निरक्षर इज्जत पाते हें ..
बचपन में मैंने विद्यालय की दीवारों पर पढ़ा था -
'पढ़ते सभी हैं , पर जानते नहीं क्या पढ़ें !'
तो निर्भर है कि हम क्या सीखते हैं...
महज शाब्दिक ज्ञान भी एक तरह का अज्ञान है ,
मोती वही पाता है जो सागर की गहराइयों में जाता है ,
एक घूंट सागर का पानी पीकर 'खारापन' बता देना पूर्णता नहीं !
रश्मि प्रभा
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निरक्षर इज्जत पाते हें ...
अल्लाह
यह केसी सजा हे
अनपढ़ हें
जो लोग
काले गोरखधंधों से
रूपये कमाते हें ,
रूपये कमाकर
यही लोग
शहर में इज्जत
की जगह
पाते हें ,
पढ़े लिखे
बेचारों का क्या
वोह तो
इन बे पढों के यहाँ
नोकरी लगवाने के लियें
चक्कर लगाते हें ,
यह तो
बेचारे पढ़े लिखे हें
इनके रोज़गार तो बस
किताबों में ही
दफन हो जाते हें ।
अख्तर खान अकेला,
कोटा राजस्थान
http://akhtarkhanakela.blogspot.com/
जिसके पास पैसा है वो इज्ज़त पता है और पढ़े लिखे हो कर लोंग बेरोजगार रह जाते हैं ..सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteयह तो
ReplyDeleteबेचारे पढ़े लिखे हें
इनके रोज़गार तो बस
किताबों में ही
दफन हो जाते हें ।
यही तो कडवा सच है………………आज पढे लिखे का बस इतना ही महत्त्व रह गया है कि किसी अनपढ के हाथ की कठपुतली बन जाये।
Khan sahab khoob likha, ek nihayat hi kadvi sachhai he is desh ki,
ReplyDeleteaur ek sharmshar karne wali baat,
lekin kya kare vyavastha hi aisi ban chuki he,
"kya kare ab kuch ajeeb sa nhi agta,
mene halaaton se samjhota kar liya"
shaandar prastuti
ये एक त्रासदी है जिससे पार पाने कि मुहीम चलाने की जरूरत है.आज हम विमुख होते जा रहे हैं और वे मुखर. बेहद सुन्दर सन्देश देती कविता. शिक्षित समाज के पहरुए जाहिल और धन-लोलुप लोग कैसे हो सकते हैं?इसपर विचार जरूरी है.
ReplyDeletesachchi baat
ReplyDeleteRajeev ne sahi kaha.......:)
ReplyDeletewaise kavita ek dum sateek hai!!
वाकई विषम चक्र है.
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना और उस पर बहुत अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteअकेला जी की रचना मे आज की व्यवस्था का सच छुपा है। बहुत अच्छी लगी रचना बधाई उन्हें।
ReplyDeleteकडवा सच....
ReplyDeleteकहा भी गया है कि पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो भाई किस्मत का खेल ...यह हमारे समाज की सबसे बड़ी बिडंबना है !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना, बधाई !
ReplyDeleteek dam sahi kaha...
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना...
ReplyDeletebahut sahi kaha hai kavita ne ..
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