तेरे पास आके हमने , जो पल ये गुज़ारे हैं
कैसे बताऊँ तुमको , वे ही साथ हमारे हैं
मैंने कहा था सबसे , तू पास ही है मेरे
रश्मि प्रभा
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!! मैं भी रखना चाहता हूँ व्रत तुम्हारे लिए !!
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आज
मैं भी
रखना चाहता हूँ व्रत
तुम्हारे लिए ,
तुम्हारी लम्बी आयु के लिए,
रहना चाहता हूँ
निर्जलाहार
पूरे एक दिन
ताकि, महसूस कर सकूं
तुम्हारी श्रद्धा, चिंता ,
मेरे लिए
तुम्हारा समर्पण,
तुम्हारा प्यार,
देख सकूँ
तुम्हारा कामना से दीप्त चेहरा ,
जिसमें कांति है ,
पानी की चमक है
और है
मेरे लिए तुम्हारा प्यार ,
प्यास का जरा भी
अहसास नहीं है।
हर वर्ष रखती हो तुम
व्रत मेरे लिए
रहती हो दिन-रात
बिना जल का पान किये,
रचाती हो मेहंदी अपने हाथों में,
पैरों में लगाती हो महावर,
करती हो सोलह श्रृंगार
पूरी आस्था के साथ
लगाती हो माथे पर बिंदी,
मांग में सिन्दूर
जिसमें होती है
विश्वास की लाली,
जिसमें होता है
एक असीमित विस्तार
प्रकृति तरह।
बिटिया ने कई बार पूछा है -
एक सवाल ,
"मां ही क्यों रखती है हर व्रत
हर बार सबके लिए ,
आप क्यों नहीं रखते
मां के लिए कोई व्रत कभी",
मैं रहा निरुत्तर .........
हाँ,ये सच है कि मैं
कभी नहीं बाँध पाया स्वयं को
पूजा-पाठ ,व्रत-उपवास के बंधनमें
तुम्हारी तरह ,
पर, पल-पल बंधा रहा हूँ मैं
तुमसे ,
तुम सबसे,
निष्ठा रही है मेरी
आपसी संबंधों में,रिश्तों में.
तुमने समय के साथ चलकर भी
बांधे रखा स्वयं को परम्पराओं से ,
पर,परम्पराओं से अलग
मैं बंधा रहा
तुमसे,तुम्हारे सरोकारों से।
मैंने तो बस इतना जाना है
जब भी तुम परेशान हुई,
परेशान हुआ मैं.
तुम्हारी मुस्कान से
खिल उठता है
हम सबका मन ।
कहते हैं
ये रीति-रिवाज,व्रत-उपवास
रिश्तों की नींव मजबूत बनाते हैं
संबंधों का वटवृक्ष उगाते हैं
हर वर्ष आकर
हमें कुछ याद दिलाते हैं.
पर ,
तुम तो जीवन साथी हो मेरी,
बराबरी का है साथ।
तुम चाहो तो मिलकर ले आयेंगे
परम्पराओं में बदलाव ,
बदल देंगे
कुछ पुराने प्रतिमान,
नया गढ़ लेंगे ।
तुम सिन्दूर,बिंदी और कंगन को
बंधन नहीं ,
बना लेना श्रृंगार
मैं तेरे साथ मिलकर
बसा लूँगा एक संसार.
जहाँ प्यार और विश्वास ही होगा
जीवन का आधार। आशा है स्वीकार करेंगी.
bahut sunder kavita.. pehli bhi padhi hai rajiv jee ke blog par.. naye bhav hain.. aadhunikta aur parampara ke beech pul baandh rahe hain rajiv ji kavita ke maadhyam se ..
ReplyDeleteजहाँ प्यार और विश्वास ही होगा
ReplyDeleteजीवन का आधार। आशा है स्वीकार करेंगी.
bahut khub
बहुत सुन्दर भाव ...अच्छी रचना
ReplyDeletebahut sundar kavitaa, sundar bhaav hai isake ...!
ReplyDeleteभावमयी रचनात्मक प्रस्तुति !
ReplyDeleteजबर्दस्त्त.
ReplyDeleteबहुत सही ....अच लगा पढ़ना
ReplyDeleteबहुत भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई |
ReplyDeleteआशा
तुम बिंदी ,कंगन सिन्दूर को बंधन नहीं बना लेना श्रृंगार ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सा ख़याल ...
व्रत उपवास रखने से ज्यादा है एक दूसरे के सुख दुःख से जुड़ना ...
परम्पराएं तभी सार्थक हैं जब वे अपने मूल उद्देश्य में सफल हो ...
बहुत अच्छी कविता ...
आभार !
very logically composed, sundar kriti
ReplyDeletenaari naarirav aur purashtav ke beech dwand , sunder !
ReplyDeletesadhuwad !
कहते हैं
ReplyDeleteये रीति-रिवाज,व्रत-उपवास
रिश्तों की नींव मजबूत बनाते हैं
संबंधों का वटवृक्ष उगाते हैं
हर वर्ष आकर
हमें कुछ याद दिलाते हैं.
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete"मैं भी रखना चाहता हूँ व्रत तुम्हारे लिए" को वट-वृक्ष की छावं देने के लिए आपका आभारी हूँ. अन्य सारी रचनाएँ भी उम्दा हैं .
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