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दिन डूबते जाते हैं
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रश्मि प्रभा
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यादों के गिरह बढ़ते जाते हैं
तुम और तुम्हारी बातें
भीगे चेहरे पर टिक गए हैं ....
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रश्मि प्रभा
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एक और दिन डूबता हुआ सा ..........!
यादों की एक किताब को सरहाने रखकर
.सारा दिन
..ना जाने क्या-क्या बुनते...... उधेड़ते रहे......!
हाथों पर तुमने उँगलियों से जो इबारत लिखी .
उसके निशान
पक्के हो चले है ....
बारिश की बूंदो में भीगने से
रंग और निखर आया है .......
ढुलकते जाते हो कभी गालों पर आंसूं बन कर
और कभी. होठों पे ठहरती सी बातों का
एक कारवां बन जाते हो .....
खामोशियों से भी ज्यादा था वीरान ये दिन.................!
सारे गीत कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !
बेबस सी हवा में तैरती ,सिसकती यादें थीं
और.....
एक और दिन था
डूबता हुआ सा ..........!
विभा
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteतुम और तुम्हारी बातें
ReplyDeleteभीगे चेहरे पर टिक गए हैं ....
kaise sochtin hain itna sunder.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार.
ReplyDeleteसारे गीत कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !
ReplyDeleteबेबस सी हवा में तैरती ,सिसकती यादें थीं
और.....
एक और दिन था
डूबता हुआ सा ..........!
विभा जी एक बहुत ही प्यार भरी सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें !
क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
खामोशियों से भी ज्यादा था वीरान ये दिन...
ReplyDeleteसारे गीत कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !
बेबस सी हवा में तैरती ,सिसकती यादें थीं...
बेहद गहरी सोच... उतम अभिवयक्ति.... !!
bahut achchi abhivyakti.
ReplyDeleteविरह की अनुभूती ही ऐसी कविता लिखा सकती है ।
ReplyDeleteसिसकती यादें और एक और डूबता हुआ सा दिन !
और एक दिन यूँ ही उदास बेमानी सा गुजर जाता है !
ReplyDeletebhaut hi acchi....
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