दर्द का क्या भरोसा,आ जाय जब तब
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
है बड़ी अनबूझ ये जीवन पहेली
है कभी दुश्मन कभी सच्ची सहेली
बांटती खुशियाँ,कभी सबको हंसाती
कभी पीड़ा,दर्द के आंसू रुलाती
क्या पता कब मौत आ दे जाय दस्तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
आसमां में जब घुमड़ कर मेघ छाते
नीर बरसा प्यास धरती की बुझाते
तो गिराते बिजलियाँ भी है कहीं पर
धूप,छाँव,सर्द ,गर्मी,सब यहीं पर
कौन जाने,कौन मौसम ,रहे कब तक
मनाते खुशियाँ रहो ,तुम जियो जब तक
कभी शीतल पवन जो मन को लुभाती
वही लू के थपेड़े बन है तपाती
धूप सर्दी में सुहाती बहुत मन को
वही गर्मी में जला देती बदन को
कौन का व्यहवार ,जाए बदल कब तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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जन्म-22-2-1942, शिक्षा-मेकेनिकल इंजिनियर(बनारस विश्वविद्यालय-1963), लेखन-गत 50 वर्षों से कविताएं,प्रकाशन-1-साडी और दाडी, 2-बुढ़ापा, निवास- नोएडा.

11 comments:

  1. कौन का व्यहवार ,जाए बदल कब तक
    मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

    शाश्वत सच! वाह! सादर साधुवाद।

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  2. सही कहा…………सुन्दर रचना।

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  3. क्या पता कब मौत आ दे जाय दस्तक
    मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

    अतिसुन्दर!!

    शानदार गीत की समधुर प्रस्तुति!! आभार!!

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  4. Very good. Somebody said once "Live your life as it is the last day left for you"...

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  5. कौन का व्यहवार ,जाए बदल कब तक
    मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक.........

    सुन्दर रचना.........

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  6. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर रचना..!

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  7. आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने अनमोल संदेशों के द्वारा हमारा उत्साह बढाइये/आप हिंदी की सेवा इसी तरह अपने मेहनत और लगन से लिखी गई रचनाओं द्वारा करते रहें यही कामना है /आभार /लिंक नीचे दिया गया है /
    http://hbfint.blogspot.com/2011/11/19-happy-islamic-new-year.html

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