कहकशां यानि आकाशगंगा !
जहां तक मेरे परिचय का प्रश्न है,मै भारतीय सेना में अधिकारी हूं और फ़िलहाल ले.कर्नल की रैंक में,दानापुर छावनी में तैनात हूं! परंतु यह परिचय न तो मेरे लेखन की विधा से मेल खाता है, और न ही मेरे पाठकों से इस का कोई सरोकार होगा।
अत: इतना ही कहना काफ़ी होगा कि एक कवि ह्रदय व्यक्ति की कलम का बयान आप प्रस्तुत कर रहीं है! मैं अपने ब्लॉग पर ’Ktheleo' के नाम से लिखता हूं,और ब्लॉग जगत में मेरी यही पहचान है,वैसे मेरा वास्तविक नाम ले. कर्नल कुश शर्मा है।कविता लिखना न तो मरे लिये शौक है,और न ही कोई पहचान बनाने का माध्यम, जब संवेदनायें उबलने लगतीं है,तो शब्द कविता या जो भी कुछ मैं कहता हूं ,स्वत: राह बना कर चल पडते है,
कहकशां यानि आकाशगंगा !
ऐ खुदा,
हर ज़मीं को एक आस्मां देता क्यूं है?
उम्मीद को फ़िर से परवाज़ की ज़ेहमत!
नाउम्मीदी की आखिरी मन्ज़िल है वो।
हर आस्मां को कहकशां देता क्यूं है?
आशियानों के लिये क्या ज़मीं कम है?
आकाशगंगा के पार से ही तो लिखी जाती है,
कभी न बदलने वाली किस्मतें!
दर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
कितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
अनकहे किस्सों को बयां देता क्यूं है?
किस्से गम-ओ- रुसवाई का सबब होते है
क्या ज़रूरत है,
तेरे इस तमाम ताम झाम की?
ज़िन्दगी!
बच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
’Ktheleo'
http://www.sachmein.blogspot.com/
ज़िन्दगी!
ReplyDeleteबच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
काश ! ऐसा हो पाता …………।यही तो हर दिल की चाहत होती है।
meri bhi yahi soch, kaaash aisa hi kuchh hota......jindagi jeena fir alag rang ki tarah dikhta.....ek dum anutha........!! lekin aisa hua nahi........kyonki upar wale ko har rang dekhna manjoor hai......:)
ReplyDeleteek jaandaar kavita!!
काश ! आपकी लिखी हुई पंक्तियाँ सच हो पाती ...बहुत अच्छी पंक्तियाँ है..!!!
ReplyDeleteदर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
ReplyDeleteकितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
अनकहे किस्सों को बयां देता क्यूं है?
किस्से गम-ओ- रुसवाई का सबब होते है'
सचमुच एक संवेदनशील मन.यूँ छलकते है जज्बात एक आर्मी ऑफिसर के?आश्चर्य नही हुआ,डिफेन्स सर्विसेज वालों के परिवार से हूं.
दर्द को जुबाँ ना मिलती तो दर्द घाव देता और घाव नासूर मे कब तब्दील हो जाता पता ही न चलता.
जिंदगी ....मासूम बच्चे की मानिंद...बहुत खूब लिखा.बधाई.
ज़िन्दगी!
ReplyDeleteबच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
बहुत खूबसूरत
bahut sunder kavita ! immandaar bhav hain aapke.. parichay aapka aur bhi aakarshit karta hai
ReplyDeleteSabhi ki khwaaish yahi hai jise aapne shabdo main baya kar diya... bahut khub...
ReplyDeleteज़िन्दगी!
ReplyDeleteबच्चे की मुस्कान की तरह
बेसबब!!
और
दिलनशीं!
भी तो हो सकती थी!
ज़िन्दगी बेसबब होती तो ज़िन्दगी न होती। सबब मे तो दोनो ही होते हैं जब सबब हुया सुख जब सबब हुया दुख्। मगर दुख सहन करना मुश्किल होता है शायद तभी कविता गज़ल बनती है। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।
बहुत खूब लिखा.....बधाई !
ReplyDeleteसत्य से साक्षात्कार कराती एक खुबसूरत कविता , अच्छी लगी
ReplyDeleteसुन्दर रचना..... शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी संवेदना और अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकुश जी आपकी कुशल अभिव्यक्ति । बधाई।
ReplyDeleteजिंदगी बच्चे की मुस्कान सी भी तो हो सकती थी ...
ReplyDeleteअच्छी कविता !
दर्द को तू ज़ुबां देता क्यूं है?
ReplyDeleteकितना आसान है खामोशी से उसे बर्दाश्त करना,
अनकहे किस्सों को बयां देता क्यूं है?
किस्से गम-ओ- रुसवाई का सबब होते है
बहुत ही सुन्दर !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! बच्चे की तस्वीर बहुत ही प्यारी और मासूमियत से भड़ी हुई है! आपने बड़े खूबसूरती से प्रस्तुत किया है !
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