चोट लगी तो जाना
रश्मि प्रभा
वंदना
खुदा पत्थर क्यूँ हुआ ...
ताउम्र वो पत्थरों को इन्सान बनाने में लगा रहा ...
रश्मि प्रभा
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"पत्थर"
ता-उम्र पत्थरों को पूजा
पत्थरों को चाहा
ये जानते हुए भी
पत्थरों में दिल नहीं होता
पत्थरों के ख्वाब नहीं होते
पत्थरों में प्यार नहीं होता
कोई अहसास नहीं होता
पत्थरों को दर्द नहीं होता
कोई जज़्बात नहीं होते
फिर भी पत्थरों को ही
अपना खुदा बनाया
पत्थरों की चोट खा-खाकर
पत्थरों ने ही
हमको भी पत्थर बनाया
हर अहसास से परे
पत्थर सिर्फ़ पत्थर होते हैं
जो चोट के सिवा
कुछ नहीं देते
वंदना
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना वंदना जी की...और रश्मि जी का तुड़का भी कुछ कम नहीं.. आभार इन बेहतरीन कृतियों के लिए..
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिये रश्मि जी आपकी आभारी हूं।
ReplyDeletewaah bahut khub
ReplyDeletepathar sa hai zamaan bhi
चोट लगी तो जाना
ReplyDeleteखुदा पत्थर क्यूँ हुआ ...
ताउम्र वो पत्थरों को इन्सान बनाने में लगा रहा ...
वाह ...बहुत ही बढि़या ... बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
वंदना जी की बहुत सुन्दर रचना...बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
ReplyDeleteता-उम्र पत्थरों को पूजा
ReplyDeleteआर्य बनते तो पत्थर न पूजते और न ही चोट खाते।
वंदना जी यह अनोखा पत्थ्ार कहां मिला आपको। सुंदर कविता।
ReplyDeleteपत्थर तो पत्थर ही होते हैं
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई...