पिछले हिस्से को ढक दिया जाये और मंत्री जी से भवन के मुख्य द्वार पर फीता कटवाकर उद्घाटन करवा लिया जाये. सारे के सारे मजदूर पीछे के हिस्से में ही रहें, यह जाहिर न होने पाये कि अभी कार्य चल रहा है. तभी सूचना मिली की सभी मजदूर पिछले हिस्से के एक भाग के गिरने से दब गये हैं. आपात मीटिंग बुलाई गई. तय हुआ कि क्योंकि अब समय कम है अत: राहतकार्य तुरंत न शुरू करके उद्घाटन के बाद करवाया जायेगा. सहमति के बीच एक आशंका भी उठी कि कहीं दबे हुए मजदूर उद्धाटन के दौरान ही चीख-पुकार मचाने लग गये तो क्या होगा?
अंततोगत्वा, कुछ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँचे और दबे हुए मजदूरों से बोले “तुम्हें हर हालत में अपनी चीख दबाकर रखनी है, हम भवन के उद्घाटन के तुरंत बाद न केवल बाहर निकालेंगे वरन तय मुआवजे से ज्यादा मुआवजा भी दिलवायेंगे”. मजदूर आस के सहारे बिना चीखे पड़े रहे और उद्घाटन समारोह पूर्वक सम्पन्न हो गया. मंत्री ने भवन की आलीशानता की तारीफ की. सफल कार्यक्रम की सम्पन्नता से उत्साहित पूरा विभाग दावत में व्यस्त हो गया. सभी उन दबे मजदूरों को भूल गये. वे मजदूर मुआवजे के सपनों के बीच आज भी वहीं दबे पड़े हैं और विभाग उद्धाटन की दावत में व्यस्त हैं .
() M. verma ( एम्. वर्मा )
() M. verma ( एम्. वर्मा )
नाम : M Verma (M L Verma)जन्म : वाराणसी (शिक्षा विभाग, दिल्ली सरकार) अध्यापन
शिक्षा : एम. ए., बी. एड (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
कार्यस्थल : दिल्ली
प्रणाम !
ReplyDeleteसुंदर चित्र खीचा है आप ने . बिलकूल यथार्थ . एस तरह कि मुहिम के लिए जाने कब कोई ' अन्ना आएगा .
साधुवाद !
मार्मिकता का आवरण ओड़े...लेख
ReplyDeleteदिल को छू गया
समाज को आईना दिखाती बेहतरीन कथा !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी लघुकथा
ReplyDeleteसत्य के बेहद निकट ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक चित्रण..मर्मस्पर्शी कथा..साधुवाद....
ReplyDeleteमार्मिक !
ReplyDeleteसमाज को आईना दिखाती मर्मस्पर्शी कथा.
ReplyDeleteलघुकथा पर टिप्पणी नहीं।
ReplyDelete*
अनुरोध है कि उसके साथ लगा फोटो कृपया हटा दें।
आपने तो मन्नू भंडारी के "महाभोज" की याद दिला दी.
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी सत्य.
ReplyDeleteचाहत की कीमत
तर्क और तकरार
बहुत सच्चाई से वर्णन निया है बहुत अच्छी लघु कथा
ReplyDeleteआशा
अज मजदूर की यही दशा है। अच्छी लघु कथा। धन्यवाद।
ReplyDelete