ख्वाहिशों के विस्तृत आकश को हर दिन टांगती हूँ बाहर , अपने खजाने से चाँद, सूरज निकालती
हूँ , तारों के धवल चादर पर मोहक सपने बिखेर देती हूँ ... कल्पनाओं के इस महासागर में मुझे
अपनी ज़िन्दगी के नन्हें-नन्हें मायने मिल जाते हैं ...
रश्मि प्रभा
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!! अभिलाषाओं का टोकरा.!!
अपनी अभिलाषाओं का
तिनका तिनका जोड़
मैने एक टोकरा बनाया था,
बरसों भरती रही थी उसे
अपने श्रम के फूलों से,
इस उम्मीद पर कि
जब भर जायेगा टोकरा तो,
पूरी हुई आकाँक्षाओं को चुन के
भर लुंगी अपना मन।
तभी कुछ कुलबुलाहट सी हुई मन में
धड़कन यूँ बोलती सी लगी
देखा है नजरें उठा कर कभी?
उस नन्ही सी जान को बस
एक रोटी की अभिलाषा है
उस नव बाला को बस
रेशमी आँचल की चाह है
उन बूढी आँखों में बस
अपनों के नेह की आस है,
और उस मजदूर के सर बस
एक पेड़ की छांव है।
और मैने अपनी अभिलाषाओं से भरा टोकरा
पलट दिया उनके समक्ष
बिखेर दिए सदियों से सहेजे फूल
उनकी राह में
अब मेरी अभिलाषाओं का टोकरा तो खाली था,
पर मेरे मन का सागर पूर्णतः भर चुका था
नाम - शिखा वार्ष्णेय
जन्म स्थान - नई दिल्ली
मोस्को स्टेट यूनिवर्सिटी से टीवी जर्नलिज्म में परास्नातक करने के बाद कुछ समय भारत में एक टीवी चेनल में न्यूज़ प्रोडूसर के तौर पर काम किया .वर्तमान में लन्दन में स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन में साक्रिय.
बहुत सुन्दर भावों से भरा यह अभिलाषा का टोकरा ....यूँ ही लोगों को खुशियाँ मिलती रहें और हमेशा यूँ ही अभिलाषाएं चुन नए टोकरे बुनती रहो ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
agar wastav me aapki chah aisee hai, to bhagwan aapke abhilashaon ki tokre ko kuchh bada kar de.......:)
ReplyDeletebahut khubsurat bhaw.......pyari rachna!!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteशुभकामनाएं...
वाह ! शिखा क्या लिखा है, एक सच्चे इंसां कि तस्वीर तो इस रूप में ही उकेरी जाती है , काश सब तुम्हारी तरह से ही सारे नहीं कुछ आकांक्षाओं को किसी के लिए अर्पित कर दें तो कितने होंठों पर मुस्कराहट दौड़ जायेगी.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई.
bahut hi shaandar kavita,
ReplyDeletepehle bhi padhi thi,
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है वाकई !
ReplyDeleteOwsome ...!
ReplyDeleteअभिलाषाओं का टोकरा खाली हुआ ...
ReplyDeleteमगर मन का सागर भरा हुआ ...
आत्मसंतोष ऐसी ही पूर्णता देता है ...
सुन्दर ..!
kya baat hai bahut acha bhavna purn likha
ReplyDeleteबहुत सुन्दर। आखिर कुछ बाँतने की भी कोई सीमा होती है। शिखा जी बहुत अच्छा लिखती हैं। उन्हें बधाई।
ReplyDeleteअब मेरी अभिलाषाओं का टोकरा तो खाली था,
ReplyDeleteपर मेरे मन का सागर पूर्णतः भर चुका था
शिखा जी
नमस्कार !
सुंदर अभिव्यक्ति
सादर !
जब आवे संतोष धन ,सब धन धूरि समान.
ReplyDeleteअब मेरी अभिलाषाओं का टोकरा तो खाली था,
ReplyDeleteपर मेरे मन का सागर पूर्णतः भर चुका था
बिल्कुल सही कहा अगर हर इंसान ऐसा करने लगे तो फिर जन्नत यही धरती पर ना आ जाये……………बेहतरीन प्रस्तुति।
बहुत ही सुन्दर यह अभिलाषाओं की प्रस्तुति, भावमय प्रस्तुति।
ReplyDeleteshikha ji,
ReplyDeletekhushiyon ki tokri hai jismein abhilasha bhari rahe, sundar prastuti, badhai.
अभिलाषाएं चाहो तो द्रौपदी के चीर सी पल पल बढती जाती हैं... अंतहीन विस्तार की तरह .... समेटो तो कहो गांधी की धोती सी बस मनन के इर्द गिर्द लिपट जाए ...! बेहद भावपूर्ण रचना.... ! स्पष्ट अभिव्यक्ति....! :)
ReplyDeletesram ki sarthakta isi me hai ki vah jaroorat mando tak pahuch jaye.bahut achchhe vichar hai
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