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मेरी पहचान : |
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!! जख्म !!
बन्द हैं चौखट के उस पार
अतीत की कोठरी में
पलों के रत्न जड़ित
आभूषण
एक दबी सी आहट
सुनाती
एक दीर्घ गूंज
समय चलता
अपनी उलटी चाल
घिरता कल्पनाओं का लोक
लम्हों को परिचालित करता
अपने अक्ष पर
प्रतिध्वनित हो उठती
अनछुई छुअन
सरिता बन जाता
समुद्र का ठहराव
हरित हो उठती
पतझड़ की डालियाँ
लघु चिंतन में
सिमट जाता
पूरा स्वरूप
बन जाता
फिर......
एक रेत का महल
खुशियों का लबादा ओढ़े
दस्तक देता प्रलय
ढेर बन गए महल में
दब जाती
वो गूंज
रत्नों पर फन फैलाए
समय का नाग
डस लेता
देता एक सुलगता ज़ख्म
रिसता है जो
शाम ढले
उस चौखट को देखकर..........!!
सुमन 'मीत'
बढ़िया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteहिंदी दिवस पर हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनाये....
जय हिंद जय हिंदी
भावपूर्ण अभिव्यक्ति। पर कविता के अगर पद अलग अलग करके दिए जाते तो पाठक को पढ़ने में और ग्रहण करने में आसानी होती।
ReplyDeleteएक और निवेदन कि कम से कम एक रचना तीन दिन तो वटवृक्ष पर रहे। परसों हमने ज्योत्सना जी को पढ़ा था,कल सुभाष जी को और आज सुमन जी। समय थोड़ा कम लगता है। संभव हो तो विचार करें।
बेहद गहन भाव भरे हैं।
ReplyDeleteshaandar kavita
ReplyDeletebhavon se otu-prot
pathak man prasnn hua
lirpya yaha bhi najre inayat kare
http:\\mere-ehsaas.blogspot.com
बहुत गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteरचनाएँ तो अपनी जगह पर हैं ही और जब इसको रूप देना है प्रकाशन का तो लंबा समय श्रेयेस्केर नहीं होगा.........ऊपर में सारी रचनाओं का मुख्य विम्ब
ReplyDeleteआता है सुविधा के लिए
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteहिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये....
बढ़िया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteहिंदी दिवस पर हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनाये....
sundar prastuti, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteसमय ही बनाता और बिगाड़ता और दे जाता है एक जख्म ....!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeletebahut sunder........ sabhi ko hindi diwas kee shubhkamnayen,
ReplyDeleteप्रशंसनीय अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteगहन भाव....
शुभकामनाएं....
अति सुन्दर!
ReplyDeleteहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
बन्द हैं चौखट के उस पार
ReplyDeleteअतीत की कोठरी में
पलों के रत्न जड़ित
आभूषण
एक दबी सी आहट
सुनाती
एक दीर्घ गूंज
समय चलता
अपनी उलटी चाल
घिरता कल्पनाओं का लोक
लम्हों को परिचालित करता
अपने अक्ष पर