!! एक शाख वटवृक्ष की !!
सच के मुखौटे में
छिपा झूठ
बहुत दिन भरमा नहीं सका
गुलाब की पंखुड़ियों से झरकर
गुलाब का नग्न सत्य
दृश्य हुआ
तो कसकने लगी
गुलाब की डाली के काँटों की चुभन,
ठीक वैसे ही
सफेदपोशों के चेहरे का नकाब
जब उतरने लगता है
इंसां का इंसां में
विश्वास का भ्रम
टूटता है तब
उसमें बैठे हैवान की
तस्वीर उजागर होती है.
तस्वीर उजागर होती है.
रेखा श्रीवास्तव
मोबाईल न.०९३०७०४३४५१
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sunder kavita! rekha ji aap gadya evan padya dono vidhaon me nipun hain..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक कविता
ReplyDeletekavita bhaavpoorn hai, padhakar achchhaa lagaa
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना!
ReplyDeletesafedposh ki nakab jab utarti hai, to haiwaniyat se darshan ho jata hai......:)
ReplyDeletesachchi kaha rekha di aapne..!!
bahut pyari prastuti.....!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletesundar, rachna
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteगुलाब की पंखुड़ियों से झरकर
ReplyDeleteगुलाब का नग्न सत्य
दृश्य हुआ
तो कसकने लगी
गुलाब की डाली के काँटों की चुभन,
ठीक वैसे ही
सफेदपोशों के चेहरे का नकाब
जब उतरने लगता है
बिलकुल सही कहा
सुन्दर भावमय कविता। रेखा जी को बधाई।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteरेखाजी बधाई
सच के मुखौटे में छिपा बदरंग झूठ ...
ReplyDeleteजब जरूरत थी तब मुखौटे क्यूँ नहीं थे ...
कविता और इसकी भूमिका दोनों ही बहुत भाई ...
आभार ..!